इमरजेंसी के वो काले दिन: जब पर्दे के अभिनेता बन गए थे राजनेता, कांग्रेस के सोटे से घायल हो गया था सेंसर बोर्ड!
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इमरजेंसी के वो काले दिन: जब पर्दे के अभिनेता बन गए थे राजनेता, कांग्रेस के सोटे से घायल हो गया था सेंसर बोर्ड!

'भारत खतरे में है' के तर्क के साथ 25 जून 1975 को आधी रात देशभर को आपातकाल की आग में झोंक दिया गया था. तब एक नारा कांग्रेसियों की जुबान पर था और वह था 'इण्डिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इण्डिया'. इसे इतनी जोर से प्रचारित किया जा रहा था मानो आजाद भारत का भविष्य अब यही हो.

(फाइल फोटो)

Emergency in India: 'भारत खतरे में है' के तर्क के साथ 25 जून 1975 को आधी रात देशभर को आपातकाल की आग में झोंक दिया गया था. तब एक नारा कांग्रेसियों की जुबान पर था और वह था 'इण्डिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इण्डिया'. इसे इतनी जोर से प्रचारित किया जा रहा था मानो आजाद भारत का भविष्य अब यही हो. 21 महीने तक देश की जनता यही शोर सुनती रही और जिसकी शोर सुनने की क्षमता नहीं थी और सड़कों पर उतरकर इसका विरोध कर रहे थे वह जेल की सलाखों के पीछे डाल दिए गए थे. यातनाएं तो उनको मानो ऐसी जैसे कोई देशद्रोह कर दिया हो. आजाद भारत ने इससे पहले भी दो आपातकाल देखा था. 26 अक्टूबर 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय का पहला आपताकाल और फिर 3 दिसम्बर 1971 को दूसरा आपातकाल जो भारत-पाकिस्तान जंग के दौरान लगा था. तब देश की जनता देश के हुक्मरानों के साथ खड़ी थी लेकिन इस आपतकाल ने तो जनता के दिल में वह खौफ पैदा किया था कि वह इस देश को एक बार फिर गुलामी की जंजीरों में देखने लगी थी. 

इंदिरा गांधी की सरकार के प्रेस की स्वतंत्रता तो कतई तब भा नहीं रही थी. अखबारों के दफ्तरों पर ताले लटके थे. लाइट काट दी गई थी. रेडियो स्टेशन पर केवल सरकार का भोंपू बज रहा था. सरकारी आतंक और अराजकता का इतना घिनौना खेल देश ने पहले कभी नहीं देखा था. सबकुछ कांग्रेसी आपातकाल के बंधक बने हुए थे. आलोचना पर रासुका और वह भी ऐसी कठिन की मानो अब देश कभी खुली हवा में सांस ले ही नहीं पाएगा. 

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ऐसे में इंदिरा के इस आपातकाल का विरोध बॉलीवुड ने भी शुरू कर दिया. नतीजा मनोरंजन से सीधे देशद्रोह तक इनको पहुंचना पड़ा. उनके खिलाफ भी सरकार ने कठोर कदम उठाए. 'किस्सा कुर्सी का' और 'आंधी' जैसी आपातकाल को आईना दिखाती फिल्म डब्बा बंद हो गई. किशोर कुमार जैसे गायक ने जब इंदिरा के स्तुतिगान से मना किया तो उन्हें ब्लैक लिस्ट में डाल दिया गया. क्या फिल्म निर्माता, क्या कलाकार, क्या निर्देशक और क्या लेखक सभी ऐसे प्रताड़ित किए गए मानो किसी दूसरे देश से आकर यहां मनोरंजन का सामान तैयार कर पैसा कमा रहे हों. 

देवआनंद तो इंदिरा के खिलाफ राजनीतिक पार्टी का गठन कर मैदान में उतर आए थे. तब के सांसद अमृत नहाटा ने एक फिल्म की कहानी लिखा शीर्षक था 'किस्सा कुर्सी का' शबाना आजमी फिल्म में रोल कर रही थी. फिल्म सेंसर बोर्ड के पास गी तो इसे पहले रिवीजन कमेटी और फिर सरकार के पास भेज दिया गया. इसके बाद इस फिल्म को प्रदर्शन का प्रमाणपत्र नहीं जारी करने का फैसला लिया गया. यह आपातकाल के ठीक पहले का वक्त था आपातकाल लगते ही इस फिल्म के सभी निगेटिव और साउंड ट्रैक के साथ बाकी की प्रिंट भी जब्द करने का आदेश मिला. हुआ भी ऐसा रद्दी में पड़ी फिल्म की कटिंग तक को जब्त कर लिया गया. उसी दौर में कमलेश्वर के उपन्यास पर एक और फिल्म आई 'आंधी' इस फिल्म के प्रदर्शन पर भी रोक लगा दी गई.   

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