56 साल पुराने सिंधु जल समझौते को तोड़ सकता है भारत, पानी के लिए तरसेगा पाकिस्‍तान
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56 साल पुराने सिंधु जल समझौते को तोड़ सकता है भारत, पानी के लिए तरसेगा पाकिस्‍तान

भारत और पाकिस्तान के बीच के मौजूदा तनाव की छाया 56 साल पुरानी सिंधु जल संधि पर भी पड़ी जब भारत ने स्पष्ट किया कि ऐसी किसी संधि के काम करने के लिए ‘परस्पर विश्वास और सहयोग’ महत्वपूर्ण है। भारत ने इसे रद्द करने पर विचार का संकेत दिया है। बता दें कि अगर जल संधि तोड़ा जाता है, तो भारत से बहने वाले नदियों के पानी को पाकिस्तान की ओर जाने से रोका जा सकता है। फिर पाकिस्तान में पानी के लिए हाहाकार मचेगा। उड़ी हमले के बाद पाक की चौतरफा घेरेबंदी में जुटे भारत ने कहा कि ऐसी किसी संधि के काम करने के लिए परस्पर विश्वास और सहयोग महत्वपूर्ण है1

56 साल पुराने सिंधु जल समझौते को तोड़ सकता है भारत, पानी के लिए तरसेगा पाकिस्‍तान

नई दिल्ली : भारत और पाकिस्तान के बीच के मौजूदा तनाव की छाया 56 साल पुरानी सिंधु जल संधि पर भी पड़ी जब भारत ने स्पष्ट किया कि ऐसी किसी संधि के काम करने के लिए ‘परस्पर विश्वास और सहयोग’ महत्वपूर्ण है। भारत ने इसे रद्द करने पर विचार का संकेत दिया है। बता दें कि अगर जल संधि तोड़ा जाता है, तो भारत से बहने वाले नदियों के पानी को पाकिस्तान की ओर जाने से रोका जा सकता है। फिर पाकिस्तान में पानी के लिए हाहाकार मचेगा। उड़ी हमले के बाद पाक की चौतरफा घेरेबंदी में जुटे भारत ने कहा कि ऐसी किसी संधि के काम करने के लिए परस्पर विश्वास और सहयोग महत्वपूर्ण है1

सरकार की ओर से गुरुवार को यह बयान उस वक्त आया है जब भारत में ऐसी मांग उठी है कि उरी हमले के बाद पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए इस जल बंटवारे समझौते को खत्म किया जाए।

यह पूछे जाने पर दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए क्या सरकार सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करेगी तो विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि ऐसी किसी संधि पर काम के लिए यह महत्वपूर्ण है कि दोनों पक्षों के बीच परस्पर सहयोग और विश्वास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि संधि की प्रस्तावना में यह कहा गया है कि यह ‘सद्भावना’ पर आधारित है। फिर पूछे जाने पर कि भारत इस संधि को खत्म करेगा जो उन्होंने कोई ब्यौरा नहीं दिया और सिर्फ इतना कहा कि कूटनीति में सबकुछ बयां नहीं किया जाता और तथा उन्होंने यह नहीं कहा कि यह संधि काम नहीं कर रही है।

इस संधि के तहत ब्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों के पानी का दोनों देशों के बीच बंटवारा होगा। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपाति अयूब खान ने सितम्बर, 1960 में इस संधि पर हस्ताक्षर किया था। पाकिस्तान यह शिकायत करता आ रहा है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है और वह कुछ मामलों में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए भी आगे गया है। स्वरूप ने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच इस संधि के क्रियान्वयन को लेकर मतभेद है।

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