'वन रैंक-वन पेंशन के लिए तय नहीं की जा सकती कोई समय सीमा'
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'वन रैंक-वन पेंशन के लिए तय नहीं की जा सकती कोई समय सीमा'

‘वन रैंक-वन पेंशन’ योजना के लिए सभी औपचारिकताओं को पूरा करने की बात कहने के एक दिन बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने शुक्रवार को कहा कि कई प्रशासनिक कदम उठाया जाना अभी बाकी है इसलिए इस योजना के क्रियान्वयन को लेकर कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकती।

'वन रैंक-वन पेंशन के लिए तय नहीं की जा सकती कोई समय सीमा'

मुंबई : ‘वन रैंक-वन पेंशन’ योजना के लिए सभी औपचारिकताओं को पूरा करने की बात कहने के एक दिन बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने शुक्रवार को कहा कि कई प्रशासनिक कदम उठाया जाना अभी बाकी है इसलिए इस योजना के क्रियान्वयन को लेकर कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकती।

पर्रिकर ने कहा, ‘‘वन रैंक-वन पेंशन के क्रियान्वयन के लिए कोई निश्चित तारीख नहीं हो सकती। पिछली सरकार ने इस योजना को सही तरीके से समझा नहीं था। बहुत सी बारीकियां और पहलू हैं जिन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। काफी समय लगाकर मैंने विभाग को स्पष्ट रूप दिया है... दो तीन प्रशासनिक कदम हैं जो अभी उठाए जाने बाकी हैं।’’ वह यहां ‘‘मेक इन इंडिया फोर डिफेंस प्रोडक्शन’’ पर इंडियन मर्चेन्ट्स चैम्बर में एक सेमिनार को संबोधित कर रहे थे।

पर्रिकर ने कल कहा था, ‘‘मेरे मंत्रालय ने सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं और एक रैंक एक पेंशन को लागू किया जाएगा।’’ उन्होंने साथ ही कहा था कि कार्यकारी प्रक्रिया में कुछ समय लगता है। मंत्री ने कहा था कि रक्षाकर्मियों द्वारा दिए जाने वाले बलिदान को सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें दिए जाने वाले पैसे से नहीं मापा जा सकता।

उन्होंने कहा, ‘‘चुनाव प्रचार के दौरान हमने जो वादे किए थे वे पांच साल के लिए थे न कि एक साल के लिए। मुझे पक्का विश्वास है कि पांच सालों में हम शानदार काम करेंगे। हमारे रक्षाकर्मी जो बलिदान देते हैं उसे उन्हें दिए जाने वाले धन से नहीं मापा जा सकता। मैं सभी सीमाओं पर गया हूं और मुझे पता है कि लगातार छह महीने तक निर्जन इलाकों में रहना एक आम आदमी के लिए लगभग असंभव है।’’

उन्होंने साथ ही कहा, ‘‘एक रैंक, एक पेंशन हमारे वादे का हिस्सा है लेकिन बलिदान को रुपयों से नहीं मापा जा सकता।’’ इस योजना को लागू करने में सरकार की ‘देरी’ पर विरोध जताते हुए 1971 युद्ध में भाग लेने वाले विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) सुरेश कार्निक ने कल पुणे में एक बहादुरी पुरस्कार समारोह का बहिष्कार किया था जिसमें पर्रिकर ने भाग लिया था।

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