जेडीयू के महासचिव केसी त्यागी ने गुरुवार को साफ कहा कि वह मोहन भागवत के मांगों का समर्थन नहीं करते हैं.
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नई दिल्ली/पटनाः राम मंदिर के मुद्दे पर हर दिन कोई न कोई नई सियासत शुरू होती है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई करने वाला है. अगर हम एनडीए की बात करें तो गठबंधन में शामिल बिहार की जेडीयू पार्टी का स्टेंड इस मुद्दे पर हमेशा से एक ही रहा है. इस मुद्दे पर जेडीयू कभी भी कुछ भी बोलने से बचती रही है.
राम मंदिर के मुद्दे पर देश में फिर से सियासत गरम हो गई है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने सरकार से अपील की है कि वह कानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करे. इस बयान के बाद राम मंदिर के मुद्दे पर राजनीति में बवाल मचा हुआ है. वहीं, इस मुद्दे पर एनडीए में भी अलग-अलग राह दिख रही है. जेडीयू राम मंदिर पर अपना स्टैंड हमेशा से क्लियर रखा है. पार्टी का कहना है कि यह मुद्दा आपसी बातचीत या सुप्रीम कोर्ट के दायरे में ही सुलक्षना चाहिए. ऐसा होने पर जेडीयू साथ देगी.
जेडीयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने भी गुरुवार को साफ कहा कि वह मोहन भागवत के मांगों का समर्थन नहीं करते हैं. उन्होंने कहा कि पार्टी जब एनडीए में शामिल हुई थी तभी भी कहा जाता था कि यह मुद्दा दोनों पक्ष के धर्मगुरुओं को सुलझाना चाहिए. लेकिन तब यह नहीं हुआ अब यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में है. इसलिए इस पर कुछ भी कहना उचित नहीं होगा.
केसी त्यागी ने कहा कि हमें राम मंदिर के मुद्दे पर प्रतीक्षा करनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट इस पर लगातार सुनवाई करेगी तो फैसला आ जाएगा. उन्होंने कहा कि यह मुद्दा एनडीए के घोषणा पत्र में नहीं है. सभी को अपनी-अपनी राय रखने का अधिकार है. लेकिन इन मतों से अलग कोई अपनी राय रखता है तो हम उन्हें समर्थन नहीं करेंगे. हाल ही में जेडीयू के वरिष्ठ नेता पवन वर्मा ने भी राम मंदिर के मुद्दे पर अपना बयान दे दिया था. उन्होंने कहा था कि वह हिंदू हैं और राम मंदिर बनेगा तो उन्हें बहुत खुशी होगी. इस बयान पर जेडीयू में ही पवन वर्मा के बयान की आलोचना शुरू हो गई.
वहीं, अब मोहन भागवत के बयान पर बवाल मचा है. गौरतलब है कि संघ द्वारा आयोजित वार्षिक विजयदशमी पर्व में बोलते हुए मोहन भागवत ने कहा कि राम मंदिर बनाने के लिए सरकार को कानून बनाना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि के लिए स्थान का आवंटन अभी बाकी है, जबकि साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि उस जगह पर मंदिर था. यदि राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होता तो वहां पर मंदिर काफी पहले ही बन गया होता. हम चाहते हैं कि सरकार कानून बनाकर निर्माण के मार्ग को प्रशस्त करे.