जाति आधारित जनगणना के आंकडों को जारी करने की मांग को लेकर लालू ने मार्च किया
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जाति आधारित जनगणना के आंकडों को जारी करने की मांग को लेकर लालू ने मार्च किया

राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने सोमवार को यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पिछडी जाति का ‘दुश्मन’ होने का आरोप लगाते हुए जाति आधारित जनगणना के आंकडों को जारी करने की मांग को लेकर उन्हें इसे जारी करने की चुनौती दी और इसके लिए सतत संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया।

 जाति आधारित जनगणना के आंकडों को जारी करने की मांग को लेकर लालू ने मार्च किया

पटना : राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने सोमवार को यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पिछडी जाति का ‘दुश्मन’ होने का आरोप लगाते हुए जाति आधारित जनगणना के आंकडों को जारी करने की मांग को लेकर उन्हें इसे जारी करने की चुनौती दी और इसके लिए सतत संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया।

लालू ने सामाजिक-आर्थिक जातीय जनगणना को जारी करने की मांग को लेकर राजभवन मार्च तक मार्च किया।

उन्होंने कहा, ‘मोदी स्वयं पिछड़ी जाति से होने का दावा करते हैं, लेकिन सही मायने में वह इस समुदाय के दुश्मन हैं। जाति आधारित जनगणना के आंकडों को रोकने के पीछे केंद्र की मंशा क्या है।’ उन्होंने पिछले संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान अपनी मांग पर सरकार द्वारा जाति आधारित जनगणना कराए जाने का दावा करते हुए कहा कि जारी किया गया सामाजिक-आर्थिक हिस्सा देश में गरीबों की स्थिति को प्रकट कर रहा है, पर जाति वाले भाग को जारी करने से रोक लिए गया।

लालू ने आरोप लगाया कि 1931 की जातिगत जनगणना और 1980 में मंडल कमीशन के अनुसार, देश में 54 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग :ओबीसी: की जनसंख्या बढकर 70 से 80 प्रतिशत हो गयी हैं इसलिए सरकार डरी हुई है क्योंकि आंकडे सार्वजनिक हो गए तो पिछड़ा वर्ग शिक्षा, रोजगार एवं संसाधनों में अपनी हिस्सेदारी के अनुसार भागीदारी मांगेगा।

उन्होंने कहा कि सरकार रिपोर्ट सार्वजनिक इसलिए नहीं करना चाहती क्योंकि आंकडे उसके खिलाफ हंै। आंकडे सार्वजनिक करने से स्पष्ट दिखेगा कि कैसे उच्च जाति के 3-4 फीसदी लोगों ने सभी सरकारी सहायता प्राप्त एवं निजी संसाधनों पर कब्जा कर रखा है इससे पिछडों में आक्रोश बढेगा।

लालू ने कहा कि सरकार वंचितों को यह आभास नहीं होने देना चाहती कि भारतीय लोकतंत्र एवं सरकार में इन वर्गों की भागीदारी नगण्य है। मोदी कैबिनेट के 27 सदस्यों में से 20 कैबिनेट मंत्री उच्च वर्गों से है, जिसमें 8-10 जो लगभग 30 प्रतिशत कैबिनेट का हिस्सा है वो ब्राहमण है, चार क्षत्रिय बाकी कायस्थ, कम्मा, मराठा, खत्री इत्यादि हैं। कहने का मोटा अर्थ है देश की 10 प्रतिशत से भी कम आबादी वाले लोग सरकार एवं देश के 90 फीसदी लोगों को चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर कम से कम हम ये माने की ओबीसी 60 फीसदी हैं अनुसूचित जाति जनजाति तो 30 फीसदी हैं ही तो फिर सामान्य केवल 10 फीसदी ही बचे। अगर हम मंडल कमीशन के उदार आंकडों को भी माने तो उच्च वर्ग केवल 15-16 प्रतिशत है।

लालू ने कहा कि देश के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में मुश्किल से 5-6 राज्यों में पिछडे मुख्यमंत्री है और दलित तो है ही नहीं। प्रधानमंत्री कार्यालय में ओबीसी अफसर नहीं है।

उन्होंने कहा कि सरकार इसलिए भी आंकडे सार्वजनिक नहीं करना चाहती क्योंकि अगडी जातियों में से आरएसएस समर्थित जाति विशेष की भागीदारी बढ गयी और कुछ सवर्ण जातियों :ठाकुर और कायस्थ: की हिस्सेदारी उच्च पदों पर घट गयी हो। ऐसे आंकडों के आने से भाजपा की भी तथाकथित सवर्ण एकजुटता खंडित हो जाएगी।

लालू ने कहा कि सरकार को ये बताना चाहिए कि ग्रामीण इलाकों में 5.37 करोड :29.97प्रतिशत: परिवार भूमिहीन हैं जिनकी आजीविका का साधन मेहनत मजदूरी है। गांवों में 2.37 करोड :13.25 प्रतिशत: परिवार एक कमरे के कच्चे घर में रहते हैं। वो किन जाति समूहों से आते हैं।

उन्होंने कहा कि 9.16 करोड परिवार (51.14 प्रतिशत) दिहाडी मजदूरी एवं खेती पर निर्भर परिवारों से 30.10 प्रतिशत हैं उनकी जाति के आंकडे सरकार को सार्वजनिक करना चाहिए।

लालू ने कहा कि 4.08 लाख परिवार जो आजीविका के लिए कचरा बीनते हैं और 6.68 लाख परिवार जो भीख और दान पर निर्थर है उनकी जाति क्या है। उन्होंने कहा कि जो लोग आयकर देते हैं उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि और आय के साधन क्या है ये भी सार्वजनिक होना चाहिए।

लालू ने जातिगत जनगणना के आंकडे को सार्वजनिक किए जाने के लिए अपना आंदोलन सतत जारी रखने का संकल्प लेते हुए पहले तो इसको लेकर 25 जुलाई को बिहार बंद की घोषणा कर दी पर बाद में प्रधानमंत्री के उस दिन पटना और मुजफ्फरपुर दौरे को देखते हुए उसे वापस लिया और कहा कि बाद में उनकी पार्टी द्वारा बिहार बंद की तिथि के बारे में घोषणा की जाएगी।