डॉ. कहते हैं कि देर शाम तक दफ्तर में काम करने से उड़ सकती है आपकी नींद, पूछो कैसे...
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डॉ. कहते हैं कि देर शाम तक दफ्तर में काम करने से उड़ सकती है आपकी नींद, पूछो कैसे...

देर से घर आना और सुबह जल्‍द दफ्तर जाने की आदत के चलते ज्‍यादातर लोगों की स्‍लीप रिदम पूरी नहीं होती है, जिसके चलते नींद न आने से शुरू हुई समस्‍या चिड़चिड़ाहट, ब्‍लड प्रेशन, हाइपरटेंशन के दौर से गुजरती हुई हृदय की जटिल बीमारियों तक पहुंच जाती है.

दफ्तर से देर शाम घर पहुंचने की आदत आपकी स्‍लीप रिदम को प्रभावित करती है. (फाइल फोटो)

नई दिल्‍ली: जिंदगी में बढ़ते काम के दबाव का असर अब हमारी सेहत पर दिखने लगा है. काम के दबाव से जूझ रहे ज्‍यादातर लोगों में आजकल नींद न आने की समस्‍या बेहद कॉमन हो गई है. नींद न आने की यह समस्‍या उन लोगों के लिए खासतौर पर जटिल हो जाती है, जो लोग देर शाम तक ऑफिस में काम करते हैं. जी हां, डॉक्‍टर्स का कहना है कि देर शाम तक काम करने से ज्‍यादातर लोगों की सामाजिक उपलब्‍धता खत्‍म हो गई है. जिसका नकारात्‍मक असर उनकी सेहत में दिखना शुरू हो गया है.

  1. दवाई से बेहतर है बच्‍चों के साथ कुछ समय बिताना
  2. सामाजिक उपलब्‍धता का पड़ता है सेहत पर असर
  3. 6 से 8 घंटे की नींद के अपनी तरह होती है व्‍याख्‍या

इंद्रप्रस्‍थ अपोलो हॉस्पिटल के डॉ. तरुण कुमार साहनी के अनुसार, दफ्तर में देर शाम तक काम करने वाले लोगों में बीमारी का पहला लक्षण नींद न आने की समस्‍या से शुरू होता है. समय के साथ यह समस्‍या चिड़चिड़ाहट, ब्‍लड प्रेशन, हाइपरटेंशन के दौर से गुजरती हुई हृदय की जटिल बीमारियों तक पहुंच जाती है. कई बार, लोगों की लापरवाही के चलते हार्ट अटैक जैसी गंभीर स्थिति भी उत्‍पन्‍न हो जाती है. लिहाजा, स्‍वस्‍थ्‍य रहने के लिए आपको न केवल दफ्तर से समय पर घर जाने की आदत डालनी होगी, बल्कि सामाजिक उपलब्‍धता को बढ़ाना होगा.

स्‍लीप रिदम होती है प्रभावित
डॉ. तरुण कुमार साहनी के अनुसार, नींद की समस्‍या से परेशान मरीजों से हम एक सवाल जरूर पूछते हैं कि वह दफ्तर से घर कितने बजे पहुंचते हैं. ज्‍यादातर, मरीजों का जवाब होता है कि वह रात में आठ से नौ बजे के बीच घर पहुंचते हैं. ऐसे में, उस शख्‍स को नहाने, खाने और टीवी देखने के बाद बेड तक पहुंचने में रात के 11 से 12 बज जाते हैं. उसे सुबह फिर जल्‍दी ऑफिस जाना है. ऐसे में शरीर को जितनी नींद की जरूरत है, वह उसे नहीं मिल पाती है. लगातार, इस प्रक्रिया के दोहराए जाने पर स्‍लीप रिदम बिगड़ जाता है और आप धीरे-धीरे बीमारियों की तरफ बढ़ना शुरू कर देते हैं.

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6 से 8 घंटे की नींद के सही मायने
डाक्‍टर्स के अनुसार, ज्‍यादातर लोग छह से आठ घंटे की नींद की सलाह का अपनी तरह से मतलब निकालना शुरू देते हैं. इस सलाह को लेकर ज्‍यादातर लोगों की व्‍याख्‍या है कि बेड पर जाने से लेकर बेड से उठने के बीच का समय छह से आठ घंटा होना चाहिए. जबकि ऐसा नहीं है. छह से आठ घंटे की नींद का मतलब रेम (REM) और नॉन रेम (NREM) स्‍लीप की पूरी प्रक्रिया इस समायावधि में पूरी होनी चाहिए. यानी, साधारण भाषा में कहें तो कच्‍ची नींद और गहरी नींद को मिलाकर आपकी कुल नींद करीब छह से आठ घंटे होनी चाहिए.

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सामाजिक उपलब्‍धता का सेहत पर असर
डाक्‍टर्स के अनुसार, स्‍वस्‍थ्‍य शरीर में मनोविज्ञान की सबसे अहम भूमिका होती है. देर तक दफ्तर में काम करने से आपकी सा‍माजिक उपलब्‍धता लगभग खत्‍म सी होने लगती है. जिसके चलते, 24 घंटे आप एक तरह के माहौल और एक जैसी बातों के इर्द-गिर्द रहते हैं. आप ज्‍यादातर समय अपने काम और समस्‍याओं को सोचने में खर्च कर देते हैं. नतीजतन, आप धीरे-धीरे तनाव की तरफ बढ़ने लगते हैं. इसी तनाव की वजह से आपकी नींद आपसे दूर जाने लगती है. वहीं, अलग-अलग तरीके के लोगों से मिलने पर आपका ध्‍यान बंटता है जो आपके तनाव को कम करने में मदद करता है.

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दवाई से बेहतर है बच्‍चों के साथ समय बिताना
डॉक्‍टर्स के अनुसार, यदि आपके घर में छोटे बच्‍चे हैं तो आपकी नींद के लिए उससे बेहतर कोई दवाई नहीं हो सकती है. उन्‍होंने बताया कि नींद का सीधा संबंध मनोविज्ञान से होता है. इस बात में कोई दोराय नहीं है कि हर आदमी अलग-अलग तनाव से गुजर रहा है. जब दो हमउम्र बात आपस में बात करते हैं, तो उस तनाव की परछाई कहीं न कहीं नजर आ जाती है. वहीं, जब आप बच्‍चों के साथ बात करते हैं तो वे न ही आपके तनाव को जानते हैं और न हीं उनके पास कोई तनाव है. कोशिश करिए कि थोड़ी देर के लिए बच्‍चों के साथ आप भी बच्‍चे बन जाइएं. उनके साथ कुछ समय बच्‍चे बन कर खेलिए. कुछ दिनों के बाद आपको महसूस होगा कि अब आपको पहले से कहीं अच्‍छी नींद आने लगी है.

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