आईबीएम का दावा है कि यह दुनिया का सबसे छोटा कंप्यूटर है, जिससे डिजिटल फिंगरप्रिंट से रोजमर्रा की वस्तुओं में एम्बेडेड किया जा सकता है.
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नई दिल्ली: आईबीएम (इंटरनेशनल बिजनेस मशीन कॉर्पोरेशन) का दावा है कि उसने दुनिया का सबसे छोटा कंप्यूटर बनाया है. कंपनी ने एक प्रोग्राम में इस माइक्रो कंप्यूटर को सबके सामने रखा. कंपनी का कहना है कि ये एक एंटी फ्रॉड डिवाइस है, जिससे डिजिटल फिंगरप्रिंट से रोजमर्रा की वस्तुओं में एम्बेडेड किया जा सकता है. फिलहाल, इसकी उत्पत्ति को सत्यापित किया जा सकता है. इस डिवाइस में एक चिप लगी है. इसके अंदर प्रोसेसर, मेमोरी और स्टोरेज सहित पूरा कंप्यूटर सिस्टम मौजूद है. कंपनी का दावा है कि अगले 5 साल में यह मार्केट में आ जाएगा और इसकी कीमत सिर्फ 7 रुपए होगी.
एंटी फ्रॉड डिवाइस
कंपनी का दावा है कि माइक्रो कंप्यूटर यानी ये डिवाइस एक एंटी फ्रॉड डिवाइस है. इसका मकसद ऐसी तकनीक विकसित करना है, जिससे प्रोडक्ट्स पर तकनीक की मदद से वाटर मार्क लगाया जा सके. इससे चोरी और धोखाधड़ी के मामलों में कमी आएगी.
क्रिप्टो एंकर प्रोग्राम डिवाइस
वन स्वॉयर मिलीमीटर साइज की इस डिवाइस को आईबीएम ने "क्रिप्टो एंकर प्रोग्राम" के तहत तैयार किया है. यही वजह है कि इसे एंटी फ्रॉड डिवाइस का नाम दिया गया है. कंपनी का दावा है कि इस डिवाइस की मदद से फैक्ट्री से निकलने से लेकर कंज्यूमर तक पहुंचने के बीच में प्रोडक्ट से होने वाली छेड़छाड़ को रोका जा सकता है. इस डिवाइस की मदद से काला बाजारी और खाद्य समस्याओं से निपटने के लिए उत्पाद में क्रिप्टोग्राफिक्स एंकर लगाए जा सकते हैं. जिससे सप्लाई चेन में होने वाली गड़बड़ी को तुरंत पकड़ा जा सकता है.
1 लाख ट्रांजिस्टर मौजूद
आइबीएम की इस डिवाइस में छोटी सी रेंडम एक्सेस मेमोरी, एलईडी, फोटो डिटेक्टर, फोटोवोल्टिक सेल के साथ 1 लाख ट्रांजिस्टर हैं. ये कंप्यूटर इतना छोटा और सस्ता है कि इसे कभी भी और कहीं भी रखा जा सकता है.
क्या है क्रिप्टो एंकर तकनीक
अपने ब्लॉग के जरिए आईबीएम के रिसर्चर अरविंद खन्ना ने कहा कि क्रिप्टो एंकर एक ऐसी तकनीक है जो नए समाधानों का मार्ग प्रशस्त करती है. इसके जरिए नकली वस्तुओं की पहचान, खाद्य सुरक्षा और इनकी प्रामाणिकता का पता लगाया जा सकता है. साथ ही आईबीएम इस तकनीक के अलावा लेटिस क्रिप्टोग्राफिक एंकर, एआई पावर रोबोट माइक्रोस्कोप और क्वांटम कंप्यूटर जैसी दूसरी तकनीक भी ला रहा है. जिससे पर्यावरण प्रदूषण, पानी की कमी और बढ़ते तापमान की समस्याओं को कम किया जा सकता है.