फिल्म निर्देशक रेंसिल डिसिल्वा की फिल्म 'उंगली' आज सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई। व्यवस्था को लेकर 'रंग दे बसंती' जैसी उम्दा फिल्म लिखने वाले रेंसिल इस बार अपनी पटकथा में कमजोर दिखे हैं। रेंसिल ने फिल्म में भ्रष्टाचार जैसा अहम विषय उठाया है लेकिन वह इस फिल्म को प्रभावी नहीं बना सके हैं। देश में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है और इस समस्या का विरोध करने के लिए रेंसिल ने अपनी फिल्म के जरिए एक नया तरीका पेश किया है जो पंसद आ सकता है।
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नई दिल्ली : फिल्म निर्देशक रेंसिल डिसिल्वा की फिल्म 'उंगली' आज सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई। व्यवस्था को लेकर 'रंग दे बसंती' जैसी उम्दा फिल्म लिखने वाले रेंसिल इस बार अपनी पटकथा में कमजोर दिखे हैं। रेंसिल ने फिल्म में भ्रष्टाचार जैसा अहम विषय उठाया है लेकिन वह इस फिल्म को प्रभावी नहीं बना सके हैं। देश में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है और इस समस्या का विरोध करने के लिए रेंसिल ने अपनी फिल्म के जरिए एक नया तरीका पेश किया है जो पंसद आ सकता है।
यह फिल्म चार दोस्तों की कहानी है। माया (कंगना रानाउत), अभय (रणदीप हुड्डा), गोटी (नील भूपलम), कलीम (अंगद बेदी) की कहानी है। माया अस्पताल में इंटर्न है जबकि अभय पत्रकार है। ये सभी किरदार भ्रष्टाचार से बेहद खफा हैं। सभी मिलकर एक गिरोह 'उंगली' बनाते हैं जो भ्रष्ट व्यवस्था और भ्रष्ट लोगों का विरोध करता है। यह गिरोह अपने तरीके से लोगों को न्याय दिलाता है। यही नहीं यह गिरोह अपने दोस्त अरूणोदय के साथ हुई नाइंसाफी का बदला भी लेता है।
रेंसिल इससे पहले 'रंग दे बसंती' जैसी फिल्म लिख चुके हैं, उनसे उम्मीद थी कि वह उसी ढर्रे पर 'उंगली' को भी पेश करेंगे लेकिन रेंसिल 'रंग दे बसंती' जैसा प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं। फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि रेंसिल एक अच्छे विषय के साथ न्याय नहीं कर सके हैं। फिल्म की कहानी औसत है और वह धीरे-धीरे आगे बढ़ती है। अभिनय की अगर बात करें तो रणदीप और इमरान अपने किरदार में जमे है। संजय दत्त ने भी अपनी भूमिका के साथ इंसाफ किया है। हालांकि, कंगना के अभिनय में वह निखार नहीं दिखा है जो क्वीन में है। कंगना का अभिनय कमजोर है। जबकि नेहा धूपिया, अंगद बेदी ने ठीक-ठाक भूमिका निभाई है।
फिल्म की संवाद अदायगी अच्छी है। संगीत औसत है। कुल मिलाकर फिल्म एक बार देखी जा सकती है।