1971 में भी इंदिरा गांधी के खिलाफ कई राजनीतिक दल मसलन कांग्रेस(ओ), जनसंघ, स्वातंत्र्य पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी(पीएसपी), सम्युक्त सोशलिस्ट पार्टी(एसएसपी) ने भी इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता दिखाते हुए महागठबंधन बनाया था.
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पिछले दिनों कैराना समेत कुल 14 लोकसभा और विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी के निराशाजनक प्रदर्शन और विपक्ष की बढ़ती एकजुटता के बीच राजनीतिक विश्लेषक ये कयास लगाने लगे हैं कि 2019 के आम चुनावों में बीजेपी को बड़ा झटका लग सकता है. हालांकि अतीत के चुनावों को यदि इस कसौटी पर कसा जाए तो तस्वीर थोड़ी भिन्न दिखती है. द टाइम्स ऑफ इंडिया में मशहूर स्तंभकार स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर ने इसी कड़ी में लिखा है कि दरअसल चुनाव अंकगणित से नहीं बल्कि कैमिस्ट्री से जीते जाते हैं.
इंदिरा गांधी का प्रभाव
अपनी बात के विस्तार के क्रम में अय्यर ने अपने आर्टिकल में कहा है कि 1971 में भी इंदिरा गांधी के खिलाफ कई राजनीतिक दल मसलन कांग्रेस(ओ), जनसंघ, स्वातंत्र्य पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी(पीएसपी), सम्युक्त सोशलिस्ट पार्टी(एसएसपी) ने भी इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता दिखाते हुए महागठबंधन बनाया था. कागज पर अंकगणित के लिहाज से इस गठबंधन के पास आंकड़े थे. इसके आधार पर आकलन किया जा रहा था कि इनका सामूहिक वोट एकजुट होकर इंदिरा गांधी को परास्त कर देगा लेकिन इन सबके बावजूद इनको सफलता नहीं मिली.
इसका कारण यह था कि करिश्माई इंदिरा गांधी की जनता के साथ जबर्दस्त कैमिस्ट्री थी. कमोबेश जिस तरह आज पीएम नरेंद्र मोदी की जनता के साथ कैमिस्ट्री है, उस दौर में इंदिरा गांधी के साथ भी कुछ ऐसा ही था. वह भी जनता के साथ सीधे जुड़ी हुई थीं. उनसे सीधा संवाद करती थीं. इसका असर यह हुआ कि विपक्षी एकजुटता भी उनको परास्त नहीं कर सकी. इसके पीछे एक अन्य बड़ी वजह यह भी थी कि अंकगणित के आधार पर यह कहा जाता है कि विपक्षी एकजुटता के नाम पर एक पार्टी के समर्थक उस प्रत्याशी को वोट देते हैं जिसको वह पार्टी समर्थन देती है. जबकि वास्तव में ऐसा होता नहीं है. इसका कभी-कभी उलटा असर भी होता है और समर्थक नाराजगी में दूसरे दल को वोट दे देता है. इसका उदाहरण 2017 में यूपी में सपा और कांग्रेस के गठबंधन से समझा जा सकता है. समर्थकों ने इस गठबंधन को स्वीकार नहीं किया और इन दलों के एक-दूसरे के प्रत्याशियों को वोट ट्रांसफर नहीं हो पाया.
1971 का आम चुनाव
उस वक्त 518 लोकसभा सीटें थीं. कांग्रेस में विभाजन(1969) की पृष्ठभूमि में चुनाव हुए. उस विभाजन में पीएम इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निकाल दिया गया. इंदिरा गांधी ने अपने नए ग्रुप को कांग्रेस(आर) कहा. कांग्रेस में 'सिंडिकेट' धड़े का नेतृत्व करने वाले मोरारजी देसाई के खेमे को कांग्रेस(ओ) कहा गया.
उस आम चुनाव में कांग्रेस(ओ) ने जनसंघ, स्वातंत्र्य पार्टी, सम्युक्त सोशलिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ मिलकर नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट या एलायंस का गठन किया. यह विपक्षी एकजुटता इसके बावजूद इंदिरा गांधी के चुनावी रथ को नहीं रोक पाई. इंदिरा गांधी की पार्टी को 352 सीटें मिलीं. यह पिछली बार की तुलना में 93 सीटें अधिक थीं और मत प्रतिशत 43.68% था. इसकी तुलना में विपक्षी गठबंधन को केवल 51 सीटें मिलीं. पिछली बार की तुलना में 65 सीटों का नुकसान हुआ और मत प्रतिशत 24.34% रहा.