अगर आप अपने बच्चे को पजल गेम खेलने के लिए देते है तो इसका कोई साइट डिफेक्ट नहीं है बल्कि आपके बच्चे का आई क्यू लेवल और मोटर स्किल दोनों ही बेहतर होगा.
2018 में प्रकाशित 'ग्लोबल गेमिंग रिसर्च' नामक एक अध्ययन में दावा किया गया है कि पिछले तीन महीनों में उपयोगकर्ताओं द्वारा डाउनलोड की गई सभी गेमों में 65 फीसदी गेम एक्शन थे.
जब बच्चे अलग-अलग बॉक्स और पड़ाव देखते हैं, तो वे नई समस्या का सामना करते हैं. जब उन्हें इस समस्या को हल करने का मौका मिलता है, तो वे मनोरंजक तरीके से समस्याओं का समाधान करना सीखते हैं. वे अलग-अलग डिब्बों को उठाते हैं और सोचते हैं कि इसे कहां रखना है. क्यों रखना है और इससे क्या फायदा होगा.
पजल में हर पड़ाव पर कुछ दिशा निर्देश दिए जाते हैं. इससे बच्चों को समझ में आता है कि कोई अच्छा काम करने के लिए उन्हें दिशा निर्देशों का पालन करना आवश्यक है.
पजल में मन और मस्तिष्क को एकाग्रचित किया जाता है. वहां हर पड़ाव को पूरे ध्यान से देखा जाता है और हाथों को उसके हिसाब से निर्देश दिया जाता है.
कौन सा बॉक्स कहां फिट बैठ रहा है, किस रंग को कहां लगाना है. यह आंखों और हाथों का समन्वय होता है. इस सही इस्तेमाल से ही पजल पूरी होती है.
रोजमर्रा के कामों में अंगुलियों, अंगूठे और कलाई की छोटी मांसपेशियों की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है. पजल में इन छोटी मांसपेशियों को सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है, जिससे उनकी कसरत होती है और वे मजबूत बनती हैं.
पजल को सुलझाते हुए वे कई चुनौतियों का सामना करते हैं. जब वे इन पर सफलता पा लेते हैं, तो उन्हें खुद पर गर्व महसूस होता है. इससे बच्चों में आत्मविश्वास भी बढ़ता है.
अक्सर पजल को पूरा करते समय, बच्चे अपने साथी बच्चों, भाइयों, बहनों, माता-पिता आदि से चर्चा करते हैं और विचार विमर्श करते हैं. उन्हें यह जानने के लिए आइडिया मिलता है कि कौन सा बॉक्स कहां लगेगा, यदि वहां लगाएं तो क्या होगा और वह रंग कहां गया है.
इससे खेलने से बच्चों में सोशल स्किल भी बढ़ती है. उन्हें सहज ही यह सिखने में मदद मिलती है कि बातचीत से भी बहुत सारी प्रॉब्लम सॉल्व हो सकती हैं.