अटल बिहारी वाजपेयी : भारतीय राजनीति का एक ‘करिश्माई नक्षत्र’
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अटल बिहारी वाजपेयी : भारतीय राजनीति का एक ‘करिश्माई नक्षत्र’

देश के शीर्ष नागरिक सम्मान भारत रत्न से शुक्रवार को विभूषित किये गए अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीतिक के पटल पर एक ऐसा नाम है जिन्होंने अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से न केवल व्यापक स्वीकार्यता एवं सम्मान हासिल किया बल्कि तमाम अवरोधों को तोड़ते हुए 90 के दशक में राजनीतिक मंच पर भाजपा को स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अटल बिहारी वाजपेयी : भारतीय राजनीति का एक ‘करिश्माई नक्षत्र’

नई दिल्ली : देश के शीर्ष नागरिक सम्मान भारत रत्न से शुक्रवार को विभूषित किये गए अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीतिक के पटल पर एक ऐसा नाम है जिन्होंने अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से न केवल व्यापक स्वीकार्यता एवं सम्मान हासिल किया बल्कि तमाम अवरोधों को तोड़ते हुए 90 के दशक में राजनीतिक मंच पर भाजपा को स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

यह वाजपेयी के व्यक्तित्व का ही सम्मोहन था कि भाजपा के साथ उस समय नये सहयोगी दल जुड़ते गए जब बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद दक्षिणपंथी झुकाव के कारण उस जमाने में भाजपा को राजनीतिक रूप से ‘अछूत’ माना जाता था।

अपनी भाषणकला, मनमोहन मुस्कान, वाणी के ओज, लेखन एवं विचारधारा के प्रति निष्ठा तथा ठोस फैसले लेने के लिए विख्यात वाजपेयी को भारत एवं पाकिस्तान के मतभेदों को दूर करने की दिशा में प्रभावी पहल करने का श्रेय दिया जाता है। इन्हीं कदमों के कारण ही वह भाजपा के ‘राष्ट्रवादी राजनीतिक एजेंडे’ से परे जाकर एक व्यापक फलक के राजनेता के रूप में जाने जाते हैं।

कांग्रेस से इतर किसी दूसरी पार्टी के देश के सर्वाधिक लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहने वाले वाजपेयी को अक्सर भाजपा का उदारवादी चेहरा कहा जाता है। उनके आलोचक हालांकि उन्हें आरएसएस का ऐसा ‘मुखौटा’ बताते रहे हैं जिनकी सौम्य मुस्कान उनकी पार्टी के हिंदूवादी समूहों के साथ संबंधों को छुपाए रखती है।

साल 1999 की वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा की उनकी ही पार्टी के कुछ नेताओं’ ने आलोचना की थी लेकिन वह बस पर सवार होकर लाहौर पहुंचे। वाजपेयी की इस राजनयिक सफलता को भारत-पाक संबंधों में एक नए युग की शुरुआत की संज्ञा देकर सराहा गया। लेकिन इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने गुपचुप अभियान के जरिए अपने सैनिकों की कारगिल में घुसपैठ करायी और इसके हुए संघर्ष में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी।

भाजपा के चार दशक तक विपक्ष में रहने के बाद वाजपेयी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने लेकिन संख्या बल नहीं होने से उनकी सरकार महज 13 दिन ही गिर गयी। आंकड़ों ने एक बार फिर वाजपेयी के साथ लुकाछिपी का खेल खेला और स्थिर बहुमत नहीं होने के कारण 13 महीने बाद 1999 की शुरुआत में उनके नेतृत्व वाली दूसरी सरकार भी गिर गई। अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता द्वारा केंद्र की भाजपा की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने की पृष्ठभूमि में वाजपेयी सरकार धराशायी हो गयी। लेकिन 1999 के चुनाव में वाजपेयी पिछली बार के मुकाबले एक अधिक स्थिर गठबंधन सरकार के मुखिया बने जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

गठबंधन राजनीति की मजबूरी के कारण भाजपा को अपने मूल मुद्दों को पीछे रखना पड़ा। इन्हीं मजबूरियों के चलते जम्मू कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करने और समान नागरिक संहिता लागू करने जैसे उसके चिर प्रतीक्षित मुद्दे ठंडे बस्ते में चले गए। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर जवाहरलाल नेहरू की शैली और स्तर के नेता के रूप में सम्मान पाने वाले वाजपेयी का प्रधानमंत्री के रूप में 1998-99 का कार्यकाल साहसिक और दृढ़निश्चयी फैसलों के वर्ष के रूप में जाना जाता है।

इसी अवधि के दौरान भारत ने मई 1998 में पोखरण में श्रंखलाबद्ध परमाणु परीक्षण किए। वाजपेयी के करीबी लोगों का कहना है कि उनका मिशन पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारना था और इसके बीज उन्होंने 70 के दशक में मोरारजी देसाई की सरकार में बतौर विदेश मंत्री रहते हुए ही बोये थे।

