"सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का, कि खेल ख़त्म हुआ कश्तियाँ डुबोने का"
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"सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का, कि खेल ख़त्म हुआ कश्तियाँ डुबोने का"

Shahryar Poetry: शहरयार की किताब 'ख्वाब के दर बंद हैं' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया. उन्हें ज्ञानपीठ सम्मान भी दिया गया.

"सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का, कि खेल ख़त्म हुआ कश्तियाँ डुबोने का"

Shahryar Poetry: शहरयार उर्दू के मशहूर शायर थे. उनका असली नाम अखलाक मोहम्मद था. वह 16 जून 1936 को उत्तर प्रदेश के बरेली में पैदा हुए. उन्होंने पहले अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की, फिर यहीं पढ़ाने लगे. उर्दू शायरी जब उदासी के दौर से गुजर रही थी तो शहरयार ने उर्दू के अंदर नयापन लाने की कोशिश की. उन्होंने बालीवुड फल्मों 'उमराव जान' और 'गमन' के लिए गाने भी लिखे हैं.

तेरे वादे को कभी झूट नहीं समझूँगा 
आज की रात भी दरवाज़ा खुला रक्खूँगा 

या तेरे अलावा भी किसी शय की तलब है 
या अपनी मोहब्बत पे भरोसा नहीं हम को 

अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी 
ये काम मगर मुझ से अकेले नहीं होगा 

है कोई जो बताए शब के मुसाफ़िरों को 
कितना सफ़र हुआ है कितना सफ़र रहा है 

वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे 
सुना है आज कोई शख़्स मर गया यारो 

इक बूँद ज़हर के लिए फैला रहे हो हाथ 
देखो कभी ख़ुद अपने बदन को निचोड़ के 

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सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का 
कि खेल ख़त्म हुआ कश्तियाँ डुबोने का 

जो होने वाला है अब उस की फ़िक्र क्या कीजे 
जो हो चुका है उसी पर यक़ीं नहीं आता 

उम्र का लम्बा हिस्सा कर के दानाई के नाम 
हम भी अब ये सोच रहे हैं पागल हो जाएँ 

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी 
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है 

कहिए तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएँ 
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए 

आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई 
आँसुओं में भीग जाने की हवस पूरी हुई 

जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा 
समझौता कोई ख़्वाब के बदले नहीं होगा 

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