गुरु और शिष्य के रिश्तों पर हावी बाजार
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गुरु और शिष्य के रिश्तों पर हावी बाजार

'गुरु ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मैः श्री गुरुवेः नमः।'

हर साल की तरह इस बार भी 5 सितंबर शिक्षक दिवस से रूप में मनाया गया। गुरु और शिष्य के रिश्तों का यह पर्व अब अपनी चमक खोता जा रहा है। इन रिश्तों पर बाजार ने कड़ा प्रहार किया है जिससे शिष्य का गुरु के प्रति सम्मान और गुरु का शिष्यों के लिए समर्पण खत्म होता जा रहा है। इसकी मुख्य वजह शिक्षा का निजीकरण है।

भूमंडलीकरण से पहले भारत में शिक्षा की खरीद फरोख्त न के बराबर थी। शिक्षा करीब-करीब सबके लिए समान थी। प्राइमरी स्कूलों से लेकर कॉलेजों में गरीब और अमीर के बच्चे तथा सभी धर्मों के बच्चे एक साथ पढ़ते थे। सबके लिए शिक्षण सुविधाएं समान थी। गुरु भी सबके साथ समान भाव रखते थे और शिष्य भी अपने गुरुओं का बहुत सम्मान करते थे। एकदम रामायण महाभारत काल की तरह तो नहीं, लेकिन कमोबेश उसी तरह से।

देश को तीव्रगति से विकास की पटरी पर लाने के लिए भारत सरकार ने 1990 में उदारीकरण का रास्ता अपनाया। इस अंधी विकास की दौड़ ने भारत की शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया। भारतीय उद्योगपतियों और विदेशी उद्योगपतियों ने शिक्षा के क्षेत्र में निवेश करना शुरू किया और निजी शिक्षण संस्थानों की बाढ़ सी आ गई। कुकुरमुत्ते की तरह प्राइवेट स्कूल-कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, मैनेजमेंट संस्थान और डिम्ड यूनिवर्सिटी खुल गए। ये स्कूल कॉलेज समाज सेवा के लिए नहीं खोले गए बल्कि कमाई के लिए खोले गए। इन स्कूल-कॉलेजों में मोटी फीस लेकर बच्चों का दाखिला लिया जाने लगा और डिग्रियां बांटी जाने लगी।

इसका असर साफ तौर पर गुरु-शिष्य के संबंधों पर पड़ा। गुरु को छात्रों के पैसे से मतबल होता है जिससे छात्र भी गुरू को वो सम्मान नहीं देता जो पहले दिया करता था। पहले गुरु शब्द सुनते ही मस्तिष्क में छवि बनती थी उन शिक्षकों की जिनसे हमें स्कूल या कॉलेज में बेहतर इंसान बनने की शिक्षा मिलती थी। द्रोणाचार्य और अर्जुन जैसे गुरु-शिष्य के कई उदाहरण हमारे सामने हैं। विद्यार्थी जीवन में गुरु का मार्गदर्शन महत्वपूर्ण होता है। पहले गुरु निःशुल्क छात्रों को ज्ञान और मार्गदर्शन देते थे। पर निजीकरण ने गरीब छात्रों को गुरु की ज्ञानवाणी से महरूम कर दिया है।

शिक्षा के क्षेत्र में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने जो अमूल्य योगदान दिया वह निश्चय ही अविस्मरणीय रहेगा। इनकी जयंती पर प्रतिवर्ष 5 सितंबर `शिक्षक दिवस` के रूप में मनाई जाती है। इन दिनों जब शिक्षा की गुणात्मकता का ह्रास होता जा रहा है और गुरु-शिष्य संबंधों की पवित्रता को ग्रहण लगता जा रहा है, उनका पुण्य स्मरण फिर एक नई चेतना पैदा कर सकता है। सन्‌ 1962 में जब वे राष्ट्रपति बने थे, तब कुछ शिष्य और प्रशंसक उनके पास गए थे। उन्होंने उनसे निवेदन किया था कि वे उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से निश्चय ही मैं खुद को गौरवान्वित अनुभव करूंगा। तब से 5 सितंबर सारे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। डॉ. राधाकृष्णन कहा करते थे कि शिक्षक को मात्र अच्छी तरह अध्यापन करके ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। उसे अपने छात्रों का स्नेह और आदर अर्जित करना चाहिए। सम्मान शिक्षक होने भर से नहीं मिलता, उसे अर्जित करना पड़ता है।

शिक्षक दिवस सिर्फ भारत में ही नहीं मनाया जाता है। यूनेस्को ने 5 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस घोषित किया जिसे 1994 से ही इसे मनाया जा रहा है। शिक्षकों के प्रति सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए शिक्षकों के महत्व के प्रति जागरूकता लाने के मकसद से इसकी शुरुआत की गई थी। भारत में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इस दिन देश के द्वितीय राष्ट्रपति रहे राधाकृष्णन का जन्मदिवस होता है। चीन में 1931 में नेशनल सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शिक्षक दिवस की शुरुआत की गई थी। चीन सरकार ने 1932 में इसे स्वीकृति दी। बाद में 1939 में कन्फ्यूशियस के जन्म दिवस, 27 अगस्त को शिक्षक दिवस घोषित किया गया लेकिन 1951 में इस घोषणा को वापस ले लिया गया। साल 1985 में 10 सितम्बर को शिक्षक दिवस घोषित किया गया। अब चीन के ज्यादातर लोग फिर से चाहते हैं कि कन्फ्यूशियस का जन्मदिवस ही शिक्षक दिवस हो। रूस में 1965 से 1994 तक अक्टूबर महीने के पहले रविवार के दिन शिक्षक दिवस मनाया जाता रहा। साल 1994 से विश्व शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को ही मनाया जाने लगा।

अमेरिका में मई के पहले पूर्ण सप्ताह के मंगलवार को शिक्षक दिवस घोषित किया गया है और वहां सप्ताहभर इसके आयोजन होते हैं। थाइलैंड में हर साल 16 जनवरी को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाया जाता है। यहां 21 नवंबर, 1956 को एक प्रस्ताव लाकर शिक्षक दिवस को स्वीकृति दी गई थी। पहला शिक्षक दिवस 1957 में मनाया गया था। इस दिन यहां स्कूलों में अवकाश रहता है। ईरान में वहां के प्रोफेसर अयातुल्लाह मोर्तेजा मोतेहारी की हत्या के बाद उनकी याद में दो मई को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। मोतेहारी की दो मई, 1980 को हत्या कर दी गई थी। तुर्की में 24 नवंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वहां के पहले राष्ट्रपति कमाल अतातुर्क ने यह घोषणा की थी। मलेशिया में इसे 16 मई को मनाया जाता है, वहां इस खास दिन को `हरि गुरु` कहते हैं।

बहरहाल, शिक्षक दिवस मनाने का सही उद्देश्य तभी पूरा होगा जब शिक्षा को जन सामान्य के सभी तबकों के बच्चों तक समान रूप से मुहैया कराया जाएगा। इसकी जिम्मेदारी विशुद्ध रूप से सरकार की बनती है। अगर सरकार सचमुच गरीबों का हित चाहती है तो सबसे पहले शिक्षा के निजीकरण को खत्म करना होगा। क्योंकि इस निजीकरण से सैकड़ों प्रतिभावान छात्र धन के अभाव में अच्छी शिक्षा हासिल नहीं कर पाते हैं।

 

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