जेटली का सिन्हा पर जवाबी हमला, कहा- 80 साल की उम्र में नौकरी चाहते हैं
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जेटली का सिन्हा पर जवाबी हमला, कहा- 80 साल की उम्र में नौकरी चाहते हैं

अरुण जेटली ने सिन्हा पर करारा वार करते हुए कहा कि वह वित्त मंत्री के रूप में अपने रिकॉर्ड को भूल गए हैं.

जेटली ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए सिन्हा पर पलटवार किया... (फोटो ANI)

नई दिल्ली: वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को भाजपा नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए जवाबी हमला बोला. एक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में जेटली ने सिन्हा ने 80 साल की उम्र में नौकरी चाहने वाला करार देते हुए कहा कि वह वित्त मंत्री के रूप में अपने रिकॉर्ड को भूल गए हैं. जेटली ने कहा कि सिन्हा नीतियों के बजाय व्यक्तियों पर टिप्पणी कर रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि सिन्हा वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के पीछे-पीछे चल रहे हैं. वह भूल चुके हैं कि कैसे कभी दोनों एक दूसरे के खिलाफ कड़वे बोल का इस्तेमाल करते थे.

  1. जेटली ने कहा कि सिन्हा व्यक्तिगत टिप्पणी कर रहे हैं
  2. आरोप लगाया - सिन्हा कांग्रेस नेता के पीछे-पीछे चल रहे हैं
  3. हालांकि, जेटली ने सीधे-सीधे सिन्हा का नाम नहीं लिया

हालांकि, जेटली ने सीधे-सीधे सिन्हा का नाम नहीं लिया, लेकिन कहा कि उनके पास पूर्व वित्त मंत्री होने का सौभाग्य नहीं है, न ही उनके पास ऐसा पूर्व वित्त मंत्री होने का सौभाग्य है जो आज स्तंभकार बन चुका है. इसमें जेटली का पहला उल्लेख सिन्हा के लिए और दूसरा चिदंबरम के लिए था.

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उन्होंने कहा कि पूर्व वित्त मंत्री होने पर मैं आसानी से संप्रग दो में नीतिगत शिथिलता को भूल जाता. मैं आसानी से 1998 से 2002 के एनपीए को भूल जाता. उस समय सिन्हा वित्त मंत्री थे. मैं आसानी से 1991 में बचे चार अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार को भूल जाता. मैं पाला बदलकर इसकी व्याख्या बदल देता.

जेटली ने सिन्हा पर तंज कसते हुए कहा कि वह इस तरह की टिप्पणियों के जरिये नौकरी ढूंढ रहे हैं. सिर्फ पीछे-पीछे चलने से तथ्य नहीं बदल जाएंगे.

वित्त मंत्री जेटली ने 'India @70 Modi @3.5 पुस्तक का विमोचन करते हुए कहा कि इस किताब के लिए उपयुक्त शीर्षक 'India @70, Modi @3.5 and a job applicant @ 80, होना चाहिए था. पूर्व वित्त मंत्री सिन्हा (84) ने एक अखबार में अपने लेख ‘आई नीड टु स्पीक अप नाउ’ में जेटली की जोरदार आलोचना करते हुए कहा था कि उन्होंने अर्थव्यवस्था की दुगर्ति कर दी है. इसके साथ ही सिन्हा ने नोटबंदी और जीएसटी के क्रियान्वयन के लिए सरकार पर भी हमला बोला था.

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सिन्हा ने लिखा, "प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि उन्होंने नजदीक से गरीबी देखी है. दूसरी तरफ उनके वित्त मंत्री दिन रात यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं कि सभी भारतीय भी इतने ही नजदीक से गरीबी देख लें." इस मौके पर जेटली ने 1999 में संसद में वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी द्वारा उन्हें दी गई सलाह का भी जिक्र किया. उस समय जेटली बोफोर्स मुद्दे पर बोल रहे थे और आडवाणी ने उन्हें सलाह दी थी कि वह व्यक्तिगत टिप्पणियां न करें.’’ जेटली ने कहा कि कई विशिष्ट हस्तियां भी पहले वित्त मंत्री रह चुकी हैं. इनमें प्रणब मुखर्जी (पूर्व राष्ट्रपति) और पूर्व प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) शामिल हैं. इनके अलावा और भी पूववर्तियों ने ‘‘सामंजस्य बिठाते हुये’’ काम किया.

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वित्त मंत्री ने कहा कि किसी व्यक्ति पर बोलना और मुद्दे को नजरंदाज करना काफी आसान है. जेटली अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर के तीन साल के निचले स्तर पर पहुंचने को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पूर्व में सिन्हा और चिदंबरम ने एक-दूसरे को क्या बोला है उस पर उन्होंने कुछ शोध किया है. उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, एक ने दूसरे के बारे में कहा था, "चिदंबरम को वित्त मंत्री के रूप में मेरे जैसा प्रदर्शन करने के लिए फिर जन्म लेना होगा. इसके बाद उन्होंने वित्त मंत्री चिदंबरम को ऐसा अक्षम चिकित्सक से जोड़ा था जो देश के राजकोषीय घाटे को काबू में नहीं रख पा रहा है. इसके बाद सिन्हा ने कहा था कि मैं उनपर अर्थव्यवस्था को जमीन पर लाने का आरोप लगाता हूं." जेटली ने कहा कि पूर्व वित्त मंत्री ने चिदंबरम को सबसे अधिक अहंकारी व्यक्ति बताया था जो उनके फोन सुनते रहे.

जेटली ने सिन्हा का हवाला देते हुए कहा, "आज मैं पूर्ण जिम्मेदारी के साथ कहना चाहता हूं कि जब मैंने एयरसेल-मैक्सिस सौदे का मुद्दा उठाया तो चिदंबरम ने मेरे फोन टैप करने का आदेश दिया." यही नहीं चिदंबरम ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान सिन्हा के कार्यकाल को उदारीकरण के बाद के सबसे खराब साल बताया था. जेटली ने हमले को आगे बढ़ाते हुए कहा कि उस समय चिदंबरम ने कहा था कि श्री सिन्हा को ज्यादा लोग याद नहीं रखते हैं. चिदंबरम ने कहा था कि 2000 से 2001 और 2002-2003 वृद्धि के मामले में उदारीकरण के बाद के सबसे खराब वर्ष हैं. इसी वजह से प्रधानमंत्री वाजपेयी को उन्हें हटाना पड़ा था.

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