अक्सर जीवन में हम छोटी मोटी परेशानियों से घबरा जाते हैं और हाथ खड़े कर लेते हैं, लेकिन दुनिया बड़े जीवट वाले ऐसे लोग भी हैं जो हौसले की मिसाल बने हुए हैं. हरियाणा के फतेहाबाद के गांव बनगांव के मदनलाल जिनके साथ जन्म से ही कुदरत ने उनके साथ अजीब मजाक किया है कि उसके दोनों बाजू ही नहीं लगाई जिसके अभाव में जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई वैसे वैसे उसकी दिखते भी बढ़ती गई लेकिन एक दिन उसने कुछ नया कर दिखाने की ठान ली और उसी दिन से मदनलाल पूरे क्षेत्र के लिए एक उदाहरण बना हुआ है.
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नई दिल्ली: अक्सर जीवन में हम छोटी मोटी परेशानियों से घबरा जाते हैं और हाथ खड़े कर लेते हैं, लेकिन दुनिया बड़े जीवट वाले ऐसे लोग भी हैं जो हौसले की मिसाल बने हुए हैं. हरियाणा के फतेहाबाद के गांव बनगांव के मदनलाल जिनके साथ जन्म से ही कुदरत ने उनके साथ अजीब मजाक किया है कि उसके दोनों बाजू ही नहीं लगाई जिसके अभाव में जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई वैसे वैसे उसकी दिखते भी बढ़ती गई लेकिन एक दिन उसने कुछ नया कर दिखाने की ठान ली और उसी दिन से मदनलाल पूरे क्षेत्र के लिए एक उदाहरण बना हुआ है.
जन्म से ही मदनलाल के दोनों हाथ नहीं हैं लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. यहां तक कि उन्होंने हाथ के बजाए पैरों से आसानी से हो जाने वाला कोई काम ना चुनने की जगह दर्जी का काम चुना और अपने पैरों को अपने हाथों की तरह इस्तेमाल किया.
उनके इलाके में उन्हें सिलाई के लिए जाना जाता है. वे बताते हैं कि शुरू में तो लोग उन्हें शक की निगाहों से देखते रहे लेकिन बाद में उन्हें यकीन हो गया कि मदनलाल एक अच्छे दर्ज़ी हैं.
मदनलाल ने न सिर्फ अपने कामकाजी जीवन बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए भी अपने पैरों को ही अपना हाथ बना लिया. वे खाने तक के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं. वहीं वे अपने पैरों से सिगरेट भी पी लेते हैं.
इसके अलावा अपने परिवार के सदस्यों के कामों में मदद करना. इतना ही नहीं समाज में जागृति लाने के लिए कि विकलांगता अभिशाप नहीं है जहां शहरों में गांव में जाकर स्कूलों-कॉलेजों व अन्य शैक्षणिक स्थानों पर जागरुकता शिविर लगाता है जिसमें यह सारे काम स्टेज पर कर के दिखाता है.
दूसरे के लिए उदाहरण बने मदनलाल का कहना है कि मन की विकलांगता ना हो तो शारीरिक विकलांगता कोई मायने नहीं रखती. इसलिए वह अपने गांव के साथ-साथ पूरे जिला फतेहाबाद के लिए अशक्त होने के बावजूद कितने काम करके दिखाता है.
एक साधारण व्यक्ति जिसकी दोनों बाजू होते हैं वह भी इतना कामकाज नहीं कर सकते जितना मदनलाल करता है. इस कारण मैं अपने परिवार पर बोझ नहीं हूं बल्कि दूसरों का बोझ भी अपने कंधो पर उठाता हूं.