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नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने नियमनों का पालन किए बिना इमारतों के निर्माण की अनुमति देने के लिए दिल्ली के नगर निगमों को कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही के लिए फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि नेपाल की तरह का भूकंप आने पर यहां लाखों की संख्या में लोग हताहत हो सकते हैं।
न्यायमूर्ति बदर र्दुज अहमद और न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब नगर निकाय ने उससे कहा कि दिल्ली में तकरीबन 80 फीसदी इमारतों का निर्माण ढांचागत स्थिरता समेत विभिन्न नियमनों का पालन किए बिना किया गया है। अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि 80 फीसदी इमारतें बिना नियमन के बनाई गई हैं, अगर नेपाल की तरह का भूकंप यहां आता है तो मरने वालों की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाखों में होगी।
उसने दिल्ली सरकार और नगर निगमों को नोटिस जारी किया और एक जनहित याचिका पर 20 मई तक उनसे जवाब मांगा। अदालत ने पूछा है कि अगर अधिक तीव्रता का भूकंप यहां आता है तो राष्ट्रीय राजधानी की इमारतें कितनी सुरक्षित हैं। अदालत ने नगर निकायों को 10 दिनों में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। इसमें इस बात का संकेत देने के लिये कहा गया है कि क्या दिल्ली में इमारतों की ढांचागत सुरक्षा के संबंध में नीति को इस बात को ध्यान में रखकर लागू किया जा रहा है कि दिल्ली सीस्मिक जोन चार में पड़ता है।
एसजेड चार को काफी क्षति होने का खतरा वाला क्षेत्र माना जाता है। इसमें भूकंप के दूसरे सर्वोच्च स्तर की अपेक्षा की जाती है। नगर निकायों को निर्देश दिया गया है कि वे अपनी रिपोर्ट में इस बात का संकेत दें कि क्या शहर में इमारतें ढांचागत सुरक्षा मानदंडों का पालन कर रही हैं, जो एसजेड चार के लिए राष्ट्रीय भवन कोड :एनबीसी: के लिए निर्धारित है।
अदालत ने याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि राष्ट्रीय राजधानी के करोल बाग जैसे इलाकों में ज्यादातर इमारतों का निर्माण मानदंडों का उल्लंघन करके किया गया है। उसने कहा कि जहां नियमन सिर्फ तीन मंजिला इमारत का प्रावधान करते हैं वहीं करोल बाग में आम तौर पर छह मंजिला इमारते हैं। याचिका में यह भी पूछा गया कि मुद्दे से निपटने के लिए निगम के पास किस तरह की कार्रवाई योजना है।