1 फरवरी को पेश किए जाने वाले बजट को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनका बजट को लेकर एक ही एजेंडा है - विकास, विकास और सिर्फ विकास.
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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2018 का पहला इंटरव्यू Zee News को दिया. ज़ी न्यूज के एडिटर सुधीर चौधरी ने प्रधानमंत्री मोदी का साक्षात्कार लिया. प्रधानमंत्री ने विदेश नीति सहित कई मुद्दों पर अपनी राय रखी. जीएसटी, नोटबंदी, बेरोजगारी, वन नेशन, वन इलेक्शन जैसे मुद्दों पर पीएम मोदी खुलकर बोले. एक फरवरी को पेश किए जाने वाले बजट को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनका बजट को लेकर एक ही एजेंडा है - विकास, विकास और सिर्फ विकास.
सवाल: क्या विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ-साथ होने चाहिए?
पीएम मोदी: इस सवाल को उठाने के लिए ज़ी न्यूज को धन्यवाद देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश में हमेशा चुनाव का माहौल रहता है. चुनाव आने पर 'फेडरल स्ट्रक्चर' को चोट पहुंचती है. राजनीतिक दलों के बीच तू-तू, मैं-मैं होती है. साल में एक बार उत्सव की तरह चुनाव भी एक निश्चित समय में होने चाहिए. सुरक्षाबलों के लाखों जवान अक्सर चुनाव में लगे रहते हैं. राज्यों के तमाम बड़े अफसरों को ऑब्जर्वर के रूप में दूसरे राज्यों में भेजा जाता है. पोलिंग बूथ पर बड़ी तादाद में कार्यबल जुटे रहते हैं. काफी बड़ी रकम खर्च होती है. अब देश का वोटर समझदार है. वह लोकसभा और विधानसभा चुनाव में फर्क समझता है. इन दोनों चुनावों को साथ-साथ होना चाहिए. इसके एक महीने बाद स्थानीय चुनाव होने चाहिए. सब मिलकर ऐसा सोचेंगे तो यह संभव हो सकता है. एक बार चर्चा शुरू हो तो आगे की राह निकल आएगी.
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सवाल: आप क्या लक्ष्य लेकर दावोस जा रहे हैं?
पीएम मोदी: इस सवाल के जवाब में पीएम मोदी ने कहा कि दुनिया भलीभांति जानती है कि दावोस एक प्रकार से अर्थ जगत की एक बड़ी पंचायत बन गया है. अर्थ जगत के सभी बड़े लोग वहां इकट्ठे होते हैं. भावी आर्थिक स्थिति क्या रहेगी उस पर फोकस रहता है. कॉम्बिनेशन ऐसा है कि स्वयं अर्थ जगत के लोग होते हैं. एक प्रकार से सब विषयों के पॉलिसीमेकर्स होते हैं. जबसे पीएम बना हूं तब से मन था, लेकिन जा नहीं पा रहा था. इस बार एशियान मीटिंग हो रही है. 10 मुखियाओं की मीटिंग यहां हो रही है, पर पहले से भारत आकर्षण का केन्द्र है, अर्थ जगत का ध्यान हम पर है. एक तो भारत की जीडीपी तेज़ी से बढ़ रही है. दूसरे डेमोक्रेटिक वैल्यूज. इट’स यूनिक कॉम्बिनेशन. तो भारत के लिए अवसर है.
भारत बहुत बड़ा मार्केट तो है ही. एक बहुत बड़ा डेमोग्राफिक डिविडेंड वाला देश है. जब विश्व का आकर्षण का केन्द्र है तो स्वाभाविक है कि विश्व उससे सीधा संपर्क करना चाहता है. विश्व के इतने बड़े आर्थिक केन्द्र के मुखिया के मुंह से विश्व कुछ सुनना चाहता है. देशवासियों ने जो प्रोग्रेस की है, उनका उत्साह है, सिद्धियां हैं, उसे वर्ल्ड के सामने रखने मे मुझे गर्व होगा.
सवाल: इससे पहले नेता सिर्फ़ फोटो सेशन के लिए जाते थे, पर आपका स्टाइल अलग है, आप दोस्ती कर लेते हैं, अभी नेतन्याहू की विज़िट और आपकी दोस्ती की चर्चा हो रही है जो कि यूनिक स्टाइल ऑफ डिप्लोमेसी है, आप कैसे कनेक्ट करते हैं?
पीएम मोदी: कभी-कभी कुछ कमियां शक्ति में बदल जाती हैं. मेरा मूल स्वभाव रहा है अभाव को अवसर में बदलना. जब मैं पीएम बना तो लोग कहते थे कि इसको तो दुनिया का ज्ञान नहीं है. एक तरह से ये सही था कि मेरे पास कोई अनुभव नहीं था. पर ये एडवांटेज था – मेरे पास कोई बैगेज नहीं था. मैं कहता था कि भाई हम आम इंसान की तरह जिएंगे. अब ये स्टाइल दुनिया को पसंद आ गया है. कोशिश करता हूं कि देश का नुकसान न करूं.
सवाल: भारत में एफडीआई 36 बिलियन से 60 बिलियन हो गया है. 2014 से 2018 में क्या फ़र्क है भारत के स्टेटस में?
पीएम मोदी: 2014 के बाद से भारत दुनिया से डायरेक्ट कनेक्ट हो रहा है. सबसे बड़ी बात है इंडिया में 30 साल के बाद पूर्ण बहुमत वाली सरकार आई है. ये विश्व में बहुत बड़ा महत्व रखता है. ये पहले दिन से नज़र आता है. जबसे हमारी सरकार आई, भारत घर में अच्छा कर रहा है, इसलिए दुनिया स्वीकार कर रही है. गुड गवर्नेंस, ट्रांसपैरेंसी इत्यादि. जब दुनिया 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' में 142 से 100 रैंक पर जाना देखती है, तो ये उनके लिए बड़ी बात है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मैन्डेट सबसे महत्वपूर्ण है, मोदी नहीं. मेरा काम है 125 करोड़ भारतीयों की आवाज मानना.
जीएसटी और नोटबंदी कितने सफल रहे. जो टारगेट आपने चुना वो कितना पूरा हुआ?
यह पूछे जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अगर इन दोनों कामों को ही मेरी सरकार का काम मानेंगे तो हमारे साथ यह अन्याय है. हमारे चार साल के काम को देखें. इस देश में बैकों के राष्ट्रीयकरण के बाद भी 30-40% लोग बैंकिंग सिस्टम से बाहर हैं. हम उनको वापस लाए हैं. क्या ये उपलब्धि नहीं है? लड़कियों के स्कूल के लिए शौचालय, क्या ये कम नहीं है? 3.30 करोड़ लोगों के घर गैस पहुंचना क्या काम नहीं है. 90 पैसे में ग़रीब का इंश्योरेंस, क्या ये काम नहीं है. जहां तक जीएसटी का सवाल है, जब अटलजी की सरकार थी इसकी चर्चा शुरू हुई. यूपीए सरकार के समय इस मसले पर राज्यों की नहीं सुनी जाती थी – चाहे जो भी रीज़न रहा हो. मैं जब गुजरात का सीएम था तो बोलता था, पर नहीं सुनी जाती थी. एक देश, एक टैक्स की दिशा में हमने बहुत बड़ी सफलता पाई. कोई व्यवस्था बदलती है तो थोड़े एडजस्टमेंट करने होते हैं. जब लॉन्ग टर्म में देखा जाएगा तो इन्हें बहुत सफल माना जाएगा.