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नई दिल्ली : हरित क्रांति के दौर में पेश गेहूं और धान की प्रजातियां अधिक पानी और उर्वरक की स्थिति में ही अच्छी उपज दे पाती हैं और इनमें सूखा, बाढ़, नमक और गर्मी सहने की क्षमता नहीं है। सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी प्राप्त हुई है।
सूचना के अधिकार के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने बताया, ‘जलवायु परिवर्तन से भूमंडलीय औसत तापमान बढ़ रहा है जिससे सूखा, बाढ़, जमीन का खारापन आदि की समस्याएं पैदा हो रही हैं। इसके अतिरिक्त गेहूं के दाने भरते समय अधिक तापमान होने से उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।’
आईसीएआर के अनुसार, ‘हरित क्रांति वाली गेहूं और धान की प्रजातियां अधिक पानी और उर्वरक की स्थिति में ही अच्छी उपज दे पाती हैं और इनमें सूखा, बाढ़, नमक और गर्मी सहने की क्षमता नहीं है।’ गेंहू में सूखा सहने वाले जीन की पहचान के लिए पुरानी सूखा अवरोधी प्रजाति सी 306 तथा नयी हरित क्रांति की प्रजाति डब्ल्यूएल 711 का संकरण करके जीनोम के उन हिस्सों की पहचान कर ली गई है जिससे जड़ों में वृद्धि अच्छी होती है और कम पानी में पैदावार हो सकती है।
इस परिदृश्य में विशेषज्ञों द्वारा दूसरी हरित क्रांति की जरूरत रेखांकित की गई है। आरटीआई के तहत आईसीएआर से प्राप्त जानकारी के अनुसार, गेहूं का जीनोम बनाने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा उपलब्ध कराये गए 35 करोड़ रूपये की राशि में 2011 से 2015 के बीच एनआरसीपीबी ने 8.71 करोड़ रूपये खर्च किये जबकि 2011 से 2015 के दौरान पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने 18.33 करोड़ रूपये खर्च किये और इसी अवधि में यूडीएससी ने 7.51 करोड़ रूपये इस उद्देश्य के लिए खर्च किया।