मैं अपनी सभी कविताओं की मां हूं, वे मेरी कल्पनाओं से जन्मी हैं : गुलजार
Advertisement

मैं अपनी सभी कविताओं की मां हूं, वे मेरी कल्पनाओं से जन्मी हैं : गुलजार

पाकिस्तान के झेलम में जन्मे गुलजार का 1947 में देश विभाजन के बाद मुंबई के कंक्रीट के जंगल से परिचय हुआ.

गुलजार की फाइल फोटो...

मुंबई: चाहे चांद का उदाहरण देते हुए अपना विचार जाहिर करना हो या कंक्रीट के जंगल में एक खिड़की को लेकर कहानियां गढ़नी हो, मशहूर गीतकार व कवि गुलजार (83) उन सबको एक काव्यात्मक स्वरूप में ले आते हैं.  उनका कहना है कि कवि के दिमाग को कविता को रचनात्मक विचार के तौर पर उभार देने के लिए वास्तविकता से भली-भांति परिचित होना चाहिए. पाकिस्तान के झेलम में जन्मे गुलजार का 1947 में देश विभाजन के बाद मुंबई के कंक्रीट के जंगल से परिचय हुआ. शहर के जीवन के अपने अनुभव को उन्होंने फिल्म 'घरौंदा' (1977) के गीत 'दो दीवाने शहर में' उतारा. उन्होंने लिखा कि इन भूलभुलैया गलियों में, अपना भी घर होगा, अंबर पे खुलेगी खिड़की या,खिड़की पे खुला अंबर होगा.

  1. गुलजार ने कहा कि कल्पनाएं मौजूदा दौर में भी काफी प्रासंगिक हैं
  2. कल्पना के लिए कहीं भी जाने की जरूरत नहीं होती- गुलजार
  3. गुलजार ने अभी दिल पीर है के आठ गाने लिखें हैं

ये भी पढ़े- 29 साल बाद भारत में रिलीज होगी गुलजार की 'लिबास'

उन्होंने बताया कि इस तरह की कल्पनाएं मुंबई शहर में मौजूदा दौर में भी काफी प्रासंगिक हैं. दरअसल, आपको कविता लिखने के लिए कल्पना की तलाश करने को लेकर कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है. कल्पनाएं हमारे आसपास तैर रही हैं, बस इन पर नजर डालने की जरूरत है. जहां तक गुलजार के हालिया काम की बात है, तो उन्होंने अल्बम 'दिल पीर है' के लिए आठ गीत लिखे हैं, जिसे मशहूर गायक व संगीतकार भूपिंदर सिंह ने अपनी धुनों से सजाया है.  उनके मुताबिक, सिंह के साथ लंबे समय से उनके जुड़ाव की परिणति एक अच्छी साझेदारी के रूप में हुई. दोनों ने साथ मिलकर 'दो दीवाने शहर में', 'बीते ना बिताए रैना' जैसे लोकप्रिय गीत दिए हैं.

ये भी पढ़े- समय के साथ संगीत बदल जाएगा: गीतकार-फिल्मकार गुलजार

गुलजार ने बताया कि भूपिंदर के साथ उन्होंने न सिर्फ फिल्मी गीतों पर काम किया है, बल्कि एल्बम के लिए भी काम किया है. गीतकार ने कहा कि अक्सर वे सबसे पहले वह गाना लिखते हैं और फिर भूपिंदर उसे धुनों से सजाते हैं, लेकिन इस एल्बम के शीर्षक गीत की धुनों को उन्होंने खुद रचा और फिर गायक ने उन्हें धुन में सुनाया और इस तरह गीत के बोल पांच मिनट में तैयार हो गए.

ये भी पढ़े- हिन्दी दिवस विशेष: गुलजार की कुछ रुह छू देने वाली इन कविताओं को बार बार सुनना चाहेंगे आप

उन्होंने आगे कहा कि कभी-कभी ऐसा तुक्का काम कर जाता है. 'दिल पीर है' भूपिंदर और मिताली के संगीत लेबल भूमिताल म्यूजिक का पहला एल्बम है. गुलजार अपनी आकर्षक आवाज में कविता सुनाने के लिए भी जाने जाते हैं. उन्होंने यहां तक कि अपने दो ऑडियोबुक 'रंगीला गीदड़' और 'परवाज' भी प्रकाशित किए हैं.

साहित्य अकादमी पुरस्कर से सम्मानित गुलजार ने अपनी कविता का पाठ खुद करने के अनुभव को साझा करते हुए बताया, 'मैं अपनी सभी कविताओं की मां हूं. वे मेरी कल्पनाओं से जन्मी हैं'. उन्होंने कहा कि कविताओं को सुनाते समय उससे जुड़ी भावना स्वभाविक रूप से आती है, यह सभी रचनात्मक लोगों के साथ होता है.  

 

Trending news