बिहार में दोनों गठबंधनों के सीटों का तालमेल चुनौतीपूर्ण
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बिहार में दोनों गठबंधनों के सीटों का तालमेल चुनौतीपूर्ण

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियां भले ही शुरू हो गयी हों लेकिन भाजपा और जदयू के नेतृत्व वाले दोनों गठबंधनों में सीटों का तालमेल काफी चुनौतीपूर्ण होने की संभावना है क्योंकि दोनों के घटक दलों द्वारा सौदेबाजी किए जाने के पूरे आसार दिख रहे हैं।

बिहार में दोनों गठबंधनों के सीटों का तालमेल चुनौतीपूर्ण

नयी दिल्ली : बिहार विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियां भले ही शुरू हो गयी हों लेकिन भाजपा और जदयू के नेतृत्व वाले दोनों गठबंधनों में सीटों का तालमेल काफी चुनौतीपूर्ण होने की संभावना है क्योंकि दोनों के घटक दलों द्वारा सौदेबाजी किए जाने के पूरे आसार दिख रहे हैं।

गठबंधनों के छोटे दलों ने इस दिशा में संकेत देते हुए जता दिया है कि इस संबंध में व्यापक विचार विमर्श किए जाने की जरूरत है। बिहार विधानसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है और इसमें पिछले एक साल से ज्यादा समय से नरेंद्र मोदी नीत भाजपा के प्रभुत्व वाले राजनीतिक परिदृश्य को बदलने की क्षमता है।

नीतीश कुमार नीत गठबंधन में चर्चा है कि भले ही सार्वजनिक रूख कुछ भी हो लेकिन राजद प्रमुख लालू प्रसाद 243 सदस्यीय विधानसभा के लिए सीटों के तालमेल के बारे में फैसला करने की खातिर अपनी ओर से समय ले रहे हैं। राजद और जदयू को पहले आपस में सीटों का तालमेल करना है और बाद में छोटे दलों की सीटों के बारे में फैसला किया जाएगा।

गठबंधन में सहयोगी कांग्रेस के महासचिव शकील अहमद ने कहा, कांग्रेस सीटों की सम्मानित संख्या चाहेगी ताकि उसके कार्यकर्ता हतोत्साहित नहीं हों। अहमद बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हैं और लंबे समय तक मंत्री भी रहे हैं। निजी रूप से कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पार्टी को पर्याप्त सीटें मिले, इसके लिए राहुल गांधी कड़ी सौदेबाजी कर सकते हैं। जदयू, राजद, कांग्रेस और राकांपा को मिलाकर धर्मनिरपेक्ष गठबंधन पर जोर देने के लिए शरद पवार नीत राकांपा ने भी अपना राष्ट्रीय सम्मेलन पिछले महीने पटना में किया था।

उधर भाजपा भी कठिन चुनौती का सामना कर रही है। केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी जो भाजपा नीत राजग में शामिल है, ने पहले ही कहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान सीटों के बंटवारे का फार्मूला आगामी विधानसभा चुनावों के लिए सही नहीं है। कुशवाहा कुछ साल पहले तक नीतीश कुमार के साथ थे। उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि भाजपा को 102 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए जिन पर वह पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू के साथ लड़ी थी। इसके अलावा सभी सहयोगियों को नए दलों के लिए सीटें छोड़नी चाहिए।

उनकी पार्टी 67 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। चुनाव सितंबर-अक्टूबर में होने हैं। लोजपा प्रमुख और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का रूख भाजपा के पक्ष में रहा है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री जीवन राम मांझी के गठबंधन में शामिल होने और लालू प्रसाद से पप्पू यादव के अलग हो जाने से स्थिति पेचीदा बन गयी है। छोटी पार्टियां संदेश दे रही हैं कि अगर प्रमुख सहयोगी एक ओर भाजपा और दूसरी ओर राजद एवं जदयू विभिन्न दलों को साथ नहीं लेकर चलते हैं तो अंतत: उन्हें ही नुकसान होगा।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि वे सिर्फ संख्या पर गौर नहीं कर रहे हैं बल्कि वे ऐसी सीटें चाहते हैं जहां पार्टी के जीतने की संभावना है। नेता ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर एक उदाहरण दिया और कहा कि पिछले साल तेलंगाना में कांग्रेस ने एआईएमआईएम के साथ गठबंधन फायदेमंद नहीं रहा क्योंकि असादुद्दीन ओवैसी नीत पार्टी ने एक भी मजबूत सीट उसे नहीं दी। जदयू-राजद गठबंधन ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है लेकिन भाजपा की ओर से किसी को भी उम्मीदवार के तौर पर पेश नहीं किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का मुद्दा भाजपा नीत गठबंधन के लिए कुछ हद तक समस्या पैदा कर रहा है। इसके नेता सुशील मोदी कई साल तक नीतीश कुमार के तहत उप-मुख्यमंत्री थे। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सीपी ठाकुर ने खुले तौर पर कहा था कि अगर पार्टी चाहेगी तो वह मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनने को तैयार हैं।

पार्टी के एक तबके को महसूस होता है कि मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर किसी यादव नेता को पेश किया जाना चाहिए ताकि लालू प्रसाद के वोटबैंक में सेंध लगायी जा सके। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने एक संकल्प पारित कर कहा है कि कुशवाहा को गठबंधन का चेहरा बनाया जाना चाहिए। दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल के हाथों भाजपा को मिली करारी हार के बाद बिहार के चुनाव में प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा दांव पर है।