दरअसल 2014 में जब पीएम मोदी की सरकार ने सत्ता संभाली थी, उसी के तत्काल बाद इस तरह की स्थितियां उत्पन्न हुई थीं. उस वक्त चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा थे.
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नई दिल्ली: उत्तराखंड के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में प्रोन्नति संबंधी फाइल सरकार द्वारा वापस किए जाने के बाद कॉलेजियम दोबारा दो मई को इस पर विचार करने जा रही है. हालांकि विपक्षी कांग्रेस का कहना है कि दरअसल 2016 में उत्तराखंड में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के खिलाफ राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र के फैसले को जस्टिस जोसेफ ने खारिज कर दिया था. इस वजह से सरकार को उनके नाम पर आपत्ति है.
हालांकि यह पहली बार नहीं हुआ है कि एनडीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को किसी नाम पर पुनर्विचार के लिए कहा है. इसी सरकार में इससे पहले भी ऐसा मौका आया है जब फाइल को वापस सुप्रीम कोर्ट के पास पुनर्विचार के लिए भेज दिया गया. दरअसल 2014 में जब पीएम मोदी की सरकार ने सत्ता संभाली थी, उसी के तत्काल बाद इस तरह की स्थितियां उत्पन्न हुई थीं. उस वक्त चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा थे. उनके नेतृत्व में कॉलेजियम ने यूपीए सरकार में सॉलिसिटर जनरल रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त करने की सिफारिश की थी. सरकार ने उस वक्त भी कॉलेजियम से अपनी सिफारिश पर पुनर्विचार करने को कहा था. न्यायपालिका और कार्यपालिका के आमने-सामने आने की स्थिति के बीच सुब्रह्मण्यम ने बाद में खुद को इस पद की दौड़ से खुद ही अलग कर लिया था.
गोपाल सुब्रमण्यम
दरअसल गोपाल सुब्रमण्यम के मामले में सीबीआई और आईबी ने उनके खिलाफ प्रतिकूल रिपोर्ट दी थी. न्यायाधीश पद पर नियुक्ति की दौड़ से हटने के बाद सुब्रमण्यम ने नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए आरोप लगाया था कि उनकी नियुक्ति को खारिज करने के लिए सरकार ने उनके खिलाफ 'गंदगी' खोजने का सीबीआई को आदेश दिया था. सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में सुप्रीम कोर्ट की मदद करने वाले सुब्रमण्यम ने कहा था कि उनकी स्वतंत्रता और ईमानदारी की वजह से ही उन्हें निशाना बनाया गया.
जस्टिस केएम जोसेफ केस
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल की शुरुआत में उत्तराखंड के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ और सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा के सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नामों की सिफारिश की थी. तीन महीने बाद सरकार ने इंदु मल्होत्रा के नाम पर सहमति दे दी लेकिन जस्टिस जोसेफ की फाइल को लौटा दिया गया. सरकार ने 28 अप्रैल को जस्टिस जोसेफ की फाइल लौटाते हुए तीन प्रमुख वजहें बताईं: 1- सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व नहीं है. 2- सुप्रीम कोर्ट में केरल का पहले से ही पर्याप्त प्रतिनिधित्व है और जस्टिस जोसेफ केरल से आते हैं. 3- सरकार के मुताबिक यह विभिन्न हाई कोर्ट के अन्य वरिष्ठ, उपयुक्त और योग्य मुख्य न्यायाधीशों और वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ भी उचित और न्यायसंगत नहीं होगा क्योंकि वरिष्ठता की सूची में जस्टिस जोसेफ 42वें नंबर पर हैं.
विपक्ष का आरोप
कांग्रेस ने इस मसले पर केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि दरअसल 2016 में केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ जस्टिस जोसेफ ने निर्णय सुनाया था. उसी वजह से सरकार को उनके नाम पर आपत्ति है. दरअसल 2016 में उत्तराखंड में राजनीतिक गतिरोध उत्पन्न होने के कारण केंद्र ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था. उस वक्त सूबे में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार का शासन था. बाद में हाई कोर्ट में कांग्रेस ने केंद्र के निर्णय के खिलाफ अपील की. इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस जोसेफ ने राष्ट्रपति शासन को खारिज कर दिया और इस तरह फिर से हरीश रावत सरकार बहाल हो गई थी.