मई 1993 में जब पहली बार सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति वी रामास्वामी पर महाभियोग चलाया गया तो वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में कपिल सिब्बल ने ही लोकसभा में बनाई गयी विशेष बार से उनका बचाव किया था.
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नई दिल्लीः प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ शुक्रवार को महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने वाली कांग्रेस ने 25 साल पहले सत्ता में रहते हुए ऐसी ही कार्यवाही का विरोध किया था. दिलचस्प बात यह है कि पहले तीन मौकों पर उस वक्त महाभियोग प्रस्ताव लाए गए थे जब कांग्रेस केंद्र की सत्ता में थी. मई 1993 में जब पहली बार सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति वी रामास्वामी पर महाभियोग चलाया गया तो वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में कपिल सिब्बल ने ही लोकसभा में बनाई गयी विशेष बार से उनका बचाव किया था.
कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों द्वारा मतदान से अनुपस्थित रहने की वजह से यह प्रस्ताव गिर गया था. उस वक्त केंद्र में पी वी नरसिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी. न्यायमूर्ति रामास्वामी के अलावा वर्ष 2011 में जब कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया तो भी कांग्रेस की ही सरकार थी.
सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति पी डी दिनाकरण के खिलाफ भी इसी तरह की कार्यवाही में पहली नजर में पर्याप्त सामग्री मिली थी लेकिन उन्हें पद से हटाने के लिये संसद में कार्यवाही शुरू होने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया थ. कांग्रेस और छह अन्य विपक्षी दलों ने देश के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर ‘कदाचार ’ और ‘ पद के दुरुपयोग ’ का आरोप लगाते हुए आज उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया. राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को महाभियोग का नोटिस देने के बाद इन दलों ने कहा कि ‘ संविधान और न्यायपालिका की रक्षा ’ के लिए उनको ‘भारी मन से’ यह कदम उठाना पड़ा है.
राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू को दिया है उसमें इसके लिये 5 आधार दिए गए हैं.
7 पार्टी के 71 सांसदों ने महाभियोग पर किया हस्ताक्षर
विपक्षी दलों की बैठक खत्म होने के बाद गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से उनके आवास पर मुलाकात की. राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार (20 अप्रैल) को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से मुलाकात के बाद कहा कि हम सीजेआई दीपक मिश्रा को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव ला रहे हैं. गुलाम नबी आजाद ने कहा, 'सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर 71 सांसदों ने हस्ताक्षर किया है, लेकिन उनमें से 7 रिटायर हो गए हैं, जिसकी वजह से यह संख्या घटकर अब 64 हो गई है. महाभियोग लाने के लिए जितनी संख्या चाहिए होती है, हमारे पास उससे ज्यादा है और हमें यकीन है कि सभापति महोदय कार्रवाई करेंगे.'
71 MPs had signed the impeachment motion (against CJI) but as 7 have retired the number is now 64. We have more than the minimum requirement needed to entertain the motion and we are sure that the Hon Chairman will take action: Ghulam Nabi Azad after meeting Vice President pic.twitter.com/QYLGXjInjU
— ANI (@ANI) April 20, 2018
सीजेआई ने अपने पद की मर्यादा तोड़ी
इसके बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने भी सीजेआई के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, 'हम चाहते थे कि ऐसा दिन कभी ना आए, लेकिन कुछ खास केस पर सीजेआई के रवैये की वजह से महाभियोग लाने पर हम मजबूर हुए.' कांग्रेस नेता ने कहा कि अगर उपराष्ट्रपति ने नोटिस खारिज किया तो और भी कई रास्ते हैं. सिब्बल ने कहा कि सीजेआई के कुछ प्रशासनिक फैसलों पर आपत्ति है. इसके साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि फिर से जांच होगी और सच सामने आएगा. सिब्बल ने चीफ जस्टिस पर अपने पद की मर्यादा तोड़ने का आरोप लगाते हुए कहा कि न्यायपालिका के खतरे में आने से लोकतंत्र पर खतरा है.
कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘हम भी चाहते थे कि न्यायापालिका का मामला उसके भीतर सुलझ जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हमें भारी मन से ऐसा करना पड़ रहा है क्योंकि संविधान और एक संस्था की स्वतंत्रता और स्वायत्तता का सवाल है.’’ उन्होंने बताया कि प्रस्ताव में चीफ जस्टिस के खिलाफ पांच आरोपों का उल्लेख किया गया है जिनके आधार पर विपक्षी दलों ने यह नोटिस दिया है.
इससे पहले संसद भवन में विपक्षी दलों के नेताओं की इस मुद्दे पर बैठक हुई जिसमें कांग्रेस नेता आजाद, कपिल सिब्बल, रणदीप सुरजेवाला, भाकपा के डी. राजा और राकांपा की वंदना चव्हाण ने हिस्सा लिया. सूत्रों के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक पहले चीफ जस्टिस के महाभियोग के पक्ष में थे, लेकिन बाद में इस मुहिम से अलग हो गए.
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा सीबीआई के विशेष न्यायाधीश बी. एच. लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मृत्यु की जांच के लिए दायर याचिकायें खारिज किए जाने के अगले ही दिन महाभियोग का नोटिस दिया गया है. लोया सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे. शीर्ष अदालत की चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने गुरुवार (19 अप्रैल) को यह फैसला सुनाया था. महाभियोग का नोटिस देने के लिए राज्यसभा के कम से 50 सदस्यों जबकि लोकसभा में कम से कम 100 सदस्यों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है.
विपक्षी पार्टियों की बैठक में लिए गए अहम फैसले
कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों ने चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही के लिए नोटिस देने का निर्णय लिया. चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग कार्यवाही के नोटिस पर सात राजनीतिक दलों के 60 से ज्यादा सांसदों ने हस्ताक्षर किए.नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले दलों में कांग्रेस, राकांपा, माकपा, भाकपा, सपा, बसपा और मुस्लिम लीग शामिल हैं.कांग्रेस और अन्य दलों के नेताओं ने उपराष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू से मुलाकात कर चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग का नोटिस सौंपा.
(इनपुट भाषा)