रिजर्व बैंक पर नीतिगत दरों में कटौती का बढ़ रहा दबाव
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रिजर्व बैंक पर नीतिगत दरों में कटौती का बढ़ रहा दबाव

रिजर्व बैंक पर मौद्रिक नीति की कल होने वाली तीसरी मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों में कटौती का दबाव बढ़ रहा है। हालांकि, विशेषज्ञ इस मुद्दे पर बंटे हुए हैं और उनका कहना है कि खुदरा मुद्रास्फीति उंची बनी हुई है जो कि रिजर्व बैंक को ऐसा करने से रोक सकती है। ज्यादातर बैंकरों और विशेषज्ञों का मानना है कि चार अगस्त को केंद्रीय बैंक द्वारा नीतिगत दरों में कटौती की संभावना कम है क्योंकि फिलहाल खुदरा मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर है और ऋण का उठाव कम है। इधर, उद्योग जगत नीतिगत दरों में कटौती की मांग कर रहा है क्योंकि थोकमूल्य आधारित मुद्रास्फीति कम है और औद्योगिक वृद्धि में नरमी है। यहां तक कि सरकार भी चाहती है कि नीतिगत दर कम रहे ताकि वृद्धि को प्रोत्साहन मिले।

रिजर्व बैंक पर नीतिगत दरों में कटौती का बढ़ रहा दबाव

नई दिल्ली : रिजर्व बैंक पर मौद्रिक नीति की कल होने वाली तीसरी मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों में कटौती का दबाव बढ़ रहा है। हालांकि, विशेषज्ञ इस मुद्दे पर बंटे हुए हैं और उनका कहना है कि खुदरा मुद्रास्फीति उंची बनी हुई है जो कि रिजर्व बैंक को ऐसा करने से रोक सकती है। ज्यादातर बैंकरों और विशेषज्ञों का मानना है कि चार अगस्त को केंद्रीय बैंक द्वारा नीतिगत दरों में कटौती की संभावना कम है क्योंकि फिलहाल खुदरा मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर है और ऋण का उठाव कम है। इधर, उद्योग जगत नीतिगत दरों में कटौती की मांग कर रहा है क्योंकि थोकमूल्य आधारित मुद्रास्फीति कम है और औद्योगिक वृद्धि में नरमी है। यहां तक कि सरकार भी चाहती है कि नीतिगत दर कम रहे ताकि वृद्धि को प्रोत्साहन मिले।

एसबीआई की अध्यक्ष अरंधति भट्टाचार्य ने कहा ‘मैं कोई उम्मीद नहीं कर रही हूं कि आरबीआई नीतिगत दरों में कटौती करेगा।’ उन्होंने कहा ‘थोकमूल्य आधारित सूचकांक शून्य से नीचे है लेकिन खुदरा मुद्रास्फीति में थोड़ी तेजी आई है। हालांकि, ऐसा मुख्य तौर पर खाद्य मूल्यों में बढ़ोतरी के कारण हुआ। रिजर्व बैंक नीतिगत दर को अब खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़ों से जोड़ रहा है, ऐसे में मुझे लगता है कि नीतिगत दरों में कटौती मुश्किल है।’ खुदरा मुद्रास्फीति जून में 5.4 प्रतिशत के आठ महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गई जबकि इसी माह में थोकमूल्य आधारित मुद्रास्फीति शून्य से 2.4 प्रतिशत नीचे रही।

आरबीआई नीतिगत दर पर फैसला करने के लिए मुख्य तौर पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को ध्यान में रखता है। अगली समीक्षा चार अगस्त को होनी है। बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी रंजन धवन ने कहा ‘यथास्थिति बरकरार रहेगी। मुझे नहीं लगता कि पिछली समीक्षा के मुकाबले वृहद्-आर्थिक स्थितियों में कोई खास बदलाव हुए हैं। आरबीआई मानसून पर नजर रखे हुए है। ऐसा कोई संकेत नहीं मिल रहा है कि मानसून अच्छा है या खराब।’

कुछ बैंकों का मानना है कि मुख्य दरों में और कटौती की कुछ गुंजाइश है। लेकिन केन्द्रीय बैंक इस समीक्षा में यह कटौती करता है अथवा नहीं यह अभी अटकलबाजी है। एचडीएफसी बैंक के उप प्रबंध निदेशक परेश सुक्थंकर ने कहा ‘आरबीआई मंगलवार को क्या करेगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है लेकिन ब्याज दर में गिरावट का रझान है। मैं उम्मीद करता हूं कि आरबीआई चालू वित्त वर्ष में 0.25-0.50 प्रतिशत की कटौती करेगा।’ पिछली नीतिगत समीक्षा में आरबीआई ने दो जून को इस साल लगातार तीसरी बार 0.25 प्रतिशत की कटौती की थी ताकि निवेश एवं वृद्धि बढ़ाई जा सके।

एचएसबसी इंडिया की भारतीय कारोबार की प्रमुख नैना लाल किदवई ने कहा ‘हम 0.25 प्रतिशत और साल के अंत तक 0.5 प्रतिशत कटौती की उम्मीद कर रहे हैं। यदि कटौती होनी है तो जल्दी क्यों नहीं। इससे उद्योग को फायदा होगा और वृद्धि प्रोत्साहित होगी।’ मानसून अब तक अच्छा रहा है और कृषि उत्पादों पर इसके असर का इंतजार है। उन्होंने कहा ‘हमारी चिंता सिर्फ आधार दर के बारे में नहीं है कि जो आरबीआई तय करेगी बल्कि बैंकिंग प्रणाली को ब्याज दर निवेश के लिए बेहद आकर्षक बनाना चाहिए।’

अनुसंधान कंपनी मूडीज एनेलिटिक्स ने भी कहा कि आरबीआई कल की द्वैमासिक समीक्षा में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर सकता है क्योंकि औसत बारिश और जिंस मूल्य में कमी के मद्देनजर मुद्रास्फीति के कम रहने की संभावना है। डीबीएस ने एक रपट में कहा ‘आरबीआई चार अगस्त की बैठक में रेपो दर को 7.25 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रख सकता है।’ उद्योग मंडल ऐसोचैम ने भी रेपो दर में 25 आधार अंक की कटौती की मांग की है।

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