परंपरागत रूप से गुजरात में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर होती है लेकिन हालिया दौर में कई ऐसे नए चेहरे सूबे के सियासी फलक पर उभरे हैं, जो इनके इन दोनों दलों के लिए परेशानियों का सबब बन सकते हैं.
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गुजरात विधानसभा के दिसंबर में होने जा रहे चुनाव इस बार कई मायनों में खास हैं. बीजेपी 15 वर्षों में पहली बार पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे के बिना उतरेगी. हालांकि प्रचार की कमान उन्हीं के हाथों में रहेगी. इसी लिहाज से पीएम नरेंद्र मोदी 30 दिनों में तीन बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं. उधर विपक्षी कांग्रेस ने भी अभी से कमर कस ली है. राहुल गांधी ने एक पखवाड़े में दो बार गुजरात का दौरा किया है. हालांकि परंपरागत रूप से गुजरात में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर होती है लेकिन हालिया दौर में कई ऐसे नए चेहरे सूबे के सियासी फलक पर उभरे हैं, जो इनके इन दोनों दलों के लिए परेशानियों का सबब बन सकते हैं. इसलिए इनके रुख पर सबकी निगाहें पर जमी हैं. ऐसे ही चेहरों पर एक नजर:
हार्दिक पटेल (24): पटेल यानी पाटीदार समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिलाने की मांग कर रहे हैं. दो साल पहले जब सूरत में इनकी एक रैली में पांच लाख लोग एकत्रित हो गए तो हार्दिक एकदम से राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गए. हार्दिक ने पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (PAAS) का गठन किया है. आरक्षण की मांग के लिए छह जुलाई, 2015 को विसनगर में पहली बार जनसभा को संबोधित किया. उसके बाद से लगातार समर्थक बढ़ते ही गए हैं. गुजरात में पटेल समुदाय पिछले दो दशकों से बीजेपी का समर्थक वर्ग रहा है. यह गुजरात की प्रभुत्व जाति रही है. पाटीदार आंदोलन के बाद पहली बार गुजरात में बीजेपी को इस समुदाय की नाराजगी का सामना चुनाव में करना पड़ सकता है.
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अल्पेश ठाकुर (40): ओबीसी नेता हैं. 2015 में जब पाटीदार आंदोलन ने सुर्खियां बटोरी तो अल्पेश ठाकुर का नाम भी चर्चा में आया. दरअसल पाटीदार आंदोलन की आरक्षण की मांग के विरोध में अल्पेश ठाकुर ने अपनी आवाज बुलंद की. आरक्षण के दायरे में पाटीदारों को लाने की मांग के मुखर विरोधी माने जाते हैं. पांच साल पहले गुजरात क्षत्रिय-ठाकुर सेना का गठन समुदाय में शराबबंदी को प्रोत्साहन देने के लिए किया था. इस संगठन के तकरीबन साढ़े छह लाख रजिस्टर्ड सदस्य हैं. हाल में ओएसएस (ओबीसी, एससी, एसटी) एकता मंच का गठन किया. उनका आकलन है कि राज्य की आबादी में 22-24 प्रतिशत ठाकुर समुदाय की हिस्सेदारी है. अन्य पिछड़ी जातियों को इस समूह में जोड़ने से आंकड़ा 70 प्रतिशत तक बैठता है.
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इनका मानना है कि यदि पाटीदारों को आरक्षण का लाभ मिला तो इससे पहले से ही इस दायरे में मौजूद ओबीसी जातियों को नुकसान होगा. लिहाजा पाटीदार आंदोलन की बरक्स आवाज माने जाते हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक पाटीदारों की नाराजगी का सामना कर रही बीजेपी इनको अपने पाले में लाने की इच्छुक है. लेकिन अल्पेश ठाकुर ने बीजेपी या कांग्रेस में से किसी से भी हाथ मिलाने से इनकार कर दिया है.
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जिग्नेस मेवानी (35): पिछले साल गुजरात के उना में गोरक्षा के नाम पर ऊंची जाति के लड़कों द्वारा दलितों की पिटाई का वीडियो वायरल होने के बाद उपजे दलित आंदोलन की आवाज बनकर उभरे. पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उना दलित अत्याचार लडात समिति के संयोजक हैं. इस समिति ने गुजरात के विभिन्न इलाकों में दलितों के विरोध-प्रदर्शन का नेतृत्व किया है. उना की घटना के बाद पीडि़तों के लिए न्याय की मांग करते हुए 20 हजार लोगों की रैली का आयोजन किया था.