‘भारत प्रथम’ एकमात्र धर्म, संविधान एकमात्र पवित्र पुस्तक : पीएम
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‘भारत प्रथम’ एकमात्र धर्म, संविधान एकमात्र पवित्र पुस्तक : पीएम

देश में असहिष्णुता को लेकर छिड़ी बहस के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि उनकी सरकार के लिए ‘भारत प्रथम’ एकमात्र धर्म है और संविधान एकमात्र ‘पवित्र पुस्तक’ है और उनकी सरकार सभी वर्गों और सभी धर्मों के लिए काम करने को प्रतिबद्ध है।

 ‘भारत प्रथम’ एकमात्र धर्म, संविधान एकमात्र पवित्र पुस्तक : पीएम

नई दिल्ली : देश में असहिष्णुता को लेकर छिड़ी बहस के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि उनकी सरकार के लिए ‘भारत प्रथम’ एकमात्र धर्म है और संविधान एकमात्र ‘पवित्र पुस्तक’ है और उनकी सरकार सभी वर्गों और सभी धर्मों के लिए काम करने को प्रतिबद्ध है।

प्रधानमंत्री ने नरम रुख अपनाते हुए विपक्ष की सराहना करते हुए उस तक पहुंचने का प्रयास किया। उन्होंने संविधान की किसी प्रकार की समीक्षा की आशंका से इंकार करते हुए इन आरोपों को 'भ्रम फैलाना’ बताया और कहा कि ऐसा करना आत्महत्या करने जैसा होगा। असहिष्णुता की बहस के बीच साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार का एक ही धर्म है इंडिया फर्स्ट, सरकार का एक ही धर्मग्रंथ है भारत का संविधान।

मोदी ने साथ ही विपक्ष को भरोसे में लेने का प्रयास करते हुए कहा कि सत्तारूढ़ पक्ष बहुमत के जरिए जबरन फैसले थोपने में नहीं बल्कि सर्वसम्मति के जरिए काम करने में यकीन रखता है। संविधान दिवस पर संविधान के प्रति प्रतिबद्धता जताने और डा बी आर अम्बेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर लेाकसभा में दो दिवसीय चर्चा का जवाब देते हुए मोदी ने कांग्रेस के इन आरोपों को खारिज किया कि राजग सरकार जवाहर लाल नेहरू जैसे नेताओं की भूमिका को कमतर करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने अपने संबोधन में नेहरू की सराहना भी की।

सदन ने बाद में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव स्वीकार किया जिसमें अम्बेडकर और संविधान निर्माण में अन्य नेताओं के योगदान के प्रति आभार जताया गया। सदन में दो दिवसीय चर्चा के दौरान ‘असहिष्णुता’ के मुद्दे पर उनकी सरकार पर विपक्ष द्वारा लगातार किए गए हमले के जवाब में मोदी ने कहा कि विविधता भारत की ताकत है और इसे और मजबूत किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘सरकार के लिए, एकमात्र ‘धर्म’ ‘इंडिया फर्स्ट’.. एकमात्र ‘धर्मग्रंथ ’ संविधान है।’ सदन में हुई चर्चा में विपक्षी सदस्यों ने इन मुद्दों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठाए थे। लेकिन अपने 70 मिनट के संबोधन में मोदी ने विशेष रूप से कथित असहिष्णुता से पैदा हुई घटनाओं का कोई जिक्र नहीं किया।

संविधान बदलने की बात को भ्रम बताते हुए मोदी ने कहा, 'मैं समझता हूं कि हमारा ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि दलितों, शोषितों और पीड़ितों के भाग्य को कैसे बदला जाए।’ सर्व पंथ समभाव को आईडिया आफ इंडिया बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें यह भाषा, वह भाषा, यह भूभाग, वह भूभाग की बातों से ऊपर उठकर समाज के सभी वर्गों और जन-जन को साथ लेकर राष्ट्र को मजबूत बनाना है।

राजनीतिक बिरादरी की साख गिरने की बात स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि राजनीतिकों की साख को चोट पहुंची है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल राजनीतिकों और उनके परिवारों को जनता गर्व और सम्मान से याद करती है पर आज के दिन राजनीतिकों की साख में कमी आई है और लोगों द्वारा हमें देखने का नजरिया बदला है।

