अयोध्या विवाद : CJI और जस्टिस भूषण के फैसले की किन बातों पर जस्टिस अब्दुल नजीर ने जताई असहमति
Advertisement

अयोध्या विवाद : CJI और जस्टिस भूषण के फैसले की किन बातों पर जस्टिस अब्दुल नजीर ने जताई असहमति

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बैंच ने 2 के मुकाबले 1 मत से फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण की राय इस मामले में एक थी, लेकिन तीसरे जज जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने दोनों जजों से अलग राय रखी.

अयोध्या विवाद : CJI और जस्टिस भूषण के फैसले की किन बातों पर जस्टिस अब्दुल नजीर ने जताई असहमति

नई दिल्ली : अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़े एक अहम मामले में सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा, पुराना फैसला उस वक्त के तथ्यों के मुताबिक था. मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अटूट हिस्सा नहीं है. पूरे मामले को बड़ी बेंच में नहीं भेजा जाएगा'. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बैंच ने 2 के मुकाबले 1 मत से फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण की राय इस मामले में एक थी, लेकिन तीसरे जज जस्टिस अब्दुल नजीर ने दोनों जजों से अलग राय रखी.

जस्टिस भूषण ने कहा कि 'फैसले में दो राय, एक मेरी और एक चीफ जस्टिस की, दूसरी जस्टिस नजीर की. जस्टिस अब्दुल नजीर ने इस फैसले से असहमति जताई. उन्होंने फैसले पर अपनी राय देते हुए कहा, पुराने फैसले में सभी तथ्यों पर विचार नहीं किया गया. मस्जिद में नमाज पर दोबारा विचार करने की जरूरत है. इसके साथ ही इस मामले को बड़ी बैंच को भेजा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है इस विषय पर फैसला धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए. न्यायमूर्ति नजीर ने बच्चियों के खतने पर न्यायालय के हालिया फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मौजूदा मामले की सुनवाई बड़ी पीठ द्वारा की जानी चाहिए. लाइव टीवी

2-1 से आया इस मामले में फैसला...
जस्टिस नजीर ने इस मामले में अपनी राय रखते हुए कहा, 'मैं अपने भाई जजों की राय से सहमत नहीं हूं.' खतने पर सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले का जिक्र करते हुए जस्टिस नजीर ने कहा कि इस मामले को बड़ी बेंच में भेजा जाना चाहिए. जस्टिस नजीर ने कहा कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है, इस विषय पर फैसला धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए, उसपर गहन विचार की जरूरत है. जस्टिस नजीर ने कहा कि जो 2010 में इलाहाबाद कोर्ट का फैसला आया था, वह 1994 फैसले के प्रभाव में ही आया था. इसका मतलब इस मामले को बड़ी पीठ में ही जाना चाहिए था.

'मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्‍लाम का अटूट हिस्‍सा नहीं', सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुख्‍य बातें यहां पढ़ें

मुस्लिम पक्षों ने नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का जरूरी हिस्सा न बताने वाले इस्माइल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की थी. इससे पहले मुस्लिम पक्षकारों ने फैसले में दी गई व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए मामले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजे जाने की मांग की थी.

Trending news