डियर जिंदगी: खुद को बदले बिना बच्‍चे नहीं बदलने वाले...
Advertisement

डियर जिंदगी: खुद को बदले बिना बच्‍चे नहीं बदलने वाले...

बच्‍चों में बदलाव की पहली कड़ी खुद में परिवर्तन करना है.

हम सबने वह समय देखा है, जब हमारे माता-पिता घर में शांति से झगड़ लेते थे. उनके बीच तनाव भी सौम्‍यता से रहता था. बुजुर्गों की उपस्थिति उनके आपसी गुस्‍से, तनाव को अनुभव, प्‍यार से संभाल लेती थी. एंगर मैनेजमेंट की सबसे बड़ी खूबी है, क्रोध के उस एक पल को संभाल लेना जब वह अपने चरम पर हो. वह एक पल,कुछ पल ही सबसे कठिन होते हैं, क्‍योंकि गुस्‍से का भाव स्‍थाई  नहीं होता.वह जैसे आता है, वैसे ही चला जाता है, बशर्ते उसे उसी पल उसे सदभावना, प्रेम का सहारा मिल जाए. 

जब हमने माता-पिता को लड़ते नहीं देखा. एक दूसरे पर चीखते नहीं देखा. मुश्किल वक्‍त में भी धैर्य, शांतचित्‍त देखा, अंतर्मुखी देखा. तो हम भी अधिकांश वैसे  ही हुए. लेकिन इधर एक दशक में समाज की बुनावट में तेजी से परिवर्तन हुआ है. इन दिनों घरों में विवाद बढ़ गया है. पति-पत्‍नी के बीच औसत बहस, तनाव  का समय अपेक्षा से कहीं अधिक बढ़ा.क्‍योंकि दोनों अकेले हैं, और दोनों के पास अनलिमिटेड डेटा, कॉलिंग से लैस मोबाइल हैं. जैसे ही दिमाग का पारा गर्म हुआ, मोबाइल पर दोनों पक्ष भिड़ जाते हैं. कहीं भी, किसी भी जगह. मोबाइल पर किसी भी समय बहस शुरू हो जाती है. जो सौ में से नब्‍बे बार टाली  जा सकती थी. अब तो यह भी ध्‍यान नहीं रखा जाता कि आप मीटिंग में हैं, ड्राइव कर रहे हैं या दोस्‍तों के साथ हैं. क्‍योंकि सभी जगह पर मोबाइल, चैट पर बहस की सुविधा है. इस  पर बेहिसाब पल, घंटे बर्बाद किए जा रहे हैं. दिन में हर दो चार घंटे में मेंटल डिसर्टबेंस  की स्थितियां बन जाती हैं, कई बार ऐसी बेबुनियाद बहसें बेहद अप्रिय घटनाओं की शक्‍ल ले लेती हैं और अपने पीछे जीवन भर का दुख छोड़ जाती हैं, उन्‍हीं अपनों के लिए जिन्‍हें हम सबसे अधिक प्रेम करते हैं.

यह भी पढ़ें- डियर जिंदगी: क्‍या घर पर भी आप ऑफि‍स जैसे हैं...

पैरेंटस की सारे बहसें, विवाद, तर्क-कुतर्क बस कुछ बच्‍चों के सामने हो रहे हैं. पैरेंटस का तर्क है कि बहस, झगड़े के लिए और कोई जगह नहीं है.जबकि मूल बात जगह की नहीं, धैर्य की कमी, ठहराव का न होना है. बस जो मन में आया उसे अभी कहना है, एक पल  का भी इंतजार नहीं. यह बेसब्री ही असल में जिंदगी का स्‍वाद किरकिरा कर रही है. विश्‍वास, दूसरे को सुनना, किसी भी रिश्‍ते का सबसे खास गुण है, जो विलुप्‍त होने की कगार पर पहुंच गया है.

ये भी पढ़ें- डियर जिंदगी: हम किसके सपने जी रहे हैं...

सबसे मजेदार तो  यह है कि हम अपने बच्‍चों में वही सब देखना चाहते हैं. जो हम नहीं हैं, नहीं करते हैं. हम बच्‍चों को धैर्यवान, शांत, एकाग्रचित्‍त, मोबाइल से दूर रखना चाहते हैं. जबकि हम खुद इनमें से एक भी ऐसा काम  नहीं कर रहे हैं, तो बच्‍चे कैसे करेंगे.बच्‍चे सबसे अधिक पैरेंटस से ही सीखते हैं, तो जब हम उनके भीतर इनपुट ही इन आदतें को कर रहे हैं, जिनसे हम खुद ही परेशान हैं तो उनका आउटपुट भी तो वैसा ही होगा.केवल इच्‍छा से कुछ नहीं होता, बातों का व्‍यवहार में उतरना भी उतना ही जरूरी है, जो कि पूरी तरह से गायब हैं. 

ये भी पढ़ें: क्‍या आपका बच्‍चा आत्‍महत्‍या के खतरे से बाहर है... 

बच्‍चों में बदलाव की  प्राथमिक, पहली कड़ी है, खुद में परिवर्तन. वह सारी बातें जो हम बच्‍चों में देखना चाहते हैं, उन्‍हें सबसे पहले खुद की आदतों में शामिल करना होगा,तभी वह बच्‍चों के व्‍यवहार में शामिल हो पाएंगी. वरना हम हमेशा शिकायतें ही करते रहेंगे कि बच्‍चे हमारी सुनते ही नहीं, मनमानी करते हैं. जबकि बच्‍चे को असल में मनमानी करने वाला, बेसब्र, उग्र बनाने में सबसे बड़ी भूमिका खुद हमारी अपनी है.

(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

(https://twitter.com/dayashankarmi)

(अपने सवाल और सुझाव इनबॉक्‍स में साझा करें: https://www.facebook.com/dayashankar.mishra.54)

Trending news