भारत में साल 2025 तक 6 करोड़ लोग हो सकते हैं घुटने की बीमारी से ग्रस्त
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भारत में साल 2025 तक 6 करोड़ लोग हो सकते हैं घुटने की बीमारी से ग्रस्त

आर्थराइटिस की समस्या तब शुरू होती है, जब घुटनों के जोड़ में जैली जैसे पदार्थ कार्टिलेज में घिसाव होने लगता है.

कम उम्र के लोगों में आर्थराइटिस के मामले जितनी तेजी से बढ़ रहे हैं

नई दिल्ली: घुटनों के दर्द को मामूली दर्द समझकर युवा नजर अंदाज कर देते हैं. वहीं बुजुर्ग इसे उम्र का तकाजा मानकर शांत बैठ जाते हैं. लेकिन घुटनों का यह दर्द ओस्टियोआर्थराइटिस यानी गठिया भी हो सकता है. आंकड़ों के अनुसार अगर घुटने के दर्द के मामलों की यही स्थिति रही तो साल 2025 तक भारत में 6 करोड़ से भी ज्यादा लोगों के इस बीमारी से प्रभावित होने का पूवार्नुमान है. 

आर्थराइटिस की समस्या तब शुरू होती है, जब घुटनों के जोड़ में जैली जैसे पदार्थ कार्टिलेज में घिसाव होने लगता है. इससे घुटने की हड्डियां आपस में रगड़ने लगती है और घुटने में सूजन, अकड़न और दर्द होने लगता है. हालांकि यह बीमारी उम्र बढ़ने और अनुवांशिक कारणों से भी हो सकती है. लेकिन कम उम्र के लोगों में आर्थराइटिस के मामले जितनी तेजी से बढ़ रहे हैं. इसका कारण लोगों का कसरत और सैर न करना, संतुलित आहार न लेना, सारा दिन बैठे रहना और मोटापा है. 

हरियाणा के क्यूआरजी हेल्थ सिटी के ओर्थोपेडिक्स व जवॉइंट रिप्लेसमेंट विभाग के डॉयरेक्टर डॉ. युवराज कुमार के मुताबिक, 'आर्थराइटिस के शुरुआती इलाज के विकल्पों में दवाइयां, फिजियोथेरेपी, खानपान में बदलाव, वजन नियंत्रण और कसरत जैसी गतिविधियां शामिल हैं. यह समझना महत्वपूर्ण है कि कार्टिलेज के डिजनरेशन को रोकना संभव नहीं है. लेकिन जीवनशैली में बदलाव कर इस बीमारी की गति को कम किया जा सकता है. अगर मरीज समय रहते घुटनों की अकड़न, सूजन और दर्द पर ध्यान न दे तो उसे चलने फिरने में दिक्कत होने लगती है. कई बार तो दर्द इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि मरीज बिस्तर पर आ जाते हैं'.

नई दिल्ली के मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशिएलटी अस्पताल के ओर्थोपेडिक्स विभाग के सीनियर डॉयरेक्टर और नी व शोल्डर यूनिट के हेड डॉ. जे. महेश्वरी ने कहा, 'आजकल टोटल नी रिप्लेसमेंट (टीकेआर) में कई ऐसे आधुनिक नी इंप्लांट आ गए हैं. जो बिल्कुल प्राकृतिक घुटनों की तरह काम करते है. यह करीब 15 से 20 साल तक चलते हैं. रोगी सर्जरी के बाद उसी दिन या दो दिन के भीतर वॉकर की सहायता से चलने लगते हैं. उन्हें अस्पताल से तब डिस्चार्ज कर दिया जाता है, जब वह टॉयलेट बिना किसी की सहायता के जाने लगते हैं. अगले कुछ हफ्तों के लिए उन्हें घर पर ही फिजियोथेरेपी की सलाह दी जाती है. ज्यादातर रोगी 6 हफ्ते में बिना किसी की मदद लिए घर में छड़ी से चलने लगते हैं. मरीज को संपूर्ण रूप से सामान्य होने में करीब तीन महीने लगते है'.

टीकेआर के विभिन्न नी इंप्लांट कई देशों में दशकों से इस्तेमाल किए जा रहे हैं. जिनका सफल क्लिनिकल डेटा ट्रैक रहा है. इन्हें ऐसे डिजाइन किया गया है, जिससे मरीज लगभग सभी तरह की गतिविधियां जैसे कि सीढ़ियां चढ़ना-उतरना, कसरत, ड्राइविंग और तैराकी आसानी से कर सकते हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि मरीज दर्दमुक्त होकर सुकून से जीवन जी पाते हैं. 

(इनपुट-आईएएनएस)

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