लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने पर चुनाव आयोग सहमत
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लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने पर चुनाव आयोग सहमत

चुनाव आयोग ने लोकसभा और राज्य में विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के सरकार के विचार का समर्थन किया है, लेकिन यह भी साफ कर दिया है कि इसपर काफी खर्च आएगा और कुछ राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाने और कुछ का घटाने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा।

लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने पर चुनाव आयोग सहमत

नई दिल्ली : चुनाव आयोग ने लोकसभा और राज्य में विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के सरकार के विचार का समर्थन किया है, लेकिन यह भी साफ कर दिया है कि इसपर काफी खर्च आएगा और कुछ राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाने और कुछ का घटाने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा।

विधि मंत्रालय ने आयोग से कहा था कि वह संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट पर अपने विचार दे, जिसने एक साथ लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कराने की वकालत की थी।

मई में विधि मंत्रालय को अपने जवाब में आयोग ने कहा कि वह प्रस्ताव का समर्थन करती है लेकिन इसपर नौ हजार करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आएगा। एक संसदीय समिति के समक्ष गवाही देते हुए आयोग ने इसी तरह की ‘कठिनाई’ का इजहार किया था। संसदीय समिति ने ‘लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने पर पिछले साल दिसम्बर में अपनी व्यवहार्यता रिपोर्ट’ सौंपी थी।

आयोग ने सरकार के साथ-साथ समिति से कहा है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और वोटर वेरिफायेबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) मशीन खरीदने की आवश्यकता होगी।

चुनाव आयोग के हवाले से संसद की स्थायी समिति ने कहा था, ‘एक साथ चुनाव कराने के लिए आयोग का अनुमान है कि ईवीएम और वीवीपीएटी की खरीद के लिए 9284.15 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी।’ आयोग ने कहा था, ‘मशीन को हर 15 साल पर बदलना होगा और उसपर फिर से खर्च आएगा। साथ ही इन मशीनों की भंडारण लागत बढ़ जाएगी।’’ 

रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने मुद्दे का परीक्षण करने के लिए मंत्रियों का एक समूह (जीओएम) गठित कर दिया है। जीओएम का गठन नये ईवीएम खरीदने के चुनाव आयोग के प्रस्ताव के साथ-साथ एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव कराने की व्यवहार्यता का परीक्षण करने के लिये किया गया है ताकि लोकतांत्रिक कवायद पर आने वाली लागत को कम किया जा सके। 

चुनाव कानून के अनुसार, सदन का कार्यकाल खत्म होने से छह महीने पहले चुनाव कराए जा सकते हैं लेकिन सदन का कार्यकाल आपातकाल की घोषणा के दौरान ही बढ़ाया जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 19 मार्च को भाजपा पदाधिकारियों की बैठक के दौरान कहा था कि राज्य चुनाव के साथ स्थानीय स्तर के चुनाव वस्तुत: प्रत्येक वर्ष चलते हैं और ये अक्सर कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में बाधा डालते हैं। वह पांच साल में एकबार एकसाथ चुनाव कराने को उत्सुक हैं।

सरकार का मानना है कि एक बार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने से चुनाव का खर्च बढ़ जाएगा लेकिन इस कवायद से ‘चुनाव बंदोबस्त’ यथा केंद्रीय बलों और मतदान कर्मियों की तैनाती पर आने वाला खर्च घट सकता है।

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