उन्होंने कहा कि राजनीतिकों की प्रतिष्ठा कैसे बढ़े इस बात पर सोचना होगा क्योंकि समाज में हमारी बहुत बदनामी हो रही है और लोग हमें बहुत कोसते हैं। मोदी ने कहा कि लेकिन यह भी सचाई है कि राजनेताओं ने अपने पर बंधन का कभी विरोध नहीं किया और आत्मसंयम बरता है। और यह उनपर किसी ने थोपा नहीं है बल्कि इसी सदन ने स्वयं फैसले किये हैं। चुनाव आयोग और अदालतों के राजनीतिकों के बारे में किए गए निर्णयों को सहर्ष स्वीकार किया गया है।

मोदी ने कहा कि आज चुनावी दलभक्ति इतनी तीव्र हो चुकी है कि अगर संविधान के चित्रों के रंगों को चुनने का काम करना हो तो उसमें भी विरोध उभर आयेगा। उन्होंने कहा कि देश के लिए 26 जनवरी का महत्व है, इस दिन देश गणतंत्र हुआ और हम जब 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाते हैं तो इससे 26 जनवरी का मान कम नहीं होता है बल्कि 26 जनवरी को ताकत मिलती है।

मोदी ने कहा कि भारत विविधताओं से भरा देश है जहां ईश्वर को मानने वाले और उसे नकारने वाले भी रहते हैं। यहां सभी जीवंत 12 धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। हमारे यहां 1200 भाषाएं और 1600 से अधिक बोलियां बोली जाती है। सबकी अपनी अलग अलग प्राथमिकताएं हैं। उन्होंने कहा कि बाबा साहब की महानता इस बात से स्पष्ट होती है कि सरकार पर प्रहार करने, सरकार द्वारा अपना बचाव करने के लिए या अपनी तटस्थता स्पष्ट करने के लिए भी उनको उद्धृत किया जाता है।

मोदी ने कहा, विचार एक ही है लेकिन हर खेमें के लोगों के काम में आता है।’  मोदी ने कहा कि बाबा साहब ने जीवन में कठिनाइयां, यातनाएं, अपमान सहे लेकिन उनमें बदले का भाव कभी नहीं आया बल्कि सबको जोड़ने और समाहित करने का प्रयास किया। यह बाबा साहब की महानता है कि सारे जहर पी लिये और हमारे लिये अमृत छोड़ गए। प्रधानमंत्री ने कहा, हमारे लिये संविधान आज और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारा विविधताओं वाला देश है और सबकी अलग अलग आकांक्षाएं हैं।’ उन्होंने हालांकि असहिष्णुता की हाल की किसी घटना का उल्लेख नहीं किया जिन्हें लेकर चर्चाएं हैं।

संविधान की पवित्रता बनाये रखने को हम सबका दायित्व और जिम्मेदारी बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें अल्पमत, बहुमत करने की बजाए सर्वानुमति बनाने पर जोर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह ठीक है कि आखिरी चीज अल्पमत और बहुमत से बनती है लेकिन लोकतंत्र में ज्यादा ताकत तब बनती है जब हम सहमति से चले। सहमति नहीं बनने पर अल्पमत या बहुमत की बात आती है लेकिन यह अंतिम विकल्प होना चाहिए जब सहमति बनाने के हमारे सारे प्रयास विफल हो जाएं। कालेजियम और एनजेएसी प्रणाली पर जारी बहस के बीच प्रधानमंत्री ने कहा, आजकल की सुगबुगाहट में यह समझना चाहिए कि संविधान के आधारभूत दस्तावेज है। इसमें राज्य के अंगों के अधिकारों और शक्तियों के बीच बंटवारे का विधान किया गया है।

उन्होंने बाबा साहब अंबेडकर का हवाला देते हुए कहा कि संविधान का उद्देश्य राज्यों के तीनों अंगों को सीमाओं के दायरे में रखना भी है क्योंकि अंकुश नहीं होगा तो पूर्ण निरंकुशता हो जायेगी। अगर विधायिका कानून बनाने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हो, कार्यपालिका उसे लागू करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हो और न्यायपालिक उसकी व्याख्या करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हो.. तो अराजकता आ जायेगी।

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