नोटबंदी : संसद में गतिरोध कायम, मनमोहन ने प्रबंधन की विफलता बताया
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नोटबंदी : संसद में गतिरोध कायम, मनमोहन ने प्रबंधन की विफलता बताया

बड़े नोटों को अमान्य करने के मोदी सरकार के निर्णय के खिलाफ विपक्ष के तीखे तेवरों के कारण संसद में गुरुवार को भी गतिरोध कायम रहा। हालांकि राज्यसभा में इस मुद्दे पर कुछ समय के लिए चर्चा बहाल हुई जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरकार पर विपक्ष के हमले की अगुवाई करते हुए इस कदम को प्रबंधन की विशाल विफलता करार दिया और कहा कि इससे जीडीपी विकास में कम से कम 2 प्रतिशत की कमी आएगी। मनमोहन ने नोटबंदी को संगठित एवं कानूनी लूटखसोट का मामला भी बताया।

नोटबंदी : संसद में गतिरोध कायम, मनमोहन ने प्रबंधन की विफलता बताया

नई दिल्ली : बड़े नोटों को अमान्य करने के मोदी सरकार के निर्णय के खिलाफ विपक्ष के तीखे तेवरों के कारण संसद में गुरुवार को भी गतिरोध कायम रहा। हालांकि राज्यसभा में इस मुद्दे पर कुछ समय के लिए चर्चा बहाल हुई जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरकार पर विपक्ष के हमले की अगुवाई करते हुए इस कदम को प्रबंधन की विशाल विफलता करार दिया और कहा कि इससे जीडीपी विकास में कम से कम 2 प्रतिशत की कमी आएगी। मनमोहन ने नोटबंदी को संगठित एवं कानूनी लूटखसोट का मामला भी बताया।

विपक्ष के हंगामे तथा कांग्रेस, तृणमूल आदि दलों के सदस्यों के बार-बार आसन के समक्ष आकर हंगामा करने के कारण लोकसभा की कार्यवाही एक बार और राज्यसभा की कार्यवाही दो बार के स्थगन के बाद पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गयी। दोनों ही सदनों में आज भी प्रश्नकाल और शून्यकाल नहीं चल पाया। राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आज सदन में आने के कारण विपक्ष एवं सत्ता पक्ष के बीच यह सहमति बनी कि प्रश्नकाल के बजाय नोटबंदी के मुद्दे पर 16 नवंबर को अधूरी रह गयी चर्चा को आगे बढ़ाया जाए। सदन के नेता अरुण जेटली ने कहा कि प्रधानमंत्री भी चर्चा में भागीदारी करेंगे।

उल्लेखनीय है कि पिछले पांच दिन से विपक्ष प्रधानमंत्री की उपस्थिति में चर्चा कराने की मांग कर रहा है। मोदी आज प्रश्नकाल के दौरान सदन में आए थे क्योंकि गुरुवार को उनके तहत आने वाले मंत्रालयों से संबंधित मौखिक प्रश्न पूछे जाते हैं।
सदन में चर्चा दोपहर 12.00 बजे बहाल हुई और एक बजे तक चली। इसके बाद सदन में भोजनावकाश हो गया। बैठक फिर शुरू होने पर सदन में प्रधानमंत्री के नहीं होने के कारण विपक्षी दलों ने उन्हें बुलाने की मांग फिर शुरू कर दी। इस पर उपसभापति पीजे कुरियन ने कहा कि सदन के नेता यह आश्वासन दे चुके हैं कि प्रधानमंत्री चर्चा में भागीदारी करेंगे। जेटली ने कहा कि उनकी यह आशंका सच साबित हो गयी है कि विपक्ष चर्चा नहीं चाहता क्योंकि वे चर्चा से बचने के लिए बहाने ढूंढ रहे हैं।

सदन में हंगामा कायम रहने पर कुरियन ने अपराह्न 3 बजकर 10 मिनट पर बैठक को पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिया। इससे पहले चर्चा में भाग लेते हुए पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को लेकर प्रधानमंत्री को आड़े हाथ लिया और कहा कि जिस तरह से इसे लागू किया गया है, वह प्रबंधन की विशाल असफलता है और यह संगठित एवं कानूनी लूटखसोट का मामला है। सदन में मोदी की मौजूदगी में उन्होंने कहा कि इस फैसले से सकल घरेलू उत्पाद में दो फीसदी की कमी आएगी जबकि इसे नजरअंदाज किया जा रहा है।

