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दुनिया में कोई ऐसा सपना है, जो किसी असफलता से टूट सकता है. एक शब्द में इसका सटीक जवाब है- नहीं. ये सपने टूटते वक़्त महसूस नहीं होते, क्योंकि हम यह नहीं जानते कि हमारी नियति क्या है? हमें जाना कहां हैं? जबकि ज़िंदगी जैसे ही एक रास्ता बंद करती है, तुरंत दूसरा खोलती है, हमें तो बस तैयार होना होता है. ज़िंदगी अवसर का पर्यायवाची है.
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दोस्तों, रिज़ल्ट के बेहद डरावने माहौल में यह समझना बेहद ज़रूरी है कि अगर पूरी ताक़त, संकल्प से प्रयास के बाद भी सफलता में कमी रह गई, तो अवश्य ही कोई 'वजह' होगी. मंज़िल वैसे भी आसानी से नज़र नहीं आती, हम ज़्यादातर सफ़र को ही मंज़िल मान लेते हैं.
जबकि ज़िंदगी का कोई सीधा रास्ता नहीं है. यह ख़ूबसूरत, ख़तरनाक मोड़ से भरा रास्ता.. सफ़र है. जंगल जितना घना है, उससे गुज़रने का उतना ही रोमांच है. आपने पूरी तैयारी की, गाड़ी को सौ बार चेक किया, लेकिन जंगल में जाकर गाड़ी ख़राब हो गई तो दोषी कौन. याद रखिए, ठीक तो सौ ज़िम्मेदार और परेशानी आई तो कोई नहीं. इन आदतों को उतार फेंकिए.
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यही बात रिज़ल्ट पर भी लागू होती है. आपकी तैयारी शानदार थी, आपने सब कुछ अच्छा किया, लेकिन आपकी आंसर शीट चेक करते वक़्त टीचर से भी तो ग़लती हो सकती है. क्या गारंटी है कि उससे ग़लती नहीं हो सकती. क्या गारंटी है कि उसके मूड का आंसर शीट पर असर नहीं पड़ा होगा.
इसलिए भविष्य की चिंता छोड़ दें और इस शिक्षा पर चलें कि प्रकृति अपने बच्चों से बहुत प्यार करती है, उसके थैले में सबके लिए सबकुछ है, बस उससे सही तरीक़े से मांगना है, उसकी भाषा में. ताकि सही चीज़ आप तक पहुंचे.
तो फिर दूसरों के किए की सज़ा, ख़ुद को क्यों? आप कितने ही बड़े विशेषज्ञ क्यों न हों, लेकिन ज़िंदगी में सब कुछ हमेशा आपकी योजना के हिसाब से होना ज़रूरी नहीं. किसान ने पूरी मेहनत से फसल तैयार की. फसल कटकर, ट्रक में लदकर, मंडी के दरवाज़े तक पहुंच गई, लेकिन किसी कारण से उस दिन मंडी बंद हो गई. अचानक बारिश और तूफ़ान आ गया तो आप क्या करेंगे. यानी कुछ ऐसा है, जो हमारी पहुंच से बाहर है, आप उसे जो चाहे नाम दे दें. लेकिन उसे कंट्रोल नहीं कर सकते. तो उसका शोक क्यों?
'डियर जिंदगी' : क्या आपका बच्चा आत्महत्या के खतरे से बाहर है
जिस पर आपका नियंत्रण नहीं, उसकी सज़ा आप ख़ुद को कैसे दे सकते हैं? यह बेइमानी है, ख़ुद से. आपसे प्रेम करने वालों से. आत्महत्या, वह सज़ा है, जो आपसे सबसे अधिक प्रेम करने वाले को पूरी उम्र काटनी होती है. आजीवन कारावास से भी अधिक कष्टकारी. ऐसी सज़ा अपने परिवार, दोस्त को आप कैसे दे सकते हैं. किसी भी हाल में नहीं, किसी भी स्थिति में नहीं.
कोई भी असफलता जीवन से बड़ी नहीं. कोई भी सपना मनुष्य से बड़ा नहीं है. कोई भी रिज़ल्ट, अवसर आपसे बड़ा नहीं. हमें जीना है, हर हाल में जीना है, उस उम्मीद के लिए जिसका नाम, ज़िंदगी है. इसे, बस दूसरों के क़िस्से पढ़ने में ज़ाया नहीं करना है, इसे संघर्ष की आंच में तपाना है, हर मुश्किल से लोहा लेना है.
सबसे बड़ा है, जीवन. उससे बड़ा न तो कोई वादा है, न प्रतिष्ठा और न ही अपमान. जीवन का विजेता वही है, जो हर हार के बाद और बड़ी हार फिर उससे भी बड़ी जीत की कहानी लिए दौड़ रहा है. लोग क्या कहेंगे, इस विचार को राह चलते किसी भी नदी, तालाब और समंदर में बहा दीजिए, ज़मीन की गहराई में दफ़न कर दीजिए, क्योंकि यह मनुष्यता का सबसे बड़ा दुश्मन है.
अपने कमरों की दीवारों पर टांग दीजिए, टी-शर्ट पर लिख लीजिए.. टैटू करवा लीजिए... लोग कुछ नहीं कहते, कुछ नहीं करते. वह ख़ुद डरते, दूसरों को डराते हैं. और जो उनसे नहीं डरा, उसके बारे में पढ़ने के लिए अख़बार और किताबें ख़रीदते हैं.
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)