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तुम क्या बनना चाहते हो ! भारत में बच्चों से सबसे अधिक पूछा जाने वाला सवाल यही है. जिस बच्चे को अभी दुनिया के बारे में तो दूर, स्कूल और कॉलेज की किताबों के बारे में ठीक से नहीं पता.. उसके दिल और दिमाग में यह सवाल ठूंसने में हम दुनिया में नंबर एक हैं. इतना ही नहीं बड़ी संख्या में परिवार के लोग बच्चों को रटा देते हैं कि 'अंकल, को बताना क्या है.' जब सवाल और जवाब दोनों माता-पिता के हैं, तो बच्चा बनेगा क्या? वह जो भी फ़ैसले लेगा, उसके अपने नहीं होंगे, इसलिए उसके सपनों में हमेशा उदासी की छाया रहेगी.
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बच्चे के रूप में वास्तव में हम एक ऐसी इमारत बना रहे हैं, जहां सब कुछ हमारे चाहे अनुसार हुआ है, लेकिन किराएदार को किराए पर देते हुए कहते हैं कि इसे आपकी सहूलियत के हिसाब से बनवाया गया है. हालांकि वहां किराएदार के लिहाज से कुछ नहीं है, लेकिन कहना हर किराएदार से यही है कि इसका निर्माण से बस तुम्हारे लिए हुआ है. इस काम में प्रोपर्टी ब्रोकर माहिर होते हैं. लेकिन अब यह ब्रोकरशिप धीरे-धीरे हमारी आत्मा में प्रवेश कर गई है. हर चीज़ में मुनाफ़े की आदत हमें तबाह कर देगी.
इसके चलते हम भी अपने बच्चों के एजेंट बन गए हैं. बच्चों को सबकुछ करवाना अपने मन का है, बस उसमें 'नेम प्लेट' बच्च्ो के नाम की है. क्या बाहर 'नेम प्लेट' होने भर से मकान आपका हो जाता है, नहीं. मकान तो उसका है, जिसके नाम पर रजिस्ट्री है, जिसके नाम पर दस्तावेज़ हैं.
ठीक यही हाल बच्चों का है. बस उनके नाम ही उनके हैं, उनके ख़्वाब में सारे रंग तो माता-पिता और परिवार के हैं. इतना ही नहीं अगर वह अपने हिसाब से रंग भरना चाहता है तो हम उसके ख़्वाब में जाकर उसके रंगों में मिलावट कर देते हैं. उसकी ओरिजनल थॉट प्रोसेस को काउंसिलिंग से निखारने के नाम पर ट्रेंड की मिलावट कर देते हैं.
हम समझ नहीं पा रहे हैं कि ज़िंदगी में कुछ भी आसान नहीं है, ठीक वैसै ही जैसे कुछ भी मुश्किल नहीं है. हर सपना मुश्किल हो या फिर आसान दोनों बस इससे तय होता है कि उसमें बच्चे की अपनी इच्छा कितनी शामिल है. जिस सपने में वह पूरी तरह शामिल होगा, वहां कभी उदासी दस्तक नहीं देगी, वहां कभी घुटन नहीं होगी. वहां कभी आत्मा की दीवार पर दुख, उदासी की धूल नहीं जमा होगी. यक़ीनन, वहां कभी आत्महत्या नहीं होगी.
हमारे मन में ज़िंदगी के लिए प्यार होना चाहिए. भरपूर... लेकिन इस धोखे में भी न रहें कि प्यार भर से काम चल जाएगा. क्योंकि ज़िंदगी कदम-कदम पर हमारी परीक्षा लेती है, इसलिए उसे प्यार के साथ एकाग्रता और लक्ष्य पर अर्जुन सी नज़र भी चाहिए. ज़िंदगी उसकी है, जो उसके जैसा हो जाए. उसके रंग में मिल जाए. उसके लिए सबकुछ लुटा दे.
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ज़िंदगी पाइथागोरस की थ्योरम नहीं है, जिसमें सारे बच्चे एक ही फॉर्मूले से उसे सॉल्व कर लें और न भी कर पाएं तो 'हेंस प्रूव्ड' लिख दें... ज़िंदगी किसी फॉर्मूले से नहीं चलती. वह केवल अपने अनुभव की आंच पर निखारी जा सकती है. अपने सपनों की उमंग से हासिल की जा सकती है. अपनी भरपूर ऊर्जा से उसे पूरी तरह से जिया जा सकता है.
जीवन एक यात्रा है, इसमें सब कुछ वैसे ही है, जैसे दूसरी यात्राओं में होता है. उतना ही रोमांच, मुश्किल और मज़ा.. हम जितना ज़िंदगी को एक्सपोज़र देंगे, वह बदले में हमें उतना ही अधिक लौटाएगी. उदासी और दुख ज़िंदगी के रास्ते में आएंगे ही, लेकिन उन्हें पूरी ताक़त से 'नो' कहते हुए आगे बढ़ना है.. और हां, यहां भी 'न' का मतलब 'न' ही होना चाहिए...
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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