आईआईटी के छात्रों ने निकाला पराली का इको-फ्रेंडली समाधान
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आईआईटी के छात्रों ने निकाला पराली का इको-फ्रेंडली समाधान

आईआईटी दिल्ली के छात्रों ने किसानों को ना सिर्फ पराली जलाने से मुक्ति की हार दिखाई है बल्कि इससे कमाई का तरीका भी बताया है. 

फाइल फोटो, PTI

नई दिल्लीः दिल्ली एनसीआर समेत पूरे उत्तर भारत की हवा जिस पराली से बर्बाद हो रही है. उसी बर्बादी की हवाओं पर आईआईटी दिल्ली के छात्रों ने कामयाबी का स्टार्ट अप तैयार दिखाया है. ये कामयाबी का ऐसा फार्मूला है जिससे प्लास्टिक, प्रदूषण और पराली तीन समस्याओं का हल निकाल लिया गया है. आईआईटी दिल्ली के छात्रों ने किसानों को ना सिर्फ पराली जलाने से मुक्ति की हार दिखाई है बल्कि इससे कमाई का तरीका भी बताया है. आईआईटी दिल्ली के ग्रामोदय केंद्र के कैंपस में खेतों से यहां तक पहुंची पराली से कैसे कमाई की जा रही है ये जानने के बाद पराली जला रहे किसान भी अपनी आदतें सुधार लेंगे.

आईआईटी दिल्ली के छात्र अंकुर के मुताबिक एक एकड़ धान के खेत से अमूमन दो टन पराली निकलती है. एक एकड़ खेल की पराली के बदले में किसान 3 से 5 हज़ार रुपए कमा सकता है. दरअसल दो टन पराली से एक टन रॉ मेटिरियल तैयार किया जा सकता है. रॉ मैटिरियल बाज़ार में 45 से 50 रुपए प्रति किलो पर आसानी से बिक सकता है. 

आईआईटी छात्रों की लैब में वाशिंग मशीन, प्रेशर कुकर, केमिकल्स बीटर और कुछ बाल्टियां रखी हुई हैं. यही सब मशीनें पराली की शक्ल बदलकर उसे कपड़े से लेकर प्लेट तक और कागज की शीट्स से लेकर फर्नीचर तक में ढालने लायक बना सकती है. आईआईटी की फैकल्टी और सरकार की फंडिंग की मदद से ये सक्सेस स्टोरी तो तैयार हो गई. अब सरकार से इस प्रोजेक्ट को बढ़ावा देने और खाओ-फेंको के नाम से बनाए गए इन इको-फ्रेंडली कप प्लेट को बाज़ार में जगह दिलाने भर की देर है.

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