CBIvsCBI: निदेशक की पोस्‍ट ऐसी नहीं, जो केवल विजिटिंग कार्ड पर लिखी हो: आलोक वर्मा के वकील
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CBIvsCBI: निदेशक की पोस्‍ट ऐसी नहीं, जो केवल विजिटिंग कार्ड पर लिखी हो: आलोक वर्मा के वकील

सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्‍थाना के मसले पर लगातार दूसरे दिन सुनवाई हो रही है.

CBIvsCBI: निदेशक की पोस्‍ट ऐसी नहीं, जो केवल विजिटिंग कार्ड पर लिखी हो: आलोक वर्मा के वकील

नई दिल्‍ली: सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्‍थाना के मसले पर लगातार दूसरे दिन सुनवाई हो रही है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगाई की अध्‍यक्षता वाली पीठ मामले की सुनवाई कर रही है. आज सुनवाई शुरू होने के बाद चीफ जस्टिस ने सवालिया लहजे में पूछा कि अगले कुछ महीनों में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा जब रिटायर होने वाले हैं तो उनको अचानक छुट्टी पर भेजने का सरकार ने फैसला क्‍यों लिया? आलोक वर्मा जनवरी में रिटायर होने वाले हैं.

इस मामले में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपना पक्ष रखा. अब कार्मिक मंत्रालय (डीओपीटी) की तरफ से अटॉनी जनरल पक्ष रख रहे हैं. कोर्ट ने आज की सुनवाई में अभी तक जो सवाल पूछे हैं और सीवीसी की तरफ से तुषार मेहता ने जो जवाब दिए हैं, उनको यहां बिंदुवार तरीके से पेश किया जा रहा है: 

कोर्ट के सवाल
1. सीजेआई ने कहा कि सीबीआई डायरेक्टर के कार्यकाल को दो साल तय करने के पीछे मकसद इस पद को स्थायित्व देना था. आलोक वर्मा की दलील है कि उनको छुट्टी पर भेजने का फैसला विनीत नारायण मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है और ये फैसला उनके चयन करने वाले पैनल की मंजूरी से लिया जाना चाहिए था. जस्टिस संजय किशन कौल ने CVC से पूछा- अगर हम ये मान ले कि उस समय की परिस्थितियों के अनुसार सरकार की कार्रवाई जरूरी थी तो आपने चयन समिति से संपर्क क्यों नहीं किया?

2. आलोक वर्मा का कहना है कि उन्हें उनके अधिकारों से दूर करने वाली कोई भी कार्रवाई विनीत नारायण मामले में दिए गए फैसले को भी प्रभावित करती है. सरकार को ऐसी किसी भी कार्रवाई के लिए चयन समिति की अनुमति चाहिए.

3. सीबीआई के दोनों अधिकारियों के बीच टकराव क्या रातोंरात शुरू हो गया जो चयन कमेटी की मंजूरी के बिना सरकार को आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने का फैसला लेना पड़ा. क्या ये बेहतर नहीं होता कि ऐसा कदम उठाने से पहले चयन कमेटी से परामर्श किया होता? ये कोई ऐसा मामला तो है नहीं कि दोनों शीर्ष सीबीआई अधिकारियों के बीच लड़ाई रातोंरात सरकार के सामने आई हो जिस कारण सरकार को चयन समिति से परामर्श किए बिना ही सीबीआई निदेशक को अपनी शक्तियों को विभाजित करने के लिए तत्काल कदम उठाने के लिए मजबूर किया जा सके. सीबीआई में विवाद जुलाई से शुरू हुआ था. जब आप जुलाई से इस स्थिति का सामना कर रहे थे तो अचानक ऐसा क्या हुआ कि आपको रातोंरात 23 अक्‍टूबर को निर्णय लेना पड़ा.
4. CJI- आलोक वर्मा के वकील नरीमन का कहना है कि सीबीआई निदेशक को DSPE एक्ट में दिए गए प्रावधानों के तहत तबादला या पद से हटाने की कार्रवाई 2 साल से पहले नहीं कि जा सकती. फिर प्रधानमंत्री वाले पैनल में ये मसला CVC ने क्यों नहीं रखा?

