जीतन राम मांझी बोले- इस्तीफे के अलावा मेरे पास नहीं था कोई विकल्प, सदन में थी खून-खराबे की आशंका
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जीतन राम मांझी बोले- इस्तीफे के अलावा मेरे पास नहीं था कोई विकल्प, सदन में थी खून-खराबे की आशंका

बिहार में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद जीतन राम मांझी ने कहा है कि मेरे पास आज भी 140 से ज्यादा विधायकों का बहुमत हासिल है लेकिन सदन में खून-खराबा नहीं हो इसलिए मैंने पद से इस्तीफा देने का फैसला किया। मेरे पास इस्तीफा देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं रह गया था।

 

जीतन राम मांझी बोले- इस्तीफे के अलावा मेरे पास नहीं था कोई विकल्प, सदन में थी खून-खराबे की आशंका

पटना: बिहार विधानसभा में विश्वास मत के दौरान हार के आसार साफ तौर पर देख रहे मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने आज यह कहते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया कि उनके समर्थकों को जान से मारने की धमकी दी गई और वह नहीं चाहते थे कि विधानसभा से उनके समर्थक विधायकों की सदस्यता समाप्त हो।

मांझी ने अपने आवास पर संवाददाताओं को बताया‘‘जब यह स्पष्ट हो गया कि किसी और के कहने पर काम कर रहे विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी विश्वास मत के दौरान गुप्त मतदान की अनुमति नहीं देंगे तो मैंने सोचा कि अपने समर्थक विधायकों को खतरे में डालना उचित नहीं होगा...फिर मैंने इस्तीफा दे दिया।’ इससे पहले मांझी आज विश्वास मत हासिल करने के लिए बिहार विधानसभा जाने के पहले करीब सवा दस बजे राजभवन गए। वहां राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी को अपना इस्तीफा सौंपने के बाद वह विधानसभा नहीं गए बल्कि पूर्वाह्न साढ़े 11 बजे उन्होंने मुख्यमंत्री आवास पर संवाददाताओं को संबोधित किया।

राज्यपाल त्रिपाठी ने विधानसभा अध्यक्ष से विश्वास मत के लिए मत विभाजन और गुप्त मतदान के विकल्प में से एक चुनने को कहा था। मांझी ने अभी भी 140 से अधिक विधायकों का समर्थन होने का दावा करते हुए कहा कि खूनखराबे और अपने समर्थक विधायकों को प्रताड़ित होने से बचाने के लिए उन्होंने आगे न बढ़ने का फैसला किया।

उन्होंने कहा कि इस्तीफा देने के बाद उन्होंने राज्यपाल से वह फैसला लेने का आग्रह किया जो प्रदेश के हित में सर्वश्रेष्ठ हो । संवाददाता सम्मेलन के दौरान उनका समर्थन करने वाले सभी आठ मंत्री उनके साथ थे। इनमें से सात जदयू के और एक निर्दलीय विधायक हैं।

मांझी ने नीतीश कुमार और विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी पर जोरदार हमला किया और दावा किया कि जदयू के 40 से 52 विधायक उनके पक्ष में हैं ‘लेकिन नीतीश कुमार के भय के चलते वह मेरे साथ नजर नहीं आना चाहते। जब यह साफ हो गया कि गुप्त मतदान नहीं होगा तो मैंने सोचा कि उन्हें संकट में नहीं डालना चाहिए। इसलिए मैंने इस्तीफा दे दिया।’’ उन्होंने दावा किया कि नीतीश कुमार के घर से बड़ी संख्या में जदयू के विधायक देर रात करीब एक बजे पिछले दरवाजे से उनके आवास पर आए। उन्होंने कहा ‘उनके चेहरों पर भय साफ दिख रहा था और मैंने सोचा कि मुझे विश्वास मत के लिए आगे बढ़ कर नीतीश कुमार खेमे के समक्ष उनकी पहचान उजागर कर उन्हें संकट में नहीं डालना चाहिए। इसलिए मैंने इस्तीफा देने का फैसला किया।’ यह पूछे जाने पर कि क्या वह नयी पार्टी बनाने की सोच रहे हैं, मांझी ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने 28 फरवरी को पटना में अपने समर्थकों की बैठक बुलाई है और अगर आम राय बनती है तो वह इस बारे में विचार करेंगे। मांझी ने राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद पर भी कटाक्ष किया और बीते 15 दिन से जारी उनकी खामोशी को लेकर सवाल उठाए।

