भोपाल गैस त्रासदी: पिंटू को नहीं भूलती वो हांफती हुई रात
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भोपाल गैस त्रासदी: पिंटू को नहीं भूलती वो हांफती हुई रात

सुबह के तीन बज चुके थे. मामला धीरे धीरे साफ हो गया था टीला जमालपुरा से चंद किमी दूर पर बने यूनियन कार्बाइड से गैस का रिसाव हुआ था जिसने हवा में ज़हर घोल दिया था. लोग अब संभलने की कोशिश कर रहे थे. इसी जद्दोज़हद में सूरज की किरणों ने पड़ना शुरू कर दिया था. पिंटू गीली रजाई को समेटे सो रहा था, उसकी मां ने अब धीरे से गीली रज़ाई को हटा कर घर से लाकर एक कंबल उसे ओढ़ा दिया था.

भोपाल गैस त्रासदी: पिंटू को नहीं भूलती वो हांफती हुई रात

रात के करीब 12 बज रहे थे. पिंटू अभी भी जाग रहा था, वो बार बार मच्छरदानी के अंदर से बाहर झांकता. उसके डैडी उसे कई बार सोने के लिए डांट चुके थे लेकिन पिंटू की आंखो में नींद का नामोनिशान नहीं था. सामने चलती हुई पोर्टेबल ब्लेक एंड व्हाइट टीवी ने पिंटू की नींद उड़ा कर रख दी थी. वैसे भी जब से दूरदर्शन ने घर-घर में जगह बनाई थी सभी घर का यही हाल था. छोटे पर्दे ने लोगों के जिंदगी को बदल कर रख दिया था. उस वक्त भी दूरदर्शन पर कोई कला फिल्म आ रही थी, पिंटू को जिसके ओर छोर का पता नहीं था. लेकिन 14 इंच के उस स्क्रीन पर चलते हुए दृश्य ने साढ़े चार साल के पिंटू को जगा रखा था. बस अब पिंटू के मार खाने का वक्त नज़दीक आ रहा था क्योंकि उसके डैडी उसे कई बार सोने के लिए बोल चुके थे. जिसमें एक बार वो उनसे ये कहते हुए कि टीवी चलेगी तो देखना तो पड़ेगा ही बहस कर चुका था. कला फिल्म की कला ने अब तक डैडी के हाथ बांध कर रखे हुए थे. आखिर पिंटू के आगे उसके डैडी को हार माननी पड़ी और फिल्म भी खत्म होने पर थी. रात के करीब पौने एक बज चुके थे. 

डैडी ने टीवी बंद की और कमरे की लाइट भी बंद कर दी हालांकि उन्हें रात में जागने की आदत थी तो वो अपनी किताब लेकर पढ़ने की तैयारी में थे लेकिन पिंटू के इरादों ने उन्हें बत्ती बंद करने पर मजबूर कर दिया था. लाइट बंद करके वो नीचे लगे अपने बिस्तर पर लेटे ही थे कि अचानक पिंटू ने ज़ोर ज़ोर से चीखना शुरू कर दिया. उसे आंखों में अचानक बहुत जलन महसूस हो रही थी, वो अपनी तोतली ज़बान में मिर्ची लग रही है चिल्ला रहा था. 

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उसके दोनों बड़े भाई भी अब तक उठ चुके थे औऱ उन्हें भी आंखों में जलन हो रही थी, यही नहीं वो लोग सांस भी नहीं ले पा रहे थे. पिंटू के डैडी-मम्मी कुछ समझ ही नहीं पा रहे थे कि आखिर ये हो क्या रहा है. पूरे घर में एक अजीब सी धांस भर गई थी. सभी की आंखो में बुरी तरह जलन मच रही थी. बाहर से शोरगुल की आवाज़ आ रही थी. पिंटू का चीखना जारी था. उसके डैडी को कुछ सूझ नहीं रहा था. 