उन्होंने उम्मीद जताई कि प्रधानमंत्री एक व्यावहारिक, रचनात्मक एवं तथ्यपरक समाधान निकालेंगे जिससे आम आदमी को नोटबंदी के फैसले से उत्पन्न हालात के चलते हो रही परेशानी से राहत मिल सके। उन्होंने कहा कि जो परिस्थितियां हैं उनमें आम लोग बेहद निराश हैं। उन्होंने कहा मेरी अपनी राय है कि राष्ट्रीय आय, जो इस देश का सकल घरेलू उत्पाद है, इस फैसले के कारण दो फीसदी कम हो सकती है। इसे नजरअंदाज किया जा रहा है। इसलिए मुभे लगता है कि प्रधानमंत्री को कोई रचनात्मक प्रस्ताव लाना चाहिए कि हम योजना का कार्यान्वयन कैसे कर सकें और साथ ही आम आदमी के मन में घर कर रहे अविश्वास को कैसे दूर कर सकें। 

चर्चा में भाग लेते हुए समाजवादी पार्टी के नरेश अग्रवाल ने कहा कि नोटबंदी का फैसला उत्तर प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर लिया गया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार मीडिया पर दबाव बना कर उनके जरिये यह कहलवा रही है कि नोटबंदी के फैसले से देशवासी खुश हैं। अग्रवाल ने कहा कि एक संयुक्त संसदीय समिति का गठन कर इस बात की जांच की जानी चाहिए कि भाजपा की कुछ इकाइयों के अध्यक्षों को नया नोट पहले कैसे मिल गया।

चर्चा में हिस्सा लेते हुए तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी की घोषणा करने के फैसले के दो घंटे बाद ही उनकी पार्टी की प्रमुख ममता बनर्जी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह काले धन और भ्रष्टाचार को समाप्त करने के पक्ष में हैं, किन्तु सरकार के इस फैसले से गरीबों, किसानों, मजदूरों को होने वाली भारी परेशानी के कारण वह इस फैसले की घोर निंदा करती हैं।

उन्होंने प्रधानमंत्री से सवाल किया कि विदेशों से काले धन को वापस लाने का जो वादा किया गया था, उसका क्या हुआ। उन्होंने सरकार से जानना चाहा कि वह चुनाव सुधारों की दिशा में क्या कदम उठाने जा रही है क्योंकि राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में गुप्त धन ही मिलता है।

उधर, लोकसभा में सुबह सदन की कार्यवाही शुरू होने पर विपक्षी सदस्य कार्यस्थगन की अपनी मांग के समर्थन में शोर शराबा करने लगे। इस बीच समाजवादी पार्टी के सदस्य अक्षय यादव ने कुछ कागज फाड़कर आसन से लगे सभापटल की ओर उछाल दिया। अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने बाद में सपा सदस्य अक्षय यादव को भविष्य में ऐसे आचरण के विरूद्ध चेतावनी दी।

हंगामे के बीच ही कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वाम दल के सदस्य अध्यक्ष के आसन के समीप आकर नारेबाजी करने लगे। वे सदन में कार्य स्थगित करके मतविभाजन वाले नियम 56 के तहत तत्काल चर्चा कराने की मांग दोहरा रहे थे। अध्यक्ष ने कहा कि कार्यस्थगन के बारे में प्रश्नकाल के बाद बात करेंगे। अभी प्रश्नकाल चलने दें। 

सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि यह महत्वपूर्ण विषय है, इस बारे में कार्यस्थगन का नोटिस स्वीकार किया जाए। प्रश्नकाल के दौरान अध्यक्ष ने प्रश्नकाल की कार्यवाही बढ़ाने का प्रयास किया। इसी दौरान सपा सांसद अक्षय यादव ने कुछ कागज फाड़कर पटल की ओर उछाल दिये। इसके बाद अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सदन की कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दी।

सदन की बैठक पुन: शुरू होने पर भी विपक्षी सदस्यों का हंगामा जारी रहा। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और वामदलों के सदस्य आसन के आगे आकर नारेबाजी करने लगे। अध्यक्ष ने शोर शराबे के बीच ही आवश्यक दस्तावेज सदन के पटल पर रखवाए।
अध्यक्ष ने सुदीप बंदोपाध्याय, के सुरेश, के एन रामचंद्रन, मोहम्मद सलीम, एन के प्रेमचंद्रन आदि के कार्यस्थगन के प्रस्ताव को भी नामंजूर कर दिया और कहा कि इसे अन्य मौकों पर लिया जा सकता है। हंगामा थमता नहीं देख उन्होंने 12 बजकर 5 मिनट पर सदन की बैठक पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी।

उल्लेखनीय है कि नोटबंदी के फैसले पर विपक्ष के हंगामे के कारण लोकसभा शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन से बाधित है जबकि राज्यसभा में सत्र के पहले दिन चर्चा होने के बाद विपक्ष द्वारा यह मांग किये जाने पर गतिरोध बन गया कि चर्चा के दौरान सदन में प्रधानमंत्री उपस्थित रहें।

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