लाहौर शांति प्रयासों के विफल रहने के बाद वर्ष 2001 में वाजपेयी ने जनरल परवेज मुशर्रफ के साथ आगरा शिखर वार्ता की एक और पहल की लेकिन वह भी मकसद हासिल करने में सफल नहीं रही।  छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में कार सेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद को गिराए जाने की घटना वाजपेयी के लिए इस बात की अग्नि परीक्षा थी कि धर्मनिरपेक्षता के पैमाने पर वह कहां खड़े हैं। उस समय वाजपेयी लोकसभा में विपक्ष के नेता थे। वाजपेयी ने अनेक भाजपा नेताओं के रुख के विपरीत स्पष्ट शब्दों में इसकी निंदा की थी। उनकी निजी निष्ठा पर कभी गंभीर सवाल नहीं उठाये गए।

वाजपेयी एक जाने माने कवि भी हैं और उनके पार्टी सहयोगी अक्सर उनकी रचनाओं को उद्धृत करते हैं। 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में उनका जन्म हुआ। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और मां कृष्णा देवी हैं। वाजपेयी का संसदीय अनुभव पांच दशकों से भी अधिक का विस्तार लिए हुए है। वह पहली बार 1957 में संसद सदस्य चुने गए थे।

ब्रिटिश औपनिवेशक शासन का विरोध करने के लिए किशोरावस्था में वाजपेयी कुछ समय के लिए जेल गए लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने कोई मुख्य भूमिका अदा नहीं की। हिंदू राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और जन संघ का साथ पकड़ने से पहले वाजपेयी कुछ समय तक साम्यवाद के संपर्क में भी आए। बाद में दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़ाव के बाद जनसंघ और तत्पश्चात भाजपा के साथ उनके घनिष्ठ संबंधों की शुरूआत हुई।

साल 1950 के दशक की शुरूआत में आरएसएस की पत्रिका को चलाने के लिए वाजपेयी ने कानून की पढ़ाई बीच में छोड़ दी। बाद में उन्होंने आरएसएस में अपनी राजनीतिक जड़ें जमायीं और भाजपा की उदारवादी आवाज बनकर उभरे।

राजनीति में वाजपेयी की शुरुआत 1942-45 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में हुई थी। उन्होंने कम्युनिस्ट के रूप में शुरूआत की लेकिन हिंदुत्व का झंडा बुलंद करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता के लिए साम्यवाद को छोड़ दिया। संघ को भारतीय राजनीति में दक्षिणपंथी माना जाता है।

वाजपेयी भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के करीबी अनुयायी और सहयोगी बन गए। जब मुखर्जी ने 1953 में कश्मीर में प्रवेश के लिए परमिट लेने की व्यवस्था के खिलाफ आमरण अनशन किया तो वाजपेयी उनके साथ थे। मुखर्जी ने परमिट व्यवस्था को कश्मीर की यात्रा करने वाले भारतीय नागरिकों के साथ ‘तुच्छ’ व्यवहार करार दिया था। साथ ही उन्होंने कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने के खिलाफ भी आमरण अनशन किया था।

मुखर्जी के अनशन और विरोध की परिणति परमिट व्यवस्था समाप्त करने और कश्मीर के भारतीय संघ में विलय की प्रक्रिया तेज किए जाने के रूप में हुई। लेकिन कई सप्ताह की जेलबंदी, बीमारी और कमजोरी के चलते मुखर्जी का निधन हो गया। इन सारी घटनाओं ने युवा वाजपेयी के मन पर गहरी छाप छोड़ी।

मुखर्जी की विरासत को आगे बढ़ाते हुए वाजपेयी ने 1957 में अपना पहला चुनाव लड़ा और जीता। भारतीय जनसंघ के नेता के रूप में उन्होंने इसके राजनीतिक दायरे, संगठन और एजेंडे का विस्तार किया। अपनी युवावस्था के बावजूद वाजपेयी जल्द ही विपक्ष में एक सम्मानित हस्ती बन गए जिनकी तर्कशक्ति और बुद्धिमत्ता के उनके विरोधी भी कायल होने लगे।

उनकी व्यापक अपील ने उभरते राष्ट्रवादी सांस्कृतिक आंदोलन को सम्मान, पहचान और स्वीकार्यता दिलायी। उल्लेखनीय है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को आज देश के शीर्ष नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने प्रोटोकोल को एक तरफ कर इन दिनों अस्वस्थ चल रहे वाजपेयी के यहां कृष्ण मेनन मार्ग स्थित निवास पर खुद जाकर उन्हें इस पुरस्कार से नवाज़ा। इस अवसर पर वाजपेयी के कुछ नजदीकी लोग, उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व प्रधानंत्री मनमोहन सिंह, केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और अरूण जेटली आदि उपस्थित थे।

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