शोधकर्ताओं के अनुसार जैविक मांस और जैविक डेयरी उत्पाद भी जलवायु को हानि पहुंचाने में इसके मौजूदा तौर तरीकों से कहीं अधिक नुकसान दायक हो सकते हैं.
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लंदन: मौजूदा समय में की जा रही परंपरागत खेती की तुलना में जैविक ढंग से होने वाली खेती जलवायु के लिए अधिक खतरा पैदा कर सकती है, क्योंकि इसके लिए अधिक भूमि की आवश्यकता होती है. एक अध्ययन में यह बात सामने आई है. इस अध्ययन में कहा गया है कि इसकी वजह यह है कि जैविक खेती से मौजूदा मात्रा में कृषि उत्पाद हासिल करने के लिए अधिक जमीन की जरूरत होती है और यह जंगलों को नष्ट करके ही हासिल की जा सकेगी जिससे मौजूदा उत्सर्जन पर असर पड़ सकता है.
स्वीडन की चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के अनुसंधानकर्ताओं ने शोध में पाया है कि उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से हो रही मौजूदा खेती की अपेक्षा बिना इनकी मदद से होने वाली जैविक खेती से जलवायु
पर अधिक खराब असर हो सकता है. यह निष्कर्ष जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है. इसमें कहा गया है कि जैविक खेती की वजह से उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हो सकती है. शोधकर्ताओं के समूह में शामिल सहायक प्रोफेसर स्टीफन विरेनियस ने कहा, ''हमारा अध्ययन बताता है कि स्वीडन में जब जैविक मटर की खेती की गई तो पता चला कि उर्वरक और कीटनाशक आधारित खेती की तुलना में इसका जलवायु पर 50 फीसदी से अधिक प्रभाव पड़ता है.''
उन्होंने बताया कि न केवल मटर बल्कि दूसरी फसलों के मामले में यह उत्सर्जन और अधिक हो सकता है. उन्होंने बताया कि मिसाल के तौर पर स्वीडन में जाड़े में गेहूं की फसल में यह अंतर 70 फीसदी से अधिक का
हो सकता है. शोधकर्ताओं ने पाया कि इसकी वजह यह है कि जैविक खेती में उत्पादकता का स्तर गिर जाता है यानी उपज पहले से कम हो जाती है, क्योंकि उर्वरकों का प्रयोग नहीं होता. अब उत्पादकता का स्तर पहले जैसा बनाए रखने के लिए अधिक जमीन की जरूरत पड़ेगी. इस अधिक जमीन का प्रयोग कार्बन डाई ऑक्ससाइड के अधिक उत्सर्जन से सीधे संबंधित है क्योंकि तब हमें जमीन पाने के लिए और अधिक वनों को उजाड़ना होगा.
शोधकर्ताओं के अनुसार जैविक मांस और जैविक डेयरी उत्पाद भी जलवायु को हानि पहुंचाने में इसके मौजूदा तौर तरीकों से कहीं अधिक नुकसान दायक हो सकते हैं. हालांकि, बहुत ठोस ढंग से इस पर कुछ कहा नहीं जा
सकता. शोधकर्ताओं ने इसके लिए नई प्रणाली ''कार्बन अपॉरचुनिटी कॉस्ट'' का प्रयोग किया है.
(इनपुट भाषा से)