सिद्धांतों और मूल्यों की राजनीति में भरोसा करती है भाजपा : शाह
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सिद्धांतों और मूल्यों की राजनीति में भरोसा करती है भाजपा : शाह

भाजपा को विचारधारा पर आधारित राजनीति करने वाली पार्टी बताते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि वैकल्पिक विचार देने के लक्ष्य से गठित हमारी पार्टी सिद्धांतों एवं मूल्यों की राजनीति में विश्वास करती है और पार्टी कार्यकर्ता इस भावना को समझें और निरंतर अध्ययनशील बने रहें।

सिद्धांतों और मूल्यों की राजनीति में भरोसा करती है भाजपा : शाह

नई दिल्ली : भाजपा को विचारधारा पर आधारित राजनीति करने वाली पार्टी बताते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि वैकल्पिक विचार देने के लक्ष्य से गठित हमारी पार्टी सिद्धांतों एवं मूल्यों की राजनीति में विश्वास करती है और पार्टी कार्यकर्ता इस भावना को समझें और निरंतर अध्ययनशील बने रहें।

अमित शाह ने पार्टी के प्रदेश एवं जिला कार्यालयों में बनने वाली पुस्तकालयों की श्रृंखला पर ‘राजनीति की संस्कारशाला’ नामक ब्लॉग में लिखा, ‘भाजपा का तो जन्म ही वैकल्पिक विचार देने के लक्ष्य के साथ हुआ। हम विचारधारा-आधारित पार्टी हैं तथा सिद्धांतों एवं मूल्यों के आधार पर राजनीति करने में विश्वास रखते हैं। इसलिए यह अति आवश्यक है कि हमारे कार्यकर्ता अपने विचार एवं सिद्धांतों को समझें, फिर उस पर अडिग रहें और इसके लिए निरंतर अध्ययनशील बनें।’ 

उन्होंने कहा कि आशा है कि पार्टी कार्यालयों में अत्याधुनिक ग्रंथालयों के निर्माण से इस दिशा में कार्यकर्ताओं को तत्पर रहने में सहायता मिलेगी। पार्टी पुस्तकालयों से हमारे कार्यकर्ता वैचारिक रूप से और अधिक सजग, सुदृढ़ एवं परिपक्व बनेंगे और उसी से एक नयी राजनीतिक संस्कृति का उदय होगा। भाजपा अध्यक्ष ने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे ग्रंथालयों में आने-जाने, पढ़ने का क्रम बनाए रखें।

उन्होंने कहा कि ग्रंथालय का मूल स्वरूप वाचनालय का है। यहां आकर जो पढ़ेगा, वहीं बढ़ेगा। हमें हर महीने में एक या दो किताबें पढ़नी चाहिए। उस पर अपना अभिप्राय लिखना चाहिए। किताबों पर आपस में चर्चा होनी चाहिए। कार्यकर्ता अपने संग्रह की किताबें इन ग्रंथालयों को भेंट करें तो और भी अच्छा। इन्हीं प्रयासों से पार्टी में वाचन की संस्कृति बढ़ेगी। देश की राजनीतिक संस्कृति बदलने की गंगोत्री ग्रंथालयों में है इस तथ्य को हम न भूलें।

शाह ने अपने ब्लॉग में लिखा कि संगठनात्मक कार्यों से विभिन्न प्रदेशों में निरंतर प्रवास चलता ही रहता है, परन्तु इस बार का छत्तीसगढ़ प्रवास एक प्रमुख कारण से विशिष्टतापूर्ण रहा। 12 दिसम्बर 2016 को अन्य संगठनात्मक कार्यक्रमों के साथ-साथ एक विशेष कार्य का शुभारंभ हुआ। यह अवसर था जब नानाजी देशमुख स्मृति वाचनालय तथा पार्टी के ई-ग्रंथालय का उद्घाटन हुआ।

उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश एवं जिला कार्यालयों में बनने वाली पुस्तकालयों की श्रृंखला में यह पहला ग्रंथालय है। शाह ने कहा कि इसे एक आदर्श ग्रंथालय के रूप में तैयार किया गया है तथा नानाजी देशमुख जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में इसका नाम नानाजी देशमुख स्मृति वाचनालय रखा गया है। केवल दो महीने की अल्पावधि में निर्मित इस ग्रंथालय में विभिन्न श्रेणियों की 10,255 पुस्तकें उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीकों से युक्त इस ग्रंथालय में पार्टी दस्तावेज, दुर्लभ पांडुलिपियां, संविधान, इतिहास, दर्शन आदि विषयों से संबंधित अनेक पुस्तक-पुस्तिकाएं उपलब्ध हैं जो वाई-फाई सुविधा से युक्त हैं।

भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि इस तरीके के ग्रंथालय अब हर प्रदेश एवं जिला कार्यालय में निर्माण हो रहे हैं। यह कई महीनों के अथक प्रयासों का ही परिणाम था कि पार्टी मुख्यालय में एक सुव्यवस्थित ग्रंथालय का निर्माण हो पाया। उन्होंने कहा कि ग्रंथालय में प्रबंधन व्यवस्था के अत्याधुनिक उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है। इसके साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी की तकनीकों का उपयोग कर डिजिटल ग्रंथालय भी विकसित किया गया है। इस ई-ग्रंथालय में 3620 पुस्तकें अभी उपलब्ध हैं जिन्हें सोशल मीडिया से भी जोड़ा गया है। यह भी ध्यान में रखा गया है कि केन्द्रीय ग्रंथालय का जीवंत संपर्क विभिन्न प्रदेशों में स्थापित होने वाले पुस्तकालयों से हो।

शाह ने कहा कि किसी को लग सकता है कि भला राजनीतिक दल के कार्यालय में ग्रंथालय की क्या जरूरत है? यह तो राजनीतिक उठापटक का केंद्र है, रणनीति की प्रयोगशाला है या फिर मीडिया से मिलने जुलने का स्थान है। मगर मुझे बताना चाहिए कि स्वाधीनता के पूर्व और उसके पश्चात भी राजनीति में विचारक राजनेताओं की एक स्वथ्य, समृद्ध परंपरा रहती आयी है।

उन्होंने कहा कि गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा गांधी, वीर सावरकर, राम मनोहर लोहिया, दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी इत्यादि से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक कितने सारे राजनेता लेखक, चिंतक, कवि, विचारक भी रहे हैं। यही कारण था कि भारतीय राजनीति में जनतंत्र के प्रति आस्था बनी रही।

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