यूपी का ये गांव है सरकारी नक्शे से 'गायब', 'आधार' जैसी जरूरी योजनाओं से महरूम हैं लोग
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यूपी का ये गांव है सरकारी नक्शे से 'गायब', 'आधार' जैसी जरूरी योजनाओं से महरूम हैं लोग

गोंडा में ऐसे गांव हैं जो आजादी के 70 साल बाद भी मुख्य धारा में नहीं जुड़ पाए हैं

भारत देश के किसी सरकारी रिकार्ड में इस गांव या इस गांव के लोगों का नाम नहीं है

अम्बिकेश्वर प्रताप पाण्डेय, गोंडा: तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है मगर ये दावे झूठे हैं आंकड़े किताबी हैं... अदम गोंडवी की ये लाइनें उनके ही जिले के गांव की स्थिति को बयां करने के लिए काफी है. हमारे देश को आजाद हुए 70 साल हो गए, बहुत कुछ परिवर्तित हुआ और विकास की गंगा भी बही. लेकिन, अभी भी गोंडा में ऐसे गांव हैं जो आजादी के 70 साल बाद भी मुख्य धारा में नहीं जुड़ पाए हैं. भारत देश के किसी सरकारी रिकार्ड में इस गांव या इस गांव के लोगों का नाम नहीं है. किसी तरह की कोई सरकारी योजना और न ही किसी तरह का संवैधानिक अधिकार इन्हें प्राप्त हो पाता है. आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड के बारे में तो यहां के लोग जानते ही नहीं.

  1. गोंडा में ऐसे गांव हैं जो आजादी के 70 साल बाद भी मुख्य धारा में नहीं जुड़ पाए
  2. यहां रहने वाले लोग आदिवासियों से भी बदतर जीवन जीने को मजबूर हैं
  3. सरकार या सरकारी योजनाएं क्या होती हैं ये इन्हें मालूम ही नहीं है

800 जनसंख्या वाला गांव सरकारी नक्शे से 'गायब'
ये मामला गोंडा जनपद के मनकापुर तहसील के रामगढ़ गांव का है. ये गांव टिकरी जंगल के बीच में बसा हुआ है. इस गांव की जनसंख्या करीब 800 है. यहां रहने वाले लोग आदिवासियों से भी बदतर जीवन जीने को मजबूर हैं. सरकार या सरकारी योजनाएं क्या होती हैं ये इन्हें मालूम ही नहीं है. देश इनका जंगल है और रेंजर सरकार.

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ऐसे चलती है जिंदगी
जंगल से लकड़ी बीन कर वन विभाग के लोगों को देते हैं वन विभाग के कर्मी इन्हें उसके बदल 1 रूपये प्रति दो किलो लकड़ी के हिसाब से देते हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा एक परिवार की औसत आमदनी 10 रुपये प्रतिदिन ही होती है. यहां के लोग जंगल में पेड़ों के बीच में खेती करते हैं जो पैदा होता है उसमें आधा वन विभाग के अधिकारी लेते हैं और आधा इन्हें मिलता है. इस गांव में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा उमानाथ है जो 8 तक पढ़ा हुआ है. गांव की महिलाएं अब बच्चों की चिंता को लेकर व्यथित हैं.

वन विभाग का रेंजर जो कहे वही कानून
गांव के लोगों का कहना है कि उन्हें तो पता ही नहीं है कि कोई और देश है या कोई और कानून भी है. इनके पास कोई सुविधा नहीं है. इनके पास न ही वोटर आईडी कार्ड, न ही आधार कार्ड और राशन कार्ड का तो पता ही नहीं है. यहां इनको किसी भी तरह का संवैधानिक अधिकार नहीं प्राप्त है. इनके लिए वन विभाग का रेंजर जो कहे वही कानून है और जंगल इनका देश.

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गोंडा में हैं ऐसे 5 गांव
इस संबंध में जब जिलाधिकारी जे बी सिंह से बात की गई तो उन्होंने बताया कि ये अंग्रेजों के समय में वन विभाग द्वारा बसाए गए लोग हैं. इनको स्थायी करने की तैयारी चल रही है. इनके स्थायीकरण की पत्रावली निस्तारण के लिए जनपद स्तर से शासन को भेजी जा चुकी है. इन्हें भी समाज में स्थान मिलना चाहिए और इनका भी विकास होना चाहिए. गोंडा में ऐसे 5 गांव चिन्हित किए गए हैं.

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