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नई दिल्ली : उच्चतर न्यायपालिका में नियुक्ति में विलंब को लेकर उच्चतम न्यायालय द्वारा सरकार की शुक्रवार को खिंचाई किए जाने के बीच केंद्र ने कहा कि वह नए न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए उत्सुक है वहीं ‘मेमोरेंडम आफ प्रोसीजर’ (एमओपी) में भी तेजी लाए जाने की जरूरत है जो पिछले दो महीनों से कॉलेजियम के सामने लंबित है।
एक सूत्र ने कहा कि सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति में तेजी लाने के लिए उत्सुक है और जैसा अदालत में स्पष्ट किया गया है कि उच्च न्यायालयों में 86 नई नियुक्तियां की गयी हैं, 121 अतिरिक्त न्यायाधीशों को स्थायी बनाया गया है, 14 मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की गयी है और चार मुख्य न्यायाधीशों का स्थानांतरण किया गया है।
सूत्र ने कहा कि 18 अतिरिक्त न्यायाधीशों को सेवा विस्तार दिया गया है और उच्चतम न्यायालय में भी चार न्यायाधीशों की नियुक्ति की गयी है। इसके अलावा उच्च न्यायालयों के 33 न्यायाधीशों का भी स्थानांतरण किया गया है। उन्होंने रेखांकित किया कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मार्गदर्शन से जुड़े दस्तावेज एमओपी को अंतिम रूप देने के लिए न्यायिक निर्देश भी है ताकि कॉलेजियम को और पारदर्शी तथा उद्देश्यपरक बनाया जा सके तथा विचार विमर्श का दायरा बढ़ सके।
मौजूदा प्रणाली के त्रुटिपूर्ण पाये जाने के कारण यह निर्देश दिया गया था।
उन्होंने कहा कि सरकार का रुख दो महीनों से उच्चतम न्यायालय में लंबित है। उसमें भी अब तेजी लाने की आवश्यकता है। उच्चतम न्यायालय तथा 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की कमी पर हालांकि जोर दिया जा रहा है लेकिन न्याय प्रणाली में रीढ़ की हड्डी माने जाने वाली अधीनस्थ अदालतों में स्थिति और भी खराब है। ताजा आंकड़ों के अनुसार अधीनस्थ अदालतों में 5,111 न्यायिक अधिकारियों की कमी है। 30 जून के आंकड़ों के अनुसार स्वीकृत पदों की कुल संख्या 21,303 थी जबकि 16,192 न्यायिक अधिकारी ही कार्यरत थे।
अधिकतर बड़े राज्यों में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति उच्च न्यायालयों द्वारा की जाती है। देश के 11 राज्यों में अधीनस्थ न्यायपालिका में भर्ती उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है जबकि 17 राज्यों में यह राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा की जाती है। देश के 24 उच्च न्यायालयों में करीब 450 न्यायाधीशों की कमी है। देश की विभिन्न अदालतों में करीब तीन करोड़ मामले लंबित हैं।