5. CJI- DSPE एक्ट के सेक्शन 4 (1) CVC को CBI के काम को कंट्रोल करने का अधिकार देता है. परंतु CBI पर CVC की निगरानी भ्रष्टाचार के मामलों में नहीं है. क्या CVC एक्ट का सेक्शन 8 DSPE एक्ट के सेक्शन 4 से ऊपर है? ये कार्रवाई पूरी तरह से सही क्यों नहीं हो सकती थी? चयन समिति से सलाह लेने में समस्या क्या थी? चयन समिति से सलाह न लेने से यह कहीं अधिक बेहतर होता कि आप चयन समिति से सलाह ले लेते.

सरकार CBI निदेशक के खिलाफ CVC जांच को तर्कपूर्ण अंजाम तक लेकर जाए- राकेश अस्थाना

CVC का जवाब
1. सीवीसी की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अपनी जांच और उस समय के हालात के चलते हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि एक अति गंभीर स्थिति आ गई है. ऐसे में आलोक वर्मा को और अधिक काम करने नहीं दिया जा सकता. इसलिए हमने उन्‍हें छुट्टी पर भेजना ही उचित समझा.

2. मान लीजिए, रिश्वत लेने वाले एक अधिकारी को कैमरे पर पकड़ा जाता है और उसे तत्काल निलंबित करने की जरूरत होती है, तो क्या उस अधिकारी को सरकार द्वारा बनाए रखा जाता है. सीबीआई के 2 वरिष्ठ अधिकारी (आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना) एक दूसरे के खिलाफ काम कर रहे थे. दोनों एक दूसरे के खिलाफ न केवल जांच कर रहे थे बल्कि एक दूसरे के घर पर छापेमारी भी कर रहे थे. दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ केस दर्ज कर दिए थे. सबूतों को प्रभावित कर सकते थे. ये हैरान कर देने वाले हालात थे.  अगर CVC कार्रवाई नहीं करती तो अपना काम न करने पर सरकार और न्यायपालिका द्वारा उनकी जवाबदेही तय की जाती. बाद में उन्हें काम न करने का जिम्मेदार माना जाता.

3. हमने यह अंतरिम आदेश CBI जैसी विश्वसनीय संस्था को बचाने के लिए जारी किया है. इसके अलावा हमने ऐसा कुछ नहीं किया है कि जिसे यह कहा जा सके कि वो काम हमने अपने दायरे से बाहर जाकर किया. आलोक वर्मा को उनके काम से हटाना स्थाई नहीं है.  सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को कार्यालय से तब तक दूर रहने के लिए कहा गया है, जब तक CVC या सरकार इस मामले में अंतिम फैसला न ले ले. हम ऐसे नहीं हैं कि कुछ कार्रवाई करें और बाद में उस कार्रवाई को सही ठहराने की कोशिश करें.

आलोक वर्मा का पक्ष
केन्द्र व सीवीसी की दलीलों के बाद आलोक वर्मा की तरफ से पेश वकील फली नरीमन ने दोबारा से दलील रखनी शुरू कीं. उन्होंने सीबीआई निदेशक की पोस्ट के महत्व के बारे में दलीलें देते हुए कहा कि ये ऐसी पोस्ट नहीं है जो केवल आपके विजिटिंग कार्ड पर लिखी हो और निदेशक को छुट्टी पर भेजने के बाद सरकार के लिए यह कहना काफी नहीं है कि आलोक वर्मा अभी भी निदेशक हैं.

इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या यहां कोई कार्यकारी CBI निदेशक नहीं हो सकता? फली नरीमन ने कहा कि नहीं हो सकता. उसके बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर कोई विशेष परिस्थिति आ जाए तो क्या कोर्ट सीबीआई निदेशक नियुक्त कर सकता है? इस पर नरीमन ने कहा कि हां, यह हो सकता है, अगर सुप्रीम कोर्ट अपनी असीम शक्तियों का प्रयोग करे तो. फली नरीमन ने कहा कि अलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की थी जिससे नाराज होकर सरकार ने वर्मा को छुट्टी पर भेजा. इसके साथ ही आलोक वर्मा की दलीलें पूरी हुईं.

राकेश अस्‍थाना का पक्ष
सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी को कोर्ट ने कोर्ट ऑफिसर के तौर पर बोलने की अनुमति दी. रोहतगी ने कानून को लेकर कुछ दलीलें रखीं. इसके बाद जैसे ही उन्होंने केस के तथ्यों पर बोलना शुरू किया तो CJI ने उन्हें रोक दिया. चीफ जस्टिस ने कहा कि अब कोर्ट अधिकारी नहीं, राकेश अस्थाना बोल रहे हैं.

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