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नई दिल्ली : हरियाणा की दमनकारी खाप पंचायतों द्वारा झूठी शान के नाम पर मौत का फरमान सुनाए जाने के मामलों में वाकई कोई हंसने वाली बात नहीं है। लेकिन फिल्म गुड्डू रंगीला हमारे समय की इस अंधेरी हकीकत को बड़े करीब से छूती है और एक मर्मस्पर्शी कहानी के साथ आगे बढ़ती है जो दर्शकों को बांधे रखती है और उनका मनोरंजन करती है।
सुभाष कपूर द्वारा लिखी और निर्देशित यह हास्य फिल्म बिना अधिक उतार चढ़ावों के उक्त क्रूरता पूर्ण विषय और नाटकीयता के बीच संतुलन बनाते हुए चलती है।
फिल्म कुछ जानेमाले कलाकारों के अभिनय से सजी है। इसकी एक और खासियत अमित त्रिवेदी की खूबसूरत आवाज से सजे गीत हैं तो कई दिलचस्प घटनाओं वाली पटकथा है, जो बड़े रोमांचक अंदाज में फिल्म को आगे बढ़ाती है।
लेकिन इन सबके बावजूद यह भी नहीं कहा जा सकता कि फिल्म अपने आप में संपूर्ण है। खासतौर पर अपेक्षा से उलट इसका अंत अजीब लगता है और इतना हास्यपूर्ण बना दिया गया है कि लड़ाई झगड़े वाली बाकी कहानी से मेल नहीं खाता।
गुड्डू रंगीला लोगों का मनोरंजन करने वाले दो गंवई लोगों की कहानी है जो स्थानीय गिरोहों को उन लोगों के घरों में जमा संपत्ति के बारे में बताते हैं जहां वे अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। वे इसी जरिये से कमाई भी करते हैं।
बहरहाल गुड्डू (अमित साध) और रंगीला (अरशद वारसी) के लिए ये सब नाच गाना ही सबकुछ नहीं है। उनका एक दुखभरा अतीत भी है जिसमें उनका सीधा टकराव बिल्लू पहलवान नाम के स्थानीय गुंडे से होता है जो राजनीतिक तौर पर महत्वाकांक्षी है। इस किरदार में रोनित रॉय दिखाई देंगे।
दोनों कलाकार खुद को परेशानियों से बचाने के लिए पूरी कोशिश करते हैं लेकिन एक और छोटे मोटे अपराधी की रची अपहरण की साजिश में फंस जाते हैं। इस अपराधी की भूमिका में दिब्येंदु भट्टाचार्य दिखाई देंगे। इस तरह कहानी आगे बढ़ती है।