संजय लीला भंसाली की सीरीज 'हीरामंडी' इन दिनों चर्चा में हैं. इस मूवी में पाक के जिले लाहौर के हीरामंडी रेडलाइन एरिया की कहानी दिखाई गई है, जहां इसके बाद तवायफों को लेकर चर्चा शुरू हो गई है.
मुगल काल कला और संस्कृति से समृद्ध काल था. शाम को शायरी, शास्त्रीय संगीत सुनने और नृत्य प्रदर्शन देखने में घंटों व्यतीत होते थे. ऐसे ही कोठों व उनकी रवायतों का इतिहास बहुत पुराना है.
तवायफ बनने के लिए कई रस्मों से होकर गुजरना पड़ता है. इनमें 3 रस्में खास हैं- 1. अंगिया, 2. मिस्सी, 3. नथ उतरवाई
तवायफ बनने के लिए सबसे पहले अंगिया रस्म निभाई जाती है. अंगिया यानी ब्रा. जब लड़की इस दिशा में आगे बढ़ती थी तो कोठे की तवायफें एक साथ लड़की को अंगिया पहनाने की रस्म निभाती थी.
मिस्सी वो प्रथा होती थी, जिसमें दांतों और मसूड़ों को काला किया जाता था. दरअसल, नवाबों के दौर में होठों पर कत्थे की सुर्खी और काले पड़ चुके दांतों को अच्छा माना जाता था
दातों को काला करने के लिए आयरन और कॉपर सल्फेट से बना पाउडर रगड़ा जाता था. इस रस्म के दौरान कोई बाहरी शामिल नहीं होता था. कोठे की आपा इस रस्म को निभाती थी.
अब वो समय आता है जब लड़की अपनी वर्जिनिटी बेचनी के लिए तैयार होती है. नथ उतराई में लड़की के लिए बोली लगाई जाती थी. ये रस्म कोठे में उत्सव की तरह होती थी.
जो कोई बड़ी बोली लगाता था वह लड़की के साथ पहली बार रात बीताता था. उस रात के बाद लड़की फिर कभी नथ नहीं पहनती थी.
(Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Zee Bharat इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.)