उन्होंने कहा ‘लालू प्रसाद कहते हैं कि महादलित जाति के एक व्यक्ति के मुख्यमंत्री बनने के बाद बहुत अच्छा काम हुआ। लेकिन वह पिछले 15 दिन से चुप क्यों हैं ?’ कभी अपने मार्गदर्शक रहे नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए मांझी ने आरोप लगाया कि उनके खेमे ने बड़े पैमाने पर खरीद फरोख्त की। उन्होंने आरोप लगाया ‘विधायकों ने मुझे बताया कि नीतीश कुमार के खेमे की ओर से दो करोड़ रूपये, मंत्री पद और विधानसभा चुनाव के लिए पसंदीदा सीट से टिकट दिए जाने की पेशकश की गई थी।’

मांझी ने विधानसभा अध्यक्ष के आचरण पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने जो किया वह लोकतांत्रिक परंपरा के खिलाफ था। उन्होंने कहा ‘विधायकों की सदस्यता समाप्त किए जाने के विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को पटना उच्च न्यायालय की पीठ द्वारा दरकिनार किए जाने के बावजूद उन्होंने हमारे चार विधायकों की सदस्यता बहाल नहीं की।’’ मांझी ने कहा ‘मैंने सोचा कि यह उचित नहीं होगा कि कुछ और विधायक मेरा समर्थन करके कानूनी उलझन में फंसें और इस साल के आखिर में होने जा रहे विधानसभा चुनावों से पहले कानूनी लड़ाई में 4 से 5 लाख रूपये खर्च करें।’ उन्होंने नीतीश कुमार पर काम करने की स्वतंत्रता न देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा ‘यह सच है कि मैंने दो तीन माह तक रबर स्टैंप की तरह काम किया। मुझे नीतीश कुमार से अधिकारियों के तबादले की या पदस्थापना की सूची मिल जाती थी जिस पर मुझे सिर्फ अपने हस्ताक्षर करने होते थे।’

उन्होंने यह भी कहा कि वह (:मांझी) ‘बहुत कुंठा में थे।’ नीतीश कुमार ने मई में संपन्न आम चुनाव में हार के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और इस पद के लिए मांझी को चुना था। नीतीश के इस्तीफे के लिए अनिच्छा से सहमत हुए जदयू विधायक दल ने मांझी से अगले विधानसभा चुनाव तक मुख्यमंत्री बने रहने को कहा था जिसके बाद नीतीश उनसे यह दायित्व ले लेते। बिहार में नवंबर से पहले विधानसभा चुनाव होने हैं। बहरहाल, पूरी योजना धरी रह गई और मांझी तथा नीतीश के बीच सत्ता का संघर्ष शुरू हो गया , जिसकी परिणति सिर्फ आठ माह बाद मांझी के इस्तीफे में हुई ।

नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करने वाले मांझी को जदयू ने निष्कासित कर दिया था और उन्हें आज विधानमंडल में राज्यपाल का अभिभाषण होने के बाद, बहुमत साबित करना था। भाजपा ने कल मांझी को समर्थन का ऐलान किया था लेकिन फिर भी उनके पास विश्वास मत जीतने के लिए आवश्यक संख्या नहीं थी क्योंकि जदयू और उसके सहयोगी, राजद तथा कांग्रेस नीतीश के साथ खड़े हो गए थे।