डियर जिंदगी : काश! सुसाइड करने वाले बच्‍चे समझ पाते, 'लोग कुछ नहीं कहते...'
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डियर जिंदगी : काश! सुसाइड करने वाले बच्‍चे समझ पाते, 'लोग कुछ नहीं कहते...'

बच्‍चों के साथ रहें, उनका ख्‍याल रखें. यह समय उनमें स्‍नेह के निवेश का है,जो आगे चलकर आपको सबसे अच्‍छे रिटर्न देगा.

उनकी आवाज बेदम थी. बड़ी मुश्किल से टूटे-फूटे शब्‍दों में उन्‍होंने जो कहा वह दिल दहला देने वाला था. 'दसवीं के रिजल्‍ट वाले दिन उनके बेटे और बेटी ने सुसाइड कर लिया. पहले बहन फि‍र भाई ने. दोनों के नंबर उनके हिसाब से कुछ कम थे.' जो पीड़ा इन बच्‍चों के कम नंबर आने से माता-पिता को हुई थी, वह एक दिन भी न रह पाई, क्‍योंकि बच्‍चों ने उन्‍हें आजीवन दुख की कोठरी में धकेल दिया. 

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यह सूचना मुझे निजी तौर पर देश के एक दूरदराज के जिले से मिली. सूचना देने वाले 'डियर जिंदगी' के पाठक थे, जिन्‍हें लगता था कि मैं समय से पहले ऐसे विषयों पर बात कर रहा हूं, जिसके लिए शायद अभी भारत सही जगह नहीं है. वह अकेले ऐसे नहीं है. इस देश में अभी भी माना जाता है कि डिप्रेशन और आत्‍महत्‍या जैसे विषय शहरों के लिए ही प्रासंगिक हैं, जबकि बीते पांच साल में ही इसका वायरस पूरे देश में फैल गया है. हाल ही में एक रिपोर्ट में हर चौथे बच्‍चे में मनोरोग के लक्षण मिलने का दावा किया गया है. 

इसकी मुख्‍य वजह बच्‍चों में अनजाने में पनपा 'ईगो' और समाज का  'आशंका ' क्‍लब है. 'आशंका' क्‍लब की चर्चा हमने पिछले लेख में की थी. आज हम 'ईगो' पर बात करते हैं. यह 'ईगो' उनके अंदर जाने-अनजाने तरीके से परिवार, स्‍कूल और समाज ने विकसित किया है. इसके पीछे 'द बेस्‍ट' का स्‍थाई भाव है. यानी हमारा बच्‍चा, बच्‍चा नहीं सुपरहीरो है. पैदा होते ही वह सब करने लग जा रहा है. वह हर मायने में दूसरे से अलग है. सबसे खास...डांस, पढ़ाई, स्‍वीमिंग, स्‍पोटर्स और क्‍लास में भी.  

बच्‍चे के इस दुनिया में आने के मुश्किल से तीस महीने के भीतर स्‍कूल और 48 महीने के अंदर बस्ते और होमवर्क का भार. उसकी हर बात सेल्‍फी से दुनिया तक पहुंचना. हर छोटी-छोटी बाल सुलभ चीजों की प्रदर्शनी से उसका आभामंडल तैयार करना. उसे जबरन प्रदर्शन के लिए तैयार करना. बच्‍चे को हर चीज दूसरों से अलग और सबसे आगे रहने की आदत विकसित करना. 

यह सब एक सप्ताह या महीनों में नहीं होता. बरसों में होता है और एक दिन बच्‍चा हमारी ही तैयार जमीन पर हमारी ही पकड़ से बहुत दूर चला जाता है. जरा सा पिछड़ते ही अपने अंदर शर्मिंदगी के भाव को बसा लेता है, क्‍योंकि उसके ईगो को चोट लगती है, जिसमें उसे सि‍खाया गया है कि हर हाल में आगे रहना है. जिंदगी का मकसद ही जीत है. इसलिए वह छोटी-छोटी हर चीज से ही टूटने लगता है. उसका सबसे बड़ा डर यही होता है कि अब अंकल, आंटी, दोस्‍त, टीचर सब क्‍या कहेंगे? मैं किस-किस को जवाब दूं. मेरे कारण उन सबको तकलीफ हुई... 

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जबकि यह सारे भार झूठे और आपके बुने हुए हैं. उनका कोई अस्तित्‍व नहीं है. इस भागती दुनिया में किसी के पास दूसरे के लिए वक्‍त नहीं और आप हैं कि लोगों के डर से जान देने चल दिए... यह सब बच्‍चे की नितांत अकेली मनोवैज्ञानिक दुनिया में हो रहा है, जिसकी उसके परिवार को कोई जानकारी नहीं है. सबको लगता है, हमारा बच्‍चा सबसे समझदार है, कुछ दिन की बात है, समझ जाएगा, फि‍र अगली रेस को तैयार हो जाएगा. जिन परिवारों ने बच्‍चों में स्‍नेह का निवेश सजगता से, कायदे से किया होता है, वहीं बच्‍चे सही तरीके से खराब रिजल्‍ट का सामना कर पाते हैं, बाकी इसका तनाव न जाने कितने बरस उठाए फिरते हैं, क्‍योंकि बचपन की असफलता आसानी से पीछा नहीं छोड़ती.

जरा याद करिए, आप सब लोग जो चालीस और पचास बरस के पड़ाव में हैं, आपके जीवन भर की तस्‍वीरों के मुकाबले आपके बच्‍चों की कितनी तस्‍वीरें और एलबम हैं. इस बात के समर्थन में आप सैकड़ों तर्क रखकर मुझे हरा सकते हैं, लेकिन जिस तरह से हम सब अपने बच्‍चों को दुनिया का एक्‍सपोजर दे रहें हैं, वह बहुत ज्‍यादा खतरनाक है. क्‍योंकि बच्‍चा हर फ्रेम में अपने को बेस्‍ट साबित कर रहा है. रिजल्‍ट में कम नंबर आते ही यह सब उस पर भारी पड़ने लगता है. उसे अपनी 'द बेस्‍ट' बताने वाली तस्‍वीरों और अपने बारे में किए गए नकली दावों से निराशा, उब होने लगती है. यह निराशा, डिप्रेशन की ओर जाने वाला पहला और सबसे तेज रास्‍ता है. यहां से बच्‍चे कभी भी आत्‍महत्‍या की डगर पकड़ सकते हैं. 

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चलिए, मैं आप सबसे अनुरोध करता हूं कि अपने आसपास के बच्‍चों से संपर्क में रहें, जो उन दिनों रिजल्‍ट के तनाव में हैं. जरूरी नहीं कि वह आपके घर के ही हों. जहां कहीं बच्‍चे हैं, पड़ोस में, रिश्‍तेदारों के घर, दोस्‍तों के घर. उनसे संपर्क में रहें, उन्‍हें एहसास दिलाएं कि वह अनमोल हैं, उन पर ऐसे सैकड़ों रिजल्‍ट कुर्बान हैं. उन्‍हें बताएं कि दुनिया ऐसे बच्‍चों की सफलता से भरी अलमारी है, जो शिक्षकों की गलती से अच्‍छा नहीं कर पाए थे. बच्‍चों के साथ रहें, उनका ख्‍याल रखें. यह समय उनमें स्‍नेह के निवेश का है, जो आगे चलकर आपको सबसे अच्‍छे रिटर्न देगा. 

(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

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