1993 मुंबई बम ब्लास्ट: याकूब मेमन की फांसी पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
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1993 मुंबई बम ब्लास्ट: याकूब मेमन की फांसी पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

उच्चतम न्यायालय ने 1993 के मुंबई बम विस्फोट कांड में मौत की सजा पाने वाले एकमात्र दोषी याकूब अब्दुल रजाक मेमन को कल दी जाने वाली फांसी पर रोक लगाने से आज इंकार कर दिया। न्यायालय ने फांसी के फंदे से बचने की उसकी आखिरी गुहार को अस्वीकार कर दिया।

1993 मुंबई बम ब्लास्ट: याकूब मेमन की फांसी पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने 1993 के मुंबई बम विस्फोट कांड में मौत की सजा पाने वाले एकमात्र दोषी याकूब अब्दुल रजाक मेमन को कल दी जाने वाली फांसी पर रोक लगाने से आज इंकार कर दिया। न्यायालय ने फांसी के फंदे से बचने की उसकी आखिरी गुहार को अस्वीकार कर दिया।

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, प्रफुल्ल सी पंत और न्यायमूर्ति अमिताव राय की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि दोषी को मौत की सजा पर नागपुर में कल अमल के लिये मुंबई में टाडा अदालत द्वारा 30 अप्रैल को जारी मौत के फरमान में कोई कानूनी खामी नहीं है। याकूब मेमन कल 53 साल का हो जायेगा। न्यायालय ने कहा, मौत की सजा पर अमल के लिये जारी वारंट सही है और हमें इसमें किसी प्रकार की ‘कानूनी खामी’ नहीं मिली। इसके परिणामस्वरूप, रिट याचिका (मेमन द्वारा दायर) में मेरिट का अभाव है और यह खारिज की जाती है। न्यायालय ने कहा कि शीर्ष अदालत के वरिष्ठतम न्यायाधीशों द्वारा सुधारात्मक याचिका खारिज किया जाना सही था।

पीठ ने कहा, इसके मद्देनजर हम यह निर्णय करते हैं कि तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों द्वारा सुधारात्मक याचिका पर किये गये फैसले में त्रुटि नहीं पायी जा सकती। न्यायालय ने कहा कि वह 21 जुलाई को सुधारात्मक याचिका खारिज होने के बाद महाराष्ट्र सरकार द्वारा मेमन की दूसरी दया याचिका अस्वीकार किये जाने के मामले में नहीं जाना चाहता।

न्यायालय ने मेमन की इस दलील को ठुकरा दिया कि दया प्रदान करने सहित उसके सारे कानूनी विकल्प अभी खत्म नहीं हुये थे। न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति ने 11 अप्रैल, 2014 को उसकी दया याचिका खारिज कर दी थी और इसकी जानकारी उसे 26 मई, 2014 को दी गयी थी। पीठ ने कहा, पहली दया याचिका खारिज होने के बाद उसने इसे चुनौती नहीं दी और 22 जुलाई, 2015 को उसकी सुधारात्मक याचिका अस्वीकार होने के बाद उसने दूसरी दया याचिका दायर की। हालांकि दूसरी दया याचिका पर विचार होगा, हम इसपर गौर नहीं करने जा रहे। न्यायालय ने मेमन की इस दलील को भी अस्वीकार कर दिया कि मौत का फरमान उसे सुने बगैर ही जारी किया गया और दया याचिका खारिज होने के बाद उसे फांसी देने के बारे में सूचना देने के लिये 14 दिन की निर्धारित समय अवधि का भी पालन नहीं किया गया। मेमन की याचिका पर कल दो न्यायाधीशों के खंडित आदेश के बाद प्रधान न्यायाधीश ने तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित की थी।

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 21 जुलाई को मेमन की सुधारात्मक याचिका खारिज करते हुये कहा था कि राहत के लिये इसमें उठाये गये मुद्दे सुधारात्मक याचिका के संबंध में शीर्ष अदालत के 2002 के फैसले में प्रतिपादित सिद्धांतों के दायरे में नहीं आते हैं। मेमन ने दावा किया था कि वह 1996 से सिजोफ्रेनिया से पीड़ित है और करीब 20 साल से जेल में बंद हैं जो कि उम्र कैद की अवधि से भी अधिक है। मेमन ने इससे पहले मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने का अनुरोध करते हुये कहा था कि दोषी को एक ही अपराध के लिये उम्र कैद और मौत की सजा दोनों नहीं दी जा सकती है। शीर्ष अदालत ने दो जून, 2014 को मेमन की मौत की सजा के अमल पर रोक लगाते हुये उसकी याचिका इस सवाल के साथ संविधान पीठ के पास भेज दी थी कि क्या मौत की सजा के मामलों में पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई चेंबर की बजाये खुले न्यायालय में होनी चाहिए।

न्यायालय ने इस साल नौ अप्रैल को याचिका खारिज कर दी थी जिसमें 21 मार्च, 2013 को उसकी मौत की सजा बरकरार रखने के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया गया था। संविधान पीठ की व्यवस्था के आलोक में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने चैंबर में विचार करने की परंपरा से हटकर मेमन की पुनर्विचार याचिका पर खुले न्यायालय में सुनवाई की थी। मुंबई में 12 मार्च, 1993 को सिलसिलेवार तरीके से 12 बम विस्फोट हुये थे जिनमें 257 व्यक्ति मारे गये थे और सात सौ से अधिक जख्मी हुये थे।

 

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