उन्होंने दरवाज़ा खोल कर बाहर पता करने को सोचा लेकिन लगता था बाहर से किसी ने दरवाज़ा बंद कर दिया था. एक कमरे औऱ किचिन के उस मकान में जिसमें हवा आने के लिए महज़ एक रोशनदान ही था. किराये पर देने के मकसद से ही बने हुए उस घर के दरवाज़े से लगी हुई नाली से उठती हुई बदबू के साथ सर्द हवा और एक अजीब सी घुटन मिलकर धीरे- धीरे कमरे के अंदर पसरती जा रही थी. ये घुटन क्या थी, क्यों थी, कैसे थी ? इसका जवाब किसी के पास नहीं था और शायद जवाब की चाहत भी अभी किसी को नहीं थी. अभी अंदर जूझता परिवार बस उस घुटन से बचना चाहता था. 

तभी पिंटू के डैडी ने बाहर से किसी के चीखने की आवाज़ सुनी, कोई पानी में भीगा कपड़ा मुंह पर रखऩे को कह रहा था. पिंटू के डैडी ने आव देखा ना ताव कमरे से लगे हुए किचन में रखी हुई पानी की टंकी से लोटा भर कर पानी निकाला और पिंटू और उसके भाइयों पर फेंकना शुरू कर दिया था. दिसंबर की सर्द रात में ठंडे पानी ने ठिठुरते साढ़े चार साल के पिंटू की हिम्मत ने जवाब दे दिया था और वो अपनी मां की गोद में गिर पड़ा. वहीं छह साल औऱ आठ साल बड़े उसके भाई ठिठुरते हुए टुकड़ों-टुकड़ों में जिंदगी को बटोरने में लगे हुए थे.

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गोद में पड़े हुए पिंटू को देखकर उसकी मां ने अब सारी उम्मीदें छोड़ दी थी लेकिन उखड़ती सांसों ने उसे इस कदर मजबूर कर दिया था कि वो चीख भी नहीं पा रही थी और रो भी नहीं पा रही थी. उधर पिंटू के डैडी ने दरवाजे को पीटना शुरू कर दिया. थोड़ी देर बाद शायद किसी ने दरवाज़ा खोला और पिंटू को गोद में लिए हुए उसकी मां, दोनो बड़े भाई और डैडी बदहवास से बाहर निकले. बाहर अजीबो गरीब नज़ारा था, चारों तरफ लोग भाग रहे थे. कोई नहीं जानता था वो कहां भाग रहे है, बस भागे जा रहे थे. बेतहाशा, बदहवास, इधर से उधर.   

तभी मोहल्ले में रहने वाले मनवानी ने घुटन भरी हवा में एक सलाह छोड़ी कि पानी में विक्स घोल उसके कपड़े को मुंह पर लगा कर देखते हैं. लेकिन इतनी रात में विक्स आएगी कहां से जितनी तेजी से ये सवाल लोगों के दिमाग में कौंधा उतनी ही तेजी के साथ उन्हें एक आवाज़ सुनाई थी. ये आवाज़ दुकान के शटर खुलने की थी. सामने किराने की दुकान चलाने वाले गुप्ता जी अपनी  दुकान को खोलकर विक्स निकालना शुरू कर चुके थे. एक विक्स की शीशी से सारी विक्स निकाल कर उसे बाल्टी में घोल कर पिंटू के डैडी ने वहीं चबूतरे पर बैठी पिंटू की मां उसके दोनो भाई पर घऱ से लाकर रजाई डाली और बाल्टी भर पानी उड़ेल दिया. कड़कती सर्दी में ठंडे विक्स भरे पानी ने पिंटू को होश में ला दिया वो ज़ोर ज़ोर से रोने लगा लेकिन अब उसे मिर्ची लगना बंद हो गई थी. लेकिन अभी भी सब हांफ रहे थे. कुछ ठंड में गीली रजाई ने उनकी सांसों को तेज कर दिया था कुछ हवा में सांस नहीं थी. क्यों नहीं थी? क्या हुआ था? 

