कृत्रिम मेधा प्रणाली अनुभवी त्वचा विशेषज्ञों से बेहतर तरीके से त्वचा के कैंसर की पहचान कर सकती है.
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बर्लिन: कृत्रिम मेधा प्रणाली अनुभवी त्वचा विशेषज्ञों से बेहतर तरीके से त्वचा के कैंसर की पहचान कर सकती है. एक अध्ययन से यह जानकारी मिली है. अनुसंधानकर्ताओं ने कृत्रिम मेधा के एक प्रकार को या कॉन्वोल्यूशनल न्यूरल नेटवर्क (सीएनएन) के नाम से पहचाने जाने वाले एक मशीन को त्वचा कैंसर की पहचान करने के लिए 100,00 से अधिक तस्वीरें दिखाई , इन तस्वीरों में त्वचा कैंसर के सबसे घातक रूप मेलिग्नेंट मेलानोमस सहित बिनाइन मोल्स भी था.
इसके बाद अनुसंधानकर्ताओं ने इनकी तुलना दुनिया के 58 त्वचा विशेषज्ञों से की और पाया कि इन विशेषज्ञों की तुलना में सीएनएन कुछ ही त्वचा कैंसरों को पहचानने में असमर्थ रहा. हालांकि अनुसंधानकर्ता यह नहीं मानते हैं कि सीएनएन त्वचा कैंसर पहचानने के मामले में त्वचाविशेषज्ञों के ऊपर महारत हासिल कर लेगा लेकिन इसका इस्तेमाल अतिरिक्त सहायता के रूप में किया जा सकता है.
विटामिन थेरेपी कम कर सकती है त्वचा कैंसर का खतरा
वैज्ञानिकों के अनुसार विटामिन बी3 के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली थेरेपी संभवत: मेलेनोमा नामक घातक त्वचा कैंसर के खतरे को कम कर सकती है. इन वैज्ञानिकों में भारतीय मूल का एक वैज्ञानिक भी शामिल है. ऑस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि निकोटिनामाइड, डीएनए में हुई क्षति, सूजन और पराबैंगनी विकिरण की वजह से कम हो रही रोग- प्रतिरोधक क्षमता घटाने और उसे उलटने में मदद कर सकता है.
शोधकर्ताओं ने कहा कि डॉक्टर की सलाह पर हर दिन एक ग्राम निकोटिनामाइड लेने पर इसका प्रति माह खर्च 10 अमेरिकी डॉलर आता है. उन्होंने कहा कि मेलेनोमा की रोकथाम के लिए इसकी क्षमता तथा सुरक्षा को निर्धारित करने के लिए यादृच्छिक प्लेसबो नियंत्रित परीक्षण अब जरूरी है.
पराबैंगनी विकिरण (यूवीआर) मेलेनोसाइट्स में डीएनए को क्षति पहुंचाता है. शोधकर्ताओं ने बताया कि निकोटीनमाइड (विटामिन बी 3) डीएनए की क्षति को ठीक करता है, यूवीआर द्वारा जो सूजन होती है उसे नियंत्रित करता है और यूवी किरणों से रोग-प्रतिरोधक क्षमता में आने वाली गिरावट को कम करता है.
इनपुट भाषा से भी