SC ने दिया ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल का आदेश, क्या दिल्लीवालों की दिवाली हो पाएगी 'GREEN'!
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SC ने दिया ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल का आदेश, क्या दिल्लीवालों की दिवाली हो पाएगी 'GREEN'!

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही आदेश जारी किया है कि इस बार दिवाली में ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल हो, लेकिन ऐसा संभव होता नहीं दिख रहा है.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: दिवाली से पहले खराब होती दिल्ली की आवो-हवा को लेकर दिल्ली वालों के दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने भले ही आदेश जारी कर दिवाली पर ग्रीन पटाखों के उपयोग करने का आदेश दिया है, लेकिन इस आदेश का पालन कराने वाली नियामक संस्था 'पेसो' के पास जरुरी संसाधनों के अभाव के कारण फिलहाल ऐसा संभव होता नहीं दिख रहा है.

 इस संबंध डाली गई याचिका की परैवी कर रहे वकील गोपाल शंकरनारायणन का कहना है कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन क्रैकर्स के प्रयोग का आदेश दिया हो. लेकिन इस आदेश का पालन कैसे हो, इसके लिए पेट्रोलियम और एक्सप्लोसिव सेफ्टि संस्थान (पेसो) के पास प्रर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं है. उन्होंने कहा कि इसके लिए आदर्श स्थिति ये हो सकती है कि पटाखों को बनाने वाले नए पटाखों का निर्माण करें और इसे पेसो 'ग्रीन पटाखों' के रूप में मान्यता दें, लेकिन इतनी जल्दी ये सब संभव होता दिख नहीं रहा है.

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आपको बता दें कि देश में पेट्रोलियम और एक्सप्लोसिव सेफ्टि संस्थान (पेसो) पटाखों का निर्माण और उसकी खरीद बिक्री के संबंध से संबंधित नियमों के पालन की देख रेख करता है. इसके साथ ही पटाखों में प्रयोग होने वाले केमिकल्स के आधार पर उसका वर्गीकरण भी करता है.
  
देश में जगह जगह अवैध तरीके से पटाखे बनाने का गोरखधंधा चल रहा है. देश में लागू सुरक्षा और प्रदूषण के नियमों का पालन सही ढ़ंग से नहीं हो पाता है. जिस वजह से निमार्णकर्ता बड़े पैमाने पर आसानी से और बिना किसी डर के देश में लागू किए गए नियमों का उल्लंघन करते हैं. देश की शीर्ष अदालत में 2001 से पटाखों के प्रयोग से संबंधित कई मामलें चल रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर पटाखों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण से संबंधित रहें हैं.
 
वैसे जुलाई 2005 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित कर पटाखों से होने वाले प्रदूषण के स्तर को कम करने से संबंधित आदेश दिया था. इस महत्वपूर्ण आदेश में कोर्ट ने पटाखों का वर्गीकरण उसमें प्रयोग होने वाले केमिकल्स के आधार पर किया था. लेकिन 2005 के बाद के पटाखों की क्षमता बढ़ती गई और वायु की गुणवत्ता खराब होती गई. 

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मार्च 2008 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पेसो ने पटाखों का ध्वनि के आधार पर 4 भागों में वर्गीकरण किया था, जिसमें एटम बम, चाइनीज, मैरुनस और गारलैंड शामिल हैं. 2008 में ही एक्सपलोसिव रूल भी देश में लागू किया गया था, जिसमें पटाखों की क्लास, केटेगरी को शामिल किया गया था. लेकिन नियमों की कड़ाई से पालन न होने के कारण इन नियमों का लगातार उल्लंघन हो रहा है.
 
आज भी पेसो और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास वायु की गुणवत्ता पर पटाखों के जलाने से होने वाले नुकसान को जानने की कोई सुविधा नहीं है. अब जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री खुद राजधानी को गैस-चैंबर कह चुके हैं. लेकिन, अब-तक ऐसी कोई भी रिसर्च राजधानी दिल्ली में नहीं हुई है, जिससे यह पता चल सके की दिवाली के समय पटाखें जलाने से आम लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है.  
 
देश की राजधानी दिल्ली में लगातार बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए केंद्र सरकार भी वायु प्रदूषण के नियमों का उल्लंघन करने वालों पर सख्त कानूनी कार्रवाई करने की बात भले कर रही हो, लेकिन नियमों और कानून को लागू करना काफी मुश्किल दिख रहा है.

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