UP चुनाव में छाया जिन्ना-पाकिस्तान-कब्रिस्तान का मुद्दा, CM योगी का अखिलेश यादव पर तंज
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UP चुनाव में छाया जिन्ना-पाकिस्तान-कब्रिस्तान का मुद्दा, CM योगी का अखिलेश यादव पर तंज

UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव की शुरुआत में ही सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने जिन्ना का नाम लिया था, जिसके बाद सियासी माहौल गरमा गया था और बाद में बीजेपी ने इसे मुद्दा बना लिया.

जिन्ना पर जंग.

लखनऊ: यूपी विधान सभा चुनाव (UP Assembly Election) में राजनीति जिन्ना (Jinnah), पाकिस्तान (Pakistan) और कब्रिस्तान के घेरे में उलझ कर रह गई है. बीजेपी (BJP) लगातार अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के कार्यकाल को निशाना बनाकर तुष्टिकरण का आरोप लगा रही है. योगी सरकार (Yogi Govt) का कहना है कि वो सरदार पटेल (Sardar Patel) को मानते हैं जबकि अखिलेश यादव जिन्ना की उपासना करते हैं. लेकिन अखिलेश यादव अब योगी सरकार पर पलटवार करने के लिए किसान और रोजगार का मुद्दा उठा रहे हैं.

  1. जिन्ना की लड़ाई गन्ना तक पहुंची
  2. किसानों पर क्यों चलवाई गोली- अखिलेश यादव
  3. उनको पाकिस्तान प्यारा है- योगी आदित्यनाथ

जिन्ना का जिन्न चुनावी बोतल से बाहर आया

यूपी चुनाव में अखिलेश यादव के एक भाषण ने जिन्ना का जिन्न चुनावी बोतल से बाहर निकाला तो उसके पीछे-पीछे पाकिस्तान और कब्रिस्तान का मुद्दा भी उठा. सीएम योगी आदित्यनाथ के एक ट्वीट ने इस लड़ाई को और तेज कर दिया है.

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वे 'जिन्ना' के उपासक हैं- सीएम योगी

सीएम योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट किया कि वे 'जिन्ना' के उपासक हैं, हम 'सरदार पटेल' के पुजारी हैं. उनको पाकिस्तान प्यारा है, हम मां भारती पर जान न्योछावर करते हैं.'

अखिलेश यादव ने दिया ये जवाब

इस ट्वीट को लेकर ज़ी न्यूज़ ने जब अखिलेश यादव से बात की तो उन्होंने बीजेपी पर पलटवार करते हुए लखीमपुर कांड की बात छेड़ दी. अखिलेश यादव ने कहा कि अगर वो सरदार पटेल के पुजारी हैं तो किसानों पर गोली क्यों चलवाई?

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अखिलेश यादव ने ही सबसे पहले किया था जिन्ना का जिक्र

गौरतलब है कि यूपी चुनाव की शुरुआत में ही अखिलेश यादव ने जिन्ना का जिक्र किया था, जिसके बाद सियासी माहौल गरमा गया था. इसे मुद्दा बनाकर बीजेपी बार-बार अखिलेश यादव को ही घेरती है. हालांकि बाद में ये लड़ाई जिन्ना से यूपी के गन्ना किसानों तक पहुंच गई.

यूपी में अब जिन्ना, पाकिस्तान और कब्रिस्तान का मुद्दा उस बेताल की तरह हो गया है जिससे पीछा छुड़ाना मुश्किल लग रहा है या शायद सियासी दल अपने चुनावी फायदे के लिए इससे पीछा छुड़ाना ही नहीं चाहते हैं.

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