डॉ. राजेंद्र प्रसाद जयंती: ऐसे सपूत जिन्होंने देश के लिए छोड़ दिया बहन का अंतिम संस्कार
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डॉ. राजेंद्र प्रसाद जयंती: ऐसे सपूत जिन्होंने देश के लिए छोड़ दिया बहन का अंतिम संस्कार

राजेंद्र प्रसाद जब राष्ट्रपति के पद पर थे तो उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों में प्रधानमंत्री या कांग्रेस को दखलअंदाजी का मौका नहीं दिया. 

राष्ट्रपति के रूप में राजेंद्र प्रसाद का कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक का रहा.(फाइल फोटो)

नई दिल्ली: देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा छपरा (‍बिहार) के जिला स्कूल गए से हुई थीं. मात्र 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान से पास की और फिर कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेकर लॉ के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की. वे हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली  एवं फारसी भाषा से पूरी तरह परिचित थे. राजेंद्र प्रसाद का विवाह 13 वर्ष की उम्र में राजवंशीदेवी से हो गया था. राजेंद्र प्रसाद ने अपना करियर वकील के रूप में शुरू किया. राजेंद्र प्रसाद ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था.

उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई. राष्ट्रपति के रूप में राजेंद्र प्रसाद का कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक का रहा. राष्ट्रपति होने के अलावा उन्होंने केंद्रीय मंत्री के रूप में भी कुछ समय के लिए काम किया था. पूरे देश में लोकप्रिय होने के नाते उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहा जाता था. राजेंद्र प्रसाद जब राष्ट्रपति के पद पर थे तो उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों में प्रधानमंत्री या कांग्रेस को दखलअंदाजी का मौका नहीं दिया.

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वे अपना काम आजाद और निष्पक्ष भाव से करते थे. हिदूं अधिनियम पारित करते समय उन्होंने काफी कड़ा रुख अपनाया था. राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने कई ऐसे काम किए जो बाद में मिसाल की तौर पर माने जाते रहे हैं. उनके बारे में एक किस्सा बहुत ही प्रचलित है कि भारतीय संविधान के लागू होने से एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को उनकी बहन भगवती देवी का निधन हो गया, लेकिन वे बहन के दाह संस्कार में शामिल होने के बजाए भारतीय गणराज्य के स्थापना समारोह में शामिल हुए.

राजेंद्र प्रसाद 12 साल तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते रहे. और 1962 में अपने छुट्टी की घोषणा की. छुट्टी के बाद ही उनकी पत्नी राजवंशी देवी का निधन हो गया. मौत के एक महीने पहले अपने पति को संबोधित पत्र में राजवंशी देवी ने लिखा था- 'मुझे लगता है मेरा अंत निकट है, कुछ करने की शक्ति का अंत, संपूर्ण अस्तित्व का अंत. 'राम! राम!!  राजेंद्र प्रसाद ने अपने जीवन के आखिरी समय में पटना के समीप सदाकत आश्रम को चुना. 28 फरवरी 1963 में उनके जीवन की कहानी हमेशा के लिए समाप्त हो गई. 

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