स्कूलों में मिलने वाले ग्रेस मार्क्स पॉलिसी को खत्म करने की तैयारी में सरकार
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स्कूलों में मिलने वाले ग्रेस मार्क्स पॉलिसी को खत्म करने की तैयारी में सरकार

देशभर में छात्रों के बीच दाखिले के लिए बढ़ते तनाव को देखते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय राज्य बोर्डों द्वारा दिए जाने वाले ग्रेस मार्क्स को खत्म करने की योजना बना रहा है. अगर देश के विभिन्न शिक्षा बोर्ड ग्रेस मार्क की परंपरा खत्म करने को राजी हो जाते हैं तो अंडरग्रैजुएट कोर्सों में दाखिले के लिए कटऑफ में गिरावट आ सकती है. 

स्कूलों में मिलने वाले ग्रेस मार्क्स पॉलिसी को खत्म करने की तैयारी में सरकार

नई दिल्ली : देशभर में छात्रों के बीच दाखिले के लिए बढ़ते तनाव को देखते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय राज्य बोर्डों द्वारा दिए जाने वाले ग्रेस मार्क्स को खत्म करने की योजना बना रहा है. अगर देश के विभिन्न शिक्षा बोर्ड ग्रेस मार्क की परंपरा खत्म करने को राजी हो जाते हैं तो अंडरग्रैजुएट कोर्सों में दाखिले के लिए कटऑफ में गिरावट आ सकती है. 

एचआरडी मंत्रालय देशभर के राज्य शिक्षा बोर्ड और सीबीएसई से इस संबंध में बैठक कर चर्चा करेगी. यदि विभिन्न शिक्षा बोर्ड को ये सुझाव पसंद आता है तो दिल्ली विश्वविद्यालय समेत अन्य विश्वविद्यालयों की सौ फीसदी कटऑफ पर विराम लग जाएगा. मंत्रालय इस मामले में पिछले सिंतबर में सीबीएसई समेत विभिन्न शिक्षा बोर्ड से उनकी राय मांग रहा है. 

क्या है मॉडरेशन मार्क्स या ग्रेस मार्क्स?
देश के कुछ शिक्षा बोर्डों के छात्रों को उन विषयों में बढ़ाकर मार्क्स दिए जाते हैं जिसके बारे में यह समझा जाता है कि उसमें पूछे गए कुछ सवाल कठिन थे. इसे ग्रेस मार्क्स कहते हैं और इसे बोर्ड की 'मॉडरेशन' पॉलिसी के नाम से जाना जाता है. इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि जैसे किसी छात्र ने किसी विषय में 70 नंबर हासिल किया और बोर्ड को लगता है कि पेपर कठिन था, तो उसे 15 नंबर अतिरिक्त दे दिए. इस तरह कुल मिलाकर उसका प्राप्तांक 85 हो गया. मॉडरेशन पॉलिसी के तहत कठिन सवालों के लिए छात्रों को 15 फीसदी तक ग्रेस मार्क्स दिए जाते हैं. मौजूदा समय में किसी प्रश्नपत्र के कठिन होने की शिकायत मिलने पर सीबीएसई विशेषज्ञों का एक पैनल गठित करता है. यह पैनल सवालों का अध्ययन करता है और फिर सिफारिश करता है कि प्रत्येक परीक्षार्थी को कितना अतिरिक्त मार्क्स दिया जाए. 

मॉडरेशन मार्क्स या ग्रेस मार्क्स विभिन्न शिक्षा बोर्ड छात्रों को 10 से 15 मार्क्स के तहत देता है. इन मार्क्स को पाकर छात्र विश्वविद्यालयों में दाखिले की रेस में आगे बढ़ते हैं और इन्हीं मार्क्स से मिले राहत के चलते दिल्ली विश्वविद्यालय समेत अन्य विश्वविद्यालयों का कटऑफ हाई हो जाता है. अधिकतर बोर्ड 75 फीसदी से ऊपर के छात्रों को यह मार्क्स देते हैं, जिसके बाद उनके मार्क्स में बढ़ोतरी हो जाती है. 

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