ये सबके लिए राज बना हुआ था. तभी पड़ोस में रहने वाले गणेशी अंकल ने पिंटू की नाक पर थोड़ी विक्स लगाई. हैरत की बात थी कि गणेशी अंकल भाग भाग कर सबको देख रहे थे लेकिन वो दूसरों की तरह हांफ नहीं रहे थे. पिंटू तो मन ही मन गणेशी अंकल को हीरो मान चुका था. वैसे गणेशी को इस तरह सबकी मदद करते देख सभी हैरत में थे, ऐसा नहीं था कि गणेशी कोई खराब आदमी थे लेकिन उनकी दारू पीने की आदत से सभी वाकिफ थे. 

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ऐसे में उनके इस तरह से सक्रिय होने ने सबको हैरत में डाल दिया था. सब यही सोच रहे थे कि आखिर गणेशी को कुछ क्यों नहीं हो रहा है. खैर लेकिन ये विचार ज्यादा देर तक टिका नहीं क्योंकि टूटती सांसों के बीच विचार दिमाग तक पहुंचने से पहले ही बुलबुले की तरह फूट रहे थे. सड़कों पर भागते हुए हर इंसान की बस इतनी सी ख्वाहिश थी कि उन्हें एक लंबी सी सांस मिल जाए जिसे वो समेट कर अपने फेफड़ों में वैसे ही हवा भर ले जैसे कोई घरेलू महिला पैसों को जोड़ती है ताकि वो मुसीबत में उन्हें धीरे-धीरे निकाल सके. 

सुबह के तीन बज चुके थे. मामला धीरे धीरे साफ हो गया था टीला जमालपुरा से चंद किमी दूर पर बने यूनियन कार्बाइड से गैस का रिसाव हुआ था जिसने हवा में ज़हर घोल दिया था. लोग अब संभलने की कोशिश कर रहे थे. इसी जद्दोज़हद में सूरज की किरणों ने पड़ना शुरू कर दिया था. पिंटू गीली रजाई को समेटे सो रहा था, उसकी मां ने अब धीरे से गीली रज़ाई को हटा कर घर से लाकर एक कंबल उसे ओढ़ा दिया था. बाहर सब लोग अपने सामान को समेट रहे थे और ये सोचने समझने की कोशिश कर रहे थे कि कहीं ये रात में देखा कोई बुरा सपना तो नहीं था. कहीं ऐसा तो नहीं था कि उन्होंने कुछ सपने में देख लिया हो और वो आंख खोलते ही झट से गायब हो जाएगा. और घबराहट में भरे उनके चेहरे पर उभर आई पसीने की बूंदों को वो समेटेंगे और सोचेंगे कि बड़ा ही खतरनाक सपना था. लेकिन लोगों की आंखें तो खुली लेकिन नई हकीकत के साथ, जिसमें जिंदगी को समेटते लोग, बिखरे हुए शरीर उन्हें समेटती हुई निगम की गाड़ियां और साथ में आई ड्रॉप और डाइजीन की गोलियां बांटती कुछ गाड़ियां थी. 

इन गाड़ियों की आवाज़ और उसमें बोलते हुए लोगों ने पिंटू की नींद को उड़ा दिया, होश में आते ही उसके दिमाग में वो गोलियां थी जो मुफ्त में बांटी जा रही थीं, वो चबूतरे से उठा और गोलियां लेने वालों की लाइन में लग गया था. उसकी मां भी होश में नहीं थी. पिंटू का बड़ा भाई भी उसके साथ लाईन में लग गया था और उसकी मां को कुछ समझ नहीं आ रहा था. पिंटू के डैडी की आंखें खुल नहीं रही थी. घर अस्त व्यस्त पड़ा था. पिंटू के भाई अब खेलने में लगे हुए थे, पिंटू भी उनके साथ खेल रहा था. पड़ोसी सिंधी अंकल पिंटू और उसके भाईयों के लिए ब्रेड और दूध लेकर आए थे. 

