सवालों के घेरे में ग्रीनपीस इंडिया का 'पर्यावरण संरक्षण'
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सवालों के घेरे में ग्रीनपीस इंडिया का 'पर्यावरण संरक्षण'

ग्रीनपीस इंडिया की गतिविधियों पर पिछले दिनों केंद्र सरकार ने लगाम लगाने की कवायद की। संस्था की गतिविधियों को सवालों के कटघरे में ला खड़ा करते हुए केंद्र सरकार ने एनजीओ ग्रीनपीस इंडिया का लाइसेंस छह महीने के लिए सस्पेंड कर दिया। साथ ही संस्था के सभी सात बैंक अकाउंट भी तुरंत प्रभाव से फ्रीज कर दिए गए । सरकार ने कहा कि ये संस्था देश में जनहितों और आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचा रही थी इसलिए ऐसा किया गया। ग्रीनपीस इन आरोपों को खारिज करती है। ग्रीनपीस इंडिया को करीब 70 फीसद पैसा भारतीयों से मिलता है और गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि इस धन पर भी रोक लगाई जाए। सरकार के आरोपों से ग्रीनपीस इंडिया भले ही इंकार करे लेकिन उसकी गतिविधियों पर सवाल उठना स्वाभाविक है।

भारत में ग्रीनपीस के बारे में यह आरोप हमेशा से लगता रहा है कि पर्यावरण की आड़ में वह कुछ और गतिविधियों को अंजाम देती आई है। यहां तक कहा गया कि साजिशों के तहत उसकी देश की अर्थव्यवस्था पर गंदी नजर है और उसके आलोचकों ने ग्रीनपीस की मंशा पर हमेशा शक जाहिर किया और उसपर सवालिया निशान भी उठाए।
 
आईबी की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीनपीस के कामकाज पर सवाल उठना लाजिमी है। रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीनपीस इंडिया ने ट्रबल ब्रेविंग ऑन इंडियन टी नाम से एक रिसर्च पेपर जारी किया था। इस रिसर्च पेपर मे दावा किया गया कि देश के कई ब्रांड्स की चाय में खतरनाक कीटनाशक मौजूद है। जिन चाय के ब्रांड्स का जिक्र ग्रीन पीस ने किया वो अमेरिका ब्रिटेन और यूरोप में निर्यात होते है।

आईबी की रिपोर्ट मे खुलासा किया गया कि ग्रीनपीस ने चाय के नमूनों की जांच गुमनाम तरीके से की। यानी यह पता ही नहीं चला कि उसकी जांच का कौन सा पैमाना है और आधार क्या है। चाय के इन ब्रांड्स के नमूनों की जांच कि देश में कराई गई ग्रीन पीस ने इसे सार्वजनिक नहीं किया। आईबी की रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप के किसी देश की निजी लैब से भारतीय चाय पर रिपोर्ट तैयार करवाई गई । संस्था दावा करती है कि वह पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करती है। यह बात समझ से परे है कि भारतीय चाय को जानबूझकर खराब बताना किस पर्यावरण संरक्षण की कवायद है। इस तरह से तो भारत में किसी भी पैदावार पर वह सवालिया निशान उठा सकती है और उसमें कीटनाशक होने की बात कह सकती है। आज अगर उसने भारत के चाय पर उंगली उठाई है तो कल किसी और भी चीज को खराब बताने की साजिश कर सकती है। पर्यावरण संरक्षण पर काम करनेवाली संस्था का काम भला यह तो नहीं है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीनपीस विदेशी ताकतों के साथ मिलकर देश के चाय उद्योग को बर्बाद करने की साजिश रच रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारतीय चाय बोर्ड ग्रीनपीस की इस सर्वे या स्टडी से असहमत है। यह कहा गया कि ये पूरी तरह से भारत के चाय निर्यात को प्रभावित करने की साजिश है । ग्रीनपीस ने इंटरनेट का सहारा लेकर चाय उद्योग को बर्बाद करने की साजिश रची है। यह भी कहा गया कि देश की तरक्की को रोकने के लिए बड़े बड़े जगहों पर धरना प्रदर्शन के जरिए रोकने की प्लानिंग भी की है । रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में अर्थव्यवस्था विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया ग्रीनपीस इंडिया ने देश के खिलाफ काम किया।

जिस चाय के बारे में ग्रीनपीस ने सवाल उठाया वह चाय भारत की शान है। विदेशों के कई मुल्कों भारतीय चाय के स्वाद की तूती बोलती है। 2013 में चाय की वैश्विक पैदावार में भारत का हिस्सा 25 फीसदी था और 2014 में 11.76 फीसदी था। रिपोर्ट में कहा गया कि ग्रीनपीस भारतीय चाय उद्योग को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। भारतीय चाय उद्योंग में 35 लाख कर्मचारी काम करते हैं और इसे पिछले साल निर्यात से 64.4 करोड डॉलर की कमाई हुई थी।

गौर हो कि भारत विश्व में चाय के उत्पादक प्रमुख देशों में से एक है। यहां पैदा होनेवाली चाय दुनिया की सबसे बेहतरीन चायों में से शुमार होती है। चाय उगाने वाले प्रमुख क्षेत्र देश के पूर्वोत्तर भाग में हैं, जिनमें असम, दार्जिलिंग जिला और उत्तर बंगाल का दुआर क्षेत्र आता है। इसके अलावा दक्षिण भारत के नीलगिरि भी इन बड़े उत्पादकों में शामिल हैं। चाय उद्योग देश में रोजगार देने वाला दूसरा सबसे बड़ा उद्योग है। 1500 से ज्यादा चाय बागानों में लगभग 35 लाख से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं। वर्ष 2014 में, भारत में 118.50 करोड़ किलो चाय का उत्पादन किया गया था।

ग्रीन पीस संस्था फिलहाल चालीस देशों में मौजूद है। 2013 तक ग्रीनपीस के सदस्यों की संख्या 30 लाख थी । 2013 में ग्रीनपीस का बजट 150 मिलियन डालर्स था। गृह मंत्रालय के मुताबिक ग्रीनपीस इंडिया को पिछले सात साल में करीब 53 करोड़ का फंड हासिल हुआ। लेकिन इस तरह की संस्थाओं के कामकाज पर जब शक गहराता है तो ऐसा करना लाजिमी भी है। पहले भी ऐसा होता रहा है कि कई विदेश मुल्क भारत के बेहतरीन उत्पादों को बर्बाद और बदनाम करने की साजिश रचते रहे है।

 

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