थोड़ी ही देर मे पिंटू और उसके भाई दूध ब्रेड खाने में व्यस्त थे. तभी अचानक पिंटू की चाची के भाई घर के सामने खड़े थे. पिंटू आज उन्हें अपने घर के सामने देख कर उत्साहित था. चाची के भाई पिंटू की मम्मी से कुछ बोल रहे थे. तभी अपनी पलकों को बंद किये हुए पिंटू के डैडी भी वहीं आकर खड़े हो गये. वो भी उनकी बात सुन रहे थे. थोड़ी देर चली बात के बाद पिंटू के डैडी की बंद आंखों औऱ ज़ोर से बंद हो गई थी. 

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लेकिन एक अजीबो-गरीब रात के बाद उनकीं बंद आंखों से धुआं ही निकल रहा था. आंसुओं को शायद ज़हर भरी गैस ने सोख लिया था. पिंटू को कुछ समझ नहीं आ रहा था उसे बस अपने डैडी और मम्मी की हिचकी सुनाई दे रही थी. उसने कभी अपने घरवालों को रोते हुए नहीं देखा था तो वो समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर ये क्या हो रहा है, इतने में मम्मी ने उसे अंदर आने को कहा और साथ में उसके दोनों भाईयों को भी बुला लिया था. वो सभी को तैयार करने में लगी हुई थीं. तैयार होते होते पिंटू ने पूछा तो उसे मालूम चला कि वो अपने दद्दा से मिलने जाने वाला है. वो बहुत उत्साहित था. 

पिंटू के डैडी पहले ही जा चुके थे उन्हें कोई लेकर चला गया था. थोड़ी देर में पिंटू उसके दोनो भाई और मम्मी, चाची के भाई के साथ रोड पर थे. स्टेशन उनके घर से काफी दूर था लेकिन चूंकि कोई भी सार्वजनिक वाहन नहीं चल रहा था इसलिए उन्होंने पैदल स्टेशन पहुंचने की सोची और ज़रूरत का सामान लेकर पिंटू और उसके भाई मम्मी और चाची के भाई स्टेशन की ओर चल रहे थे. पिंटू बहुत उत्साहित था क्योंकि वो अपने दद्दा से मिलने जा रहा था, उसे अपने दद्दा के हाथों की छोटे आलू की सब्जी की भी याद आ रही थी. रास्ते में उसे कई लोग सोते हुए दिखे, जिसे देख कर उसने अपनी मम्मी से पूछा भी था कि ये लोग यहां रोड पर क्यों सो रहे हैं, उसकी मम्मी ने उस बात का जवाब ना सूझने पर उसे दूसरी तरफ बहला दिया था. 

पिंटू भी इस सवाल को पूछ कर बस रह गया और उसका ध्यान ट्रेन की तरफ था जिससे वो दद्दा से मिलने जा रहा था, उत्साहित हो कर वो भाग-भाग कर आगे-आगे चल रहा था. लेकिन अपने उत्साह में पिंटू को इस बात का अहसास भी नहीं था कि उसके भागने में अब हांफने की आवाज़ भी थी. उसे तो ये भी नहीं पता था कि जिस दद्दा से मिलने को वो आतुर था उन्हें ज़हर भरी हवा ने उस गहरी नींद में सुला दिया है कि वो अब कभी छोटे तले हुए आलू की सब्जी पिंटू को नहीं खिला पाएंगे. उसे ये भी नहीं पता था कि वो रात जो गुज़र चुकी है उसकी कालिख उसके और उसके जैसे ना जाने कितने लोगों के फेफड़ों में ठहर चुकी